शनिवार, 19 सितंबर 2009

१ सामयिक

पर्यावरण : संकल्पना एवं अवधारणा
डॉ. वीरेन्द्र सिंह यादव
पृथ्वी पर संतुलित जीवन के लिए, वायु, भूमि, जल, वनस्पति, पेड़-पौधे, मानव सब मिलकर पर्यावरण बनाते हैं । पृथ्वी पर जबसे मनुष्य, पशु-पक्षी और जीव तथा जीवाणु उपभोक्ता के रूप में प्रकट हुए तब से लेकर आज तक यह चक्र निरन्तर अबाध गति से चला आ रहा है । यहाँ पर जिन्हें जितनी आवश्यकता होती है वह उन्हें प्राप्त् हो जाता है शेष जो बचा रहता है वह प्रकृति आगे के लिए अपने पास संरक्षित कर लेती है । अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में लिखा गया है- ``हे धरती माँ, जो कुछ मैं तुझसे लूंगा, वह उतना ही होगा, जिसे तू पुन: पैदा कर सके । तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूंगा । यही नहीं ऋचाआें में भी पर्यावरण के तत्वों - पृथ्वी, जल, आकाश, वायु के प्रति सभी ऋषि नत्मस्तक होकर प्रणाम करते हैं अर्थात् भारत में नदियों को माँ तुल्य स्थान एवं सम्मान दिया गया है । आज संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण यह पूजन अर्चन की परम्परा कोरी कल्पना सी लगती है । भूमण्डलीकरण एवं बाजारीकरण के इस भौतिक युग में मानव ने प्रकृति पर विजय प्राप्त् करने के लिए अनेक सुख सुविधाएँ एवं वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित की साथ ही बढ़ती आबादी की आवश्यकताआें की पूर्ति हेतु औद्योगिक क्रान्ति का सहारा लिया गया, यह वह निर्णायक समय था जब हमारी प्रकृति का सामान्य सा रूप विखण्डित होने लगा । हम औद्योगिक क्रांन्ति और हरित क्रांन्ति के योद्धा तो कहलाये परन्तु इसके पीछे हमारा आकाश एवं जमीन दोनो क्षतिग्रस्त हो गये और पंच तत्व का यह भैरव मिश्रण अपनी स्वच्छता खोने लगा । इससे हमारे परितंत्र एवं पारिस्थितिकी असन्तुलित हो गये । वन कटने लगे, उपजाऊ भूमि पर आवास बनने लगे, बड़े-बड़े जंगल साफ कर बांधों की योजना बनी और न जाने कितने ऐसे प्रयोग शुरू हो गये जो मानव और प्रकृति के अनुकूल नहीं थे जिससे सामान्य जीवन में अनेक परिवर्तन परिलक्षित होने लगे । पर्यावरण हितैषी जीव-जन्तुआें की बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त् होती गयीं और जो शेष बची हैं वे लुप्त् होने के कगार पर खड़ी हैं । सफाईकर्मी गिद्ध विलुप्त् होते जा रहे हैं । समुद्र, नदी,तालाब, जंगल और घास के मैदान का परितंत्र विनाश की ओर अग्रसर है यही नहीं वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक असंतुलन के स्पष्ट नजारे दिखने लगे हैं क्योंकि वैश्विक उष्णता से ऋतु चक्रों के सन्तुलित परिचालन में व्यवधान उत्पन्न होने लगा है । हिमखण्ड पिघलने लगे हैं । समृद्र अपनी वर्जनाएं तोड़ रहा है । उसका जल स्तर उछाल मार कर संकट की ओर सीधा संवाद कर रहा है अर्थात जल प्रलय का आमंत्रण-पत्र तैयार हो गया है आकाश में ओजोन परत अपना धैर्य खो रही है । साथ ही अन्य प्राकृतिक आपदाएं (सुनामी) कहर ढाहने लगी हैं । पर्यावरण के इस प्रदूषण ने हमारे जनमानस के ऊपर अनेक असाध्य रोगों का आक्रमण शुरू कर दिया है । युद्ध की रणभेरी बज चुकी है । यदि इन परिस्थितियों सें मनुष्य प्रकृति के प्रति सचेत और सावधान नहीं हुआ तो भयंकर से भयंकर परिणाम उसके दहलीज पर दस्तक देते नजर आयेंगे । पर्यावरण दो शब्दों के समन्वय से बना है - परि तथा आवरण । परि से तात्पर्य चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है चादर या घेरा अर्थात जो चारों ओर से घेरे हुए है, वह पर्यावरण कहलाता है । यह वातावरण या पर्यावरण मानव सहित अन्य जीवाणुआें को जो परिस्थितियां दर्शाए, शक्तियां और प्रभाव अपने आवरण की ओट में छिपाये हुए है । विस्तृत अर्थ में जाये तो पर्यावरण सम्पुर्ण दशाओ एवं प्रभावों को जो जीवों के जीवन एवं विकास को प्रभवित करते है । अर्थात् हम अपने चारों और अनेक प्रकार के जीव जंतु पेड़ पौधें तथा अनेक सजीव व निर्जीव वस्तुएँ देखते या महसूस करते है वही पर्यावरण है । अन्य शब्दो में कहे तो पर्यावरण वह है । जो हम अपनी आखों से सामने अवलोकित करते है । चाहे वह वायु हो,भूमि हो, अंतरिक्ष हो,या ध्वनि हो या वनस्पति हो । इस तरह से पर्यावरण उस समूची भौतिक व जैविक व्यवस्था को कहते है । जिसमें सम्पूर्ण जगत के जीवधारी जीवन जीते और अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते है। वास्तव में देखा जाए तो पर्यावरण अत्यन्त व्यापक सत्ता है जो धुलोक से पृथ्वी के प्रत्येक घटक मंें निहित होता है । पर्यावरण को अंग्रेजी भाषा में इनवायरमेंट (एिर्ळींीििााशिीं) कहा गया है जो फ्रांसीसी शब्द एिर्ळींीिळिी ्रशब्द से उत्पन्न हुआ है । जिसका पर्याय घेरना (ढि र्डीीीिीर्ि) होता है । अगे्रजी भाषा में पर्यावरण के लिए एक शब्द (करलळींरश्र) ५ का भी प्रयोग किया जाता है । जो लेटिन के करलळींरीश शब्द से बना है, जिसकी व्याख्या यह है कि एक सुनिश्चित स्थान जिसमें जीव उस स्थान की भौतिक एवं जैविक दशाआें मेंे समायोंजन स्थापित कर रहते है। परिभाषित तौर पर देखें तो एक विशेष वातावरण जिसमें एक विशेष जीव वर्ग या समूह निवास करता है ।पर्यावरण कहलाता है । पर्यावरण की परिभाषा भारतीय एवं पर्यावणविदों की दृष्टि से देखे तो इसका अर्थ स्पष्ट नजर आयेगा- भूगोल परिभाषा कोश के अनुसार चारों ओर उन बाहरी दशाआेंं का योग जिसके अन्दर एक जीव अथवा समुदाय रहता है या कोई वस्तु रहती है । डॉ.वी.पी.सिंह के अनुसार पर्यावरण वह आवरण या घेरा है। जो मानव समुदाय को चारों और से घेरे हुए है ।तथा मानव को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करता है । प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक एचं फिंटिग ने पर्यावरण का अर्थ जीव के परिस्थिति कारकों का योग बताया है ।आपके अनुसार जीवन की परिस्थिति के सभी तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते है । इस प्रकार पर्यावरण वह परिवृत्ति है जो मनुष्य के चारो तरफ से घेरे हुए है । तथा उसके जीवन और क्रियाआें पर प्रकाश डालती है । इस प्रकार पर्यावरण वह परिवृत्ति है जो के बाहर के समस्त तथ्य वस्तुएं स्थितियां तथा दशाएं सम्मिलित होती है । यही सब मानव के जीवन विकास को प्रभावित करती है । इसी तरह बैरिग,लैंगफील्ड और बेल्ड की मान्यता है कि व्यक्ति गर्भावस्था से लेकर मृत्यु पर्यन्त अपने आस-पास से जो भी उत्तोजनाएं ग्रहण करता है उनके समुच्च्य का मान ही पर्यावरण है । तापमान, प्रकाश, जल, वायु, मृदा तथा कोई भी बाह्म शक्ति पदार्थ या दशा जो जीव मात्र को किसी रूप में प्रभावित करती है । पर्यावरण का कारक कहलाती है । इस प्रकार से पर्यावरण एक समुच्च्य है और मानव तथा अन्य जीव पर्यावरण के अविभाज्य अंग हैं एवं पृथ्वी को एक पूर्ण इकाई का रूप भी प्रदान करते है प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अलेक्जांडर फान हम्बोल्ट ने अपने महान ग्रन्थ कॉसमॉस में इसी प्राकृतिक संश्लिष्ट एवं एकता को निम्न शब्दों में प्रतिपादित किया है । ``हम प्राकृतिक रूप से प्रत्येक जीव को सृष्टि से एक अंग के रूप में मानने के लिए बाध्य है तथा पौधे या पशु को केवल एक प्रथम प्रजाति ही नहीं समझना चाहिए बल्कि अन्य जीवित या मृत स्वरूप से जुड़ा हुआ मानना चाहिए । इसी तरह मैक आइवर नामक पर्यावरणविद् का मानना है कि पृथ्वी का धरातल एवं उसकी सभी प्राकृतिक शाक्तियां जो पृथ्वी पर विद्यमान रहकर मानव जीवन को प्रभावित करती है । पर्यावरण के अन्तगर्त आती है । वहीं .ए.जी. टान्सेन का मानना है कि पर्यावरण को उन सम्पूर्ण प्रभावी दशाआें का योग कहा जाता है । जिनमें जीव रहते है । इ.जे. रास का मानना है कि ``पर्यावरण वह बाह्म शक्ति है जो प्रभावित करती है ।'' प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं भूगोलवेत्ता डडले स्टाम्प के अनुसार -``पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग है जो जीव के विकास एवं प्रकृति को परिवर्तित तथा निर्धारित करता है ं ईसकोविटस के अनुसार`` पर्यावरण समस्त बाह्म दशाआें एवं प्रभावों का समुच्च्य है और इसी सम्बन्ध के कारण जीव प्रतिक्रिया एवं प्रभावित करने में सक्षम होता है । स्पष्ट है कि जो तथ्य मानव के जीवन और इसी विकास को प्रभावित करते है ं उन सम्पूर्ण तथ्यों का योग पर्यावरण कहलाता हैं भले ही ये तथ्य सजीव हों अथवा निर्जीव ।इसी तरह से पर्यावरण की विस्तृत परिभाषा एन.सी.ई.आर.टी.नई दिल्ली के अनुसार ``व्यक्ति के पर्यावरण के अन्तर्गत वे समस्त प्राकृतिक एवं सामाजिक घटक आते है । जो प्रत्यक्ष रूप में जीवन और व्यवहार को प्रभावित करते है ।'' संक्षेप में हम कह सकते है कि पर्यावरण के अन्तर्गत प्राकतिक एवं मानव निर्मित कारकों का समावेश रहता है जो हमें चारों और से घेरे हुए है अर्थात पर्यावरण के अन्तर्गत भौतिक के साथ सांस्कृतिक (जैविक-अजैविक) प्रभावशील घटकों का समावेश किया जाता है ं जो जगत के जीव की दशाआें और कार्यो को प्रभावित करता है और पर्यावरण की यह गति प्राणि जगत के बीच क्रिया और प्रतिक्रिया की श्रृंखला प्राकृतिक परिवेश से प्रखर होती है । कुल मिलाकर कहा जाये तो पर्यावरण -``प्राणियों को प्रभावित करने वाली आस-पास की सभी जैविक व अजैविक स्थितियों का समुच्च्य पर्यावरण कहलाता है ।'' ***

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