बुधवार, 16 सितंबर 2009

८ सामाजिक पर्यावरण

गोरक्षा, एक सांस्कृतिक सवाल
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
आगामी २८ सितम्बर ०९ (विजयादशमी) से हरियाणा में कुरूक्षेत्र से विश्वमंडल गो-ग्राम यात्रा आरंभ होगी। यह यात्रा पूरे देश में करीब २०,००० कि.मी. का सफर तय करेगी। गोरक्षा और गो-संवर्धन के प्रयासों में लोक चेतना की दृष्टि से यह अब तक का सबसे बड़ा प्रयास होगा । गाय को राष्ट्र पशु घोषित कर गोवंश रक्षा हेतु केन्द्रीय कानून बनाने जैसी प्रभावी मांगों में समर्थन मेें यात्रा के दौरान हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा । यह हस्ताक्षर युक्त मांगों का ज्ञापन २९ जनवरी २०१० को नई दिल्ली में राष्ट्रपति को सौंपा जायेगा । भारत कृषि प्रधान देश है । हमारी संस्कृति कृषि प्रधान है । विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां सदियों से करोड़ों लोग निरामिष भोजी रहे है । वैदिक काल से ही हमने गाय को अवधा माना और पारिवारिक सदस्य का दर्जा दिया । वेदों में गाय के लिये विश्वमाता संबोधन का प्रयोग है- गांवों विश्वस्य मातर: । गाय को गोमाता के रूप में पूज्य मानने में केवल धार्मिक आग्रह ही नहीं है, अपितु यह पशु और मानव संबंधों के मानवीय आधार की सर्वोत्कृष्ट परंपरा का प्रतीक है । गोवंश भारत की संस्कृति अस्मिता के प्रतीक है । महाभारत में यक्ष के प्रश्न अमृत क्या है ? के उत्तर में धर्मराज युधिष्ठिर कहते है, गाय का दूध अमृत है । भारतीय अर्थतंत्र का आधार कृषि है । पशुसंपदा भारतीय कृषि और किसान की बहुमूल्य निधि है । हमारी कृषि प्रणाली में हर स्तर पर पशु-पक्षी की महत्वपूर्ण भूमिका है । कृषि में खेत जोतने, बीज बोने से फसल आने तक और फिर कृषि उत्पादन को बाजार तक पहुँचाने के विविध कार्यो में पशु शक्ति का उपयोग होता है । देश में उपयोग आने वाली कुल ऊर्जा का एक-तिहाई भाग पशु एवं मानव शक्ति से प्राप्त् होता है । गाय और गोवंश की देश में कृषि, चिकित्सा-स्वास्थ्य, ऊर्जा, उद्योग और अर्थव्यवस्था के साथ ही पर्यावरण संतुलन में अपनी भूमिका है । गोवंश को सम्मान देने के लिए ही हमारे राष्ट्रीय चिन्ह में नंदी विद्यमान है । हमारे देश में लगभग ३४ करोड़ पशु धन है, जो विश्व में सर्वाधिक है । इसी प्रकार देश में १९ करोड़ टन अनाज उत्पादन के साथ ही ४०-५० करोड़ टन कृषि अवशेष निकलते है । अभी देश में अधिकांश ग्रामीण घरों में रसोई ऊर्जा के लिए लकड़ी, कृषि अवशेष अथवा गोबर के उपले भोजन पकाने के लिए उपयोग में आते है । पशुआें के गोबर कृषि अवशेष एवं मलमूत्र आदि जैव-पदार्थ से बायो-गैस बनायी जाती है । बायोगैस में मीथेन (५५-७० प्रतिशत), कार्बन-डाई-आक्साइड (३०-४५ प्रतिशत) तथा अल्प मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस होती है। बायोगैस संयंत्र से जो स्लरी निकलती है वह भी उत्तम खाद होती है। आधुनिक कृषि में हरित क्रांति के बाद रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से खेतों में मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुआें की संख्या अत्यंत कम हो गयी है । इससे कृषि पैदावार पर विपरीत असर पड़ रहा है, महंगी होती कृषि में लगातार घाटे के कारण पिछले एक दशक में देश में करीब २ लाख किसानों को आत्महत्या के लिये मजबूर होना पड़ा । इसलिए खेती में आज गाय और गोवंश के महत्व को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है । गाय कभी भी किसान के लिए अनुपयोगी नहीं है । गाय बूढ़ी हो जाये या दूध देना बंद कर दे तो भी गोबर और मूत्र के जरीये उसका आर्थिक स्वावलंबन बना रहता है । एक गाय प्रतिदिन लगभग १० कि.ग्रा. के हिसाब से वर्ष भर में ३६५० कि.ग्रा. गोबर देती है, जिससे करीब ३०,००० रूपये मूल्य की कंपोस्ट खाद बनायी जा सकती है । इसके साथ ही करीब २००० लीटर गोमूत्र उपलब्ध होता है, जिससे दवाईयाँ और कीटनाशक के रूप में १०,००० रूपये मिल सकते है । गोधृत में वायुमण्डल को शुद्ध करने की अलौकिक शक्ति है । देश में आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से गाय का अपना महत्वपूर्ण स्थान होने के बाद भी आज देशी गाय अपने अस्तित्व के संकट से जुझ रही है । भारतीय देशी गाय की सैकड़ों नस्लों में से केवल ३३ ही बची है, समय रहते नहीं चेते तो भारतीय गाय की सभी नस्ले समाप्त् हो जायेगी । इसलिए संकर प्रजनन पर रोक लगाकर भारतीय नस्लों की शुद्धता की रक्षा करनी होगी । हमारे देश में १९५१ में प्रति हजार व्यक्ति पीछे ४३० गोवंश था, जो २००१ में प्रति हजार ११० रह गया है। यदि गो-संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया तो २०११ में प्रति हजार २० का औसत हो जायेगा । भारत में पशुआें के वध का सवाल अर्थतंत्र के साथ ही संस्कृति मूल्यों और पर्यावरणीय संतुलन और हमारी जैव-विविधता से जुड़ा हुआ है । पशु-पक्षियों के प्रति आदर की भावना हमारी जातिय परम्पराआें और संस्कृति की शिक्षाआें में है । हम यह कैसे भूल सकते है कि हमारे पहले स्वतंत्रता संग्राम १८५७ की चिंगारी के पीछे गोहत्या विरोध की भावना मुख्य थी। देश में वर्तमान में मांस और चमड़े का व्यापार लगभग १५००० कराे़ड़ रूपये का है । केन्द्र सरकार की ११वीं पंचवर्षीय योजना में ५५० बड़ी वधशालाआें में उत्पन्न एवं आधुनिकीकरण पर ३५०० करोड़ रूपये खर्च करने की योजना है । इधर देश में गोवंश एवं पशुआें की रक्षा के लिए हमारे यहां कई कानून बने है । १९६० में भारत सरकार ने पशुकूरता निवारण अधिनियम बनाया, जिसमें पशुआें के सहजतापूर्वक परिवहन के लिए नियम निर्धारित किये गये, इसके साथ ही वर्ष २००१ में पशुवध शाला निरीक्षण एवं नियंत्रण संबंधी नियम बनाये गये । केन्द्र के साथ ही गोवंश के वध एवं अवैध परिवहन को रोकने में राजस्थान, म.प्र., उ.प्र., गुजरात एवं जम्मू कश्मीर की सरकारों ने कठोर कानुन बनाये है । इन कानुनों का व्यवहारिक रूप में पालन सुनिश्चित करना पुलिस के लिए बड़ी चुनौति है । कानून व्यवस्था और अपराधों से जुझती पुलिस के लिये पशुआें की सुरक्षा के लिए समय का संकट बना रहता है । इसलिए पुलिस वनरक्षक एवं अन्य बलांें के समान पशुधन की रक्षा के लिए विशेष बल के गठन की मांग गो-प्रेमी संगठनों ने रखी है । भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । सन् १९४७ में सकल घरेलु उत्पादन में कृषि का योगदान ६५ प्रतिशत था । सन् २००५ में यह घटकर २० प्रतिशत रह गया, वर्तमान में ११ वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक २०१०-११ में इसके १५.३ प्रतिशत और सन् २०२० में ६ प्रतिशत कर देने का लक्ष्य रख कर योजनाएं बनायी जा रही है । इस समय देश में किसानों के पास जमीन का औसत २ एकड़ है, जो इस सदी के अंत तक घटकर ०.०१ एकड़ रह जायेगा । ऐसे में ट्रेक्टर से खेती कैसे हो सकती है । छोटे किसान की खेती मेंे आज जितनी लागत है, उतनी कमाई नहीं हे । इसलिए किसान खेती से बाहर होता है । देश में हर चौथा आदमी खेत मजदूर है, जिसे खेती से मुश्किल से ५-६महिने ही काम मिल पाता है । इसके लिए ग्रामीणों के शहरों में पलायन को रोकने हेतु कृषि आधारित ग्रामीण हस्ताशिल्प को प्रोत्साहन देना होगा । जैविक कृषि को बढ़ावा देने और गौमूत्र और गोबर के उत्पादों की मांग बढ़े इस हेतु प्रयत्न करने होगें । दश्ेा में चरागाह की भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहा है । इसे रोकने के लिए प्रभावी पहल की आवश्यकता है । इसके अतिरिक्त ग्रामीणोंमें पशुआें की सुरक्षा के प्रति जागरूक एवं पशुपालकों को चारा/पानी के लिए अनुदान की व्यवस्था होनी चाहिये। गोवध बंदी का सवाल भी अनेक वर्षो से लगातार उठाया जाता है, लेकिन सरकार शाब्दिक चिंता से आगे नहीं बढ़ पायी, जबकि सभी राजनीतिक दल गोवध बंदी के पक्ष में हैं तो अहिंसा, दया और करूणा जिस राष्ट्र के राष्ट्रीय आदर्श हो वहां गोवध होना राष्ट्रीय कलंक का विषय है । राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने आजादी के पूर्व ही गोवध पर अपनी मार्मिक वेदना व्यक्त करते हुए कहा था हिन्दुस्तान मेंे गाय ही मनुष्य की सच्ची साथी एवं सबसे बड़ा आधार है, वह हिन्दुस्तान की कामधेनु है । यह सिर्फ दूध ही नहीं देती, बल्कि सारी खेती का आधार स्तंभ है गाय हमारी अहिंसा प्रधान संस्कृति का प्रतीक है । गाय नष्ट हुई तो हमारी सभ्यता नष्ट हो जायेगी । गोहत्या जब तक होती है, तब तक मुझे लगता है मेरी खुद की हत्या हो रही है । गोवध बंदी का काम अब तक नहीं हो पाया,आशा है कि अब बापू के विचारों के अनुरूप गोवध बंदी के लिए सरकार और जनमत की ओर से समन्वय कारी पहल होगी ।**
एंडरसन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट
भोपाल की अदालत ने पिछले माह यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है । अदालत ने यह वारंट भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति के एक आवेदन पर जारी किया है । ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व १९९२ में भी एंडरसन के खिलाफ वारंट जारी हो चुका है पर, भारत व अमेरिका के बीच प्रत्यपर्ण संधि १९९९ में हुई है जिसके बाद अपराधियों का आदान प्रदान किया जा सकता है । इस कांड से संबंधित कई मामलों की सुनवाई भोपाल से लेकर सर्वोच्च् अदालत में अभी तक चल रही है ।

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