गुरुवार, 9 जुलाई 2009

७ पर्यावरण परिक्रमा

यूनेस्को की सूची में तीन अभ्यारण्य
भारत के तीन वन्य जीव अभ्यारण्यों को यूनाइटेड नेशन्स ऐजुकेशनल साइंर्टिफिक एण्ड कल्चरल ऑर्गनाईजेशन (यूनेस्को) ने अपनी सूची में शामिल कर लिया है । इसमें उड़ीसा स्थित सिमलीपाल, मेघालय स्थित नोक्रेक के अलावा मध्यप्रदेश का पचमढ़ी अभ्यारण्य भी शामिल है । अब तक १०७ देशों में यूनेस्को के बायोस्फीयर रिजर्व हैं । ये बायोस्फीयर रिजर्व ऐेसे इलाके में हैं जिनका इस्तेमाल जमीन, ताजे पानी, तटीय और समुद्री इलाके में मिलने वाले जीव-जंतुआें के बेहतर मेनेजमेंट समझने के लिए किया जाता है । इसकी मदद से टिकाऊ विकास की सोच को भी बढ़ावा मिलता है । पचमढ़ी रिजर्व मध्यप्रदेश स्थित पचमढ़ी अपने बाघों के लिये जाना जाता है । इसके अलावा यह अपने अनोखे पेड़ - पौधों के लिए भी काफी मशहूर है । बाघों के अलावा बाकी जानवर हैं तेंदुआ, जंगली सुअर, गौर,चीतल, संाभर, मकाऊ बंदर । पेडों में टीक और साल प्रमुख हैं । बोरी सेंचुरी, सतपुड़ा नेशनल पार्क और पचमढ़ीसेंचुरी इस बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा है । सिमलीपाल रिजर्व सिमलीपाल वाइल्ड लाईफ रिजर्व भुवनेश्वर से ३०० किलोमीटर दूर है । पहले मयूरभंज के महाराजा यहां शिकार खेला करते थे । यह बाघ, एशियाई हाथी और गौर का घर है । इसके अलावा यह अपनी पहाड़ी मेना, तेंदुआें और आर्किड के खूबसूरत पेड़ों के लिए बहुत मशहूर है। सिमलीपाल को अपना नाम सेमल के पेड़ों से मिला है ।नोक्रेक रिजर्व नोक्रेक मेघालय के गारो हिल्स जिले में तूरा जीव पीक के पास स्थित है। यहां बहुत बड़ी संख्या में दुलर्भ प्रजाति के पौधे और जानवर पाए जाते हैं । इनमें बाघ, तेंदुए, गिबन और फिशिंग कैट शामिल हैं । यह रिजर्व अपनी जैव विविधता और प्राकृतिक माहौल में जनजातीय लोगों की संस्कृति पर शोध करने वालों के लिहाज से काफी अहम है ।
न्यायालय द्वारा आेंकारेश्वर बांध में पानी भरने से इंकार
सर्वोच्च् न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में आेंकारेश्वर बंाध में १९३ मीटर तक पानी भरने से इंकार कर दिया है । सर्वोच्च् न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि चूकि एक बड़ी संख्या में प्रभावितों की शिकायतों का निराकरण होना बाकी है अत: शिकायत निवारण प्राधिकरण शिकायतों का निवारण कर अपनी रिपोर्ट २० जून तक उच्च् न्यायालय में प्रस्तुत करे एवं उसके बाद उच्च् न्यायालय उचित आदेश प्रदान करे । उल्लेखनीय है कि म.प्र. सरकार ने आेंकारेश्वर परियोजना के संदर्भ में नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर उच्च् न्यायालय द्वारा १६ मार्च २००९ को दिए आदेश को सर्वोच्च् न्यायालय में चुनौती दी थी । इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च् न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी कि उन्हें आेंकारेश्वर बांध में वर्तमाल जल स्तर १८९ से बढ़ाकर १९३ मीटर तक भरने की अनुमति दी जाए । नर्मदा बचाओ आंदोेलन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. राजीव धवन, संजय पारीख एवं निखिल नैय्यर ने न्यायालय को बताया कि अभी हजारों प्रभावितों को उनके अधिकार दिए जाने बाकी हैं ।न्यायालय को तमाम फोटो दिखाते हुए बताया गया कि शुरूआती हिस्से में ही अभी तक नहर नहीं खुदी, अत: नहर से पानी देने का प्रश्न ही नहीं उठता । न्यायालय को यह भी बताया गया कि न सिर्फ आेंकारेश्वर परियोजना से गत दो वर्षों में लक्ष्य से ज्यादा बिजली उत्पादन हुआ है वरन परियोजना को बनाने वाली कम्पनी नर्मदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक डेवलपमेंट कार्पोरेशन (एनएचडीसी) ने गत तीन वर्षोंा में लगभग १००० करोड़ रूपए का शुद्ध लाभ कमाया है । याचिका पर निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन, न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम् एवं न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खण्डपीठ ने दिया। सर्वोच्च् न्यायालय ने उच्च् न्यायालय से कहा कि रिपोर्ट प्रािप्त् के बाद वह उचित आदेश पारित कर सकता है ।
गांव में चारों तरफ नीम का मंजर
पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरों के बीच अगर किसी गांव में इस तपती दोपहरी में चारों तरफ लहराते हरे भरे नीम के वृक्षों का मंजर नजर आए तो क्या कूल कूल एहसास होगा । यह कोरी कल्पना नहीं हकीकत है । म.प्र. मेंहरदा जिले के अंतर्गत आने वाले नीम गांव में नीम के वृक्ष ही वृक्ष नजर आते हैं। यहां लगभग हर घर आंगन और खेतों में नीम के वृक्षों की सुंदर कतारें नजर आती हैं । हरदा जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर नीमगांव में प्रवेश करते ही नीम के छायादार सुंदर वृक्षों की छटा देखने को मिलती है । ऐसा हो भी क्यों न । इस गांव में उस विश्नोई समुदाय के लोगों की बहुलता है जिन्होंने राजस्थान में वृक्ष काटने की जगह अपनी गर्दन कटाना पसंद किया था । राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में वृक्षों की रक्षा के लिए अमृतादेवी की अगुवाई में इस समुदाय के ३६३ लोगों का बलिदान इतिहास के पन्नों पर अमिट कहानी के रूप में दर्ज है। इस गांव के लोग उस अमूल्य शहादत को अपनी शानदार विरासत मानते हैं और हर वर्ष पर्यावरण दिवस को मनाने के साथ वृक्षारोपण करते हैं । नीमगांव के बुजुर्ग जगन्नाथ पंवार बताते हैं कि पर्यावरण सुधार और समृद्धिशाली खेती के नारे को ध्यान में रखते हुए इस गांव मंे आरम्भ से ही बड़ी संख्या में नीम के वृक्ष लगाए गए । यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तथ्य है कि अन्य वृक्षों की तुलना में नीम गर्मी में अधिक शीतल छाया देता है । इसका औषधीय महत्व भी बहुत अधिक है और इसकी पत्तियां तथा छाल का उपयोग कई रोगों के उपचार में होता है । श्री पवार ने कहा कि नीम की सूची पत्तियां जला कर गांव में बिना किसी दुष्प्रभाव के मच्छर भगाए जाते हैं । इसकी छाल का उपयोग अनेक प्रकार के चर्म रोगों की रामबाण औषधि है । घरों के साथ साथ खेतों की मेड़ पर नीम के वृक्ष लगाए जाने का कारण बताते हुए श्री पवार ने कहा कि इससे कृषि व्यवसाय को बहुत लाभ पहुंचता है । श्री पवार ने कहा कि नीम की पत्तियां और निम्बोली निरन्तर गिरती रहती है और इनके जरिए बेहद उर्वरक खाद का निर्माण किया जाता है । खेतों में काम करने वाले किसान और श्रमिक भी थकने पर इन्हीं वृक्षों की शीतल छांव में सुस्ताते हैं और भोजन करते हैं । एक हजार की आबादी वाले नीमगांव में लगभग ४० ट्रेक्टर हें और सभी परिवार सुख-दु:ख में बराबर के भागीदार होते हैं । हरदा शहर से नजदीक होने के कारण गांव के कई किसानों के बच्च्े शहर के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं । गांव के कईयुवकों ने उच्च् शिक्षा भी हासिल की लेकिन उन्होंने खेती के परंपरागत व्यवसाय को नहीं छोड़ा। इन युवकों ने खेती किसानी के आधुनिक तौर तरीकों का इस्तेमाल कर अपनी आय में और बढ़ौत्री की है । नीमगांव में किसानों ने बड़ी संख्या में दुधारू पशु भी रखे हैं। दूध घी आदि की बिक्री से उनकी अतिरिक्त आमदनी होती है । गांव के विश्नोई समुदाय के धर्मगुरू जम्भेश्वर महाराज का भव्य मंदिर भी स्थित है । यहां प्रतिवर्ष एक विशाल मेला लगता है।
गंगा एक्सप्रेस - वे निर्माण पर रोक
इलाहाबाद उच्च् न्यायालय ने नोएडा से बलिया तक प्रस्तावित गंगा एक्सप्रेस वे निर्माण पर रोक लगाते हुए पर्यावरण अनापत्ति की संपूर्ण प्रक्रिया को अवैध करार दिया है । न्यायालय के इस फैसले से गंगा एक्सप्रेस- वे परियोजना खटाई में पड़ गई है । न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य पर्यावरण इम्पेक्ट एसेसमेंट कमेटी द्वारा अपनाई गई अनापत्ति की पूरी प्रक्रिया को दोषपूर्ण व अवैध मानते हुए २३ अगस्त ०७ के क्लीयरेंस आदेश को रद्द कर दिया है । न्यायालय ने कहा है कि नियमानुसार पर्यावरण मंत्रालय का क्लीयरेंस लिए बगैर गंगा एक्सप्रेस-वे का निर्माण न किया जाए। न्यायालय ने २० फरवरी ०९ की अधिसूचना से गठित राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी से कहा है कि वह गंगा प्रदूषण व पर्यावरणीय खतरे की दृष्टि से परियोजना पर विचार करे। यह आदेश न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति अरूण टंडन की खंडपीठ ने गंगा महासभा, वाघम्बरी गद्दी के महंत नरेंद्र गिरी व विंध्य इन्वायरमेंटरल सोसायटी की जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है । न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम एवं इसके तहत नियमावली १९८६ के अंतर्गत केंद्रीय पर्याव्रण मंत्रालय ने १४ सितम्बर ०६ को अधिसूचना जारी कर स्पष्ट किया है कि बिना क्लीयरेंस (अनापत्ति) प्राप्त् किए निर्माण नहीं किया जा सकता । इसके तहत निर्माण के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य पर्यावरण इंस्पेक्ट एसेसमेंट कमेटी से अनापत्ति प्राप्त् करने की प्रक्रिया है । सरकार ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया है । सरकार ने गंगा किनारे तटबंध बनाने व हाईवे बनाने के लिए क्लीयरेंस मांगा, इसके विपरीत निर्माण योजना में शापिंग माल, स्कूल,मार्केट, पार्क आदि भी शामिल कर लिया गया । इन चीजों की कमेटी ने अनुमति नहीं दी है । हर स्तर पर नियमों का उल्लंघन किया गया और नियमानुसार अनापत्ति लिये बगैर की गयी सारी कार्रवाई अवैध है ।**

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