गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

१ सामयिक

जी.एम. फसलें और भारतीय लोकतंत्र
भारत डोगरा
जी.एम. बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन पर रोक लगाकर पर्यावरण मंत्रालय ने भारतीय लोकतंत्र का सम्मान बढ़ाया है । वहीं कृषि मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इस तकनीक के पक्ष में दिए गए बयानों से भारतीय राजनीति में कारपोरेट जगत की घुसपैठ को प्रमाणिकता मिली है । इस सबके बावजूद जनसंगठनों और व्यक्ति समूहों की इस जीत ने भारतीय लोकतंत्र में आस्था बढ़ाई है । जो लोग बी.टी. बैंगन के माध्यम से भारत की खाद्य सुरक्षा पर जेनेटिक इंजीनियरिंग (जीई) से प्राप्त् फसलों के हमले के बारे में चिंतित थे, उन्हें ९ फरवरी को पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की इस घोषणा से बड़ी राहत मिली कि बी.टी. बैंगन के व्यापारिक इस्तेमाल पर फिलहाल रोक लगा दी गई है । इसके साथ इस बात से काफी तसल्ली हुई कि एक विवादास्पद मुद्दे को सुलझाने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उपयोग किया गया । जहां खुलकर विविध विचार रखे गए । अंत में आम जनता व किसानों के साथ उन वरिष्ठ वैज्ञानिकों के विचारों को भी महत्व दिया गया जिन्हें पहले सरकारी स्तर पर दबाने का प्रयास किया गया था। अनेक राज्य सरकारों ने इस बहस के प्रति सजगता दिखाई और बहुत स्पष्टवादिता से इस विषय पर अपना निर्णय उचित समय पर बता दिया । यह हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है । लोकतंत्र के लिए यह भी गौरव की बात है कि पहले जिन मुद्दों को चंद विशेषज्ञों तक सीमित रखने की प्रवृत्ति थी, वैसे मुद्दे अब व्यापक चर्चा का विषय बन रहे हैं व गांववासी उन पर व्यापक स्तर पर अपने विचार रख रहे हैं । हमारे लोकतंत्र के लिए यह चिंता का विषय बनता जा रहा है कि इसमें धन की ताकत बहुत बढ़ गई है तथा धन के बल पर बहुत अनुचित स्वीकृतियां प्राप्त् कर ली जाती हैं । इस चिंताजनक स्थिति में बी.टी. बैंगन प्रकरण हमें कुछ उम्मीद अवश्य दिलाता है क्योंकि इस बार बड़े व्यावसायिक हितों को जन-अभियान की ताकत ने परास्त कर दिया है । इस जन-अभियान में अनेक सामाजिक व पर्यावरण आंदोलनों के कार्यकर्ताआें, किसान संगठनों, जनसाधारण, वैज्ञानिकों व बुद्धिजीवियों ने सक्रिय भूमिका निभाई । बड़े व्यापार ने करोड़ों रूपए खर्च किए लेकिन वह केवल पैसे के बल पर झूठ को सच नहीं बना सका । हमारे लोकतंत्र में बची इस ताकत को और उभारना होगा व जनहित के अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी निष्ठा से लोकतांत्रिक जनअभियान चलने चाहिए । हमारी यह लोकतांत्रिक ताकत ही हमें चीन व अमेरिका जैसी शक्तिशाली रूप में उभर नहीं सकते हैं । उधर अमेरिका में बड़े व्यापार के हित इतने शक्तिशाली हो चुके हैंकि तमाम नागरिक स्वतंत्रताआें के बावजूद उनका ही एजेंडा हावी हो जाता है । इन दो तरह की समस्याआें से बचते हुए हमें ऐसे लोकतंत्र को मजबूत करना चाहिए जिसमें जनसाधारण की आवाज व गलतियों को ठीक करने वाली जरूरी चेतावनियां असरदार ढंग से सरकार व निर्णय प्रक्रिया तक पहंुच सके । हाल की बी.टी. बहस के दौरान देखा गया कि जहां पर्यावरण मंत्रालय काफी खुले मन से सब तरह के विचारों को सुन रहा था व जन-सुनवाईयों का आयोजन कर रहा था, वही कृषि मंत्रालय से इस दौरान ऐसे बयान आए जो कि पूरी तरह उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वकालत करने वाले थे जो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार खाद्य फसलों का प्रसार भारत में करने के लिए बहुत जोर लगा रही है । कृषि मंत्री शरद पवार के कुछ बयानों की इस कारण ज्यादा आलोचना हुई कि इससे महंगाई और मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलता है, पर बेहद विवादास्पद बहुराष्ट्रीय कंपनियों से पूरी तरह एक हो जाना भी कोई कम चिंता का विषय नहीं है । इस बारे में विश्वस्तर पर बहुत सी जानकारी उपलब्ध हैं कि विभिन्न देशों में यह कंपनियां किस तरह की अनैतिकता और भ्रष्टाचार से जुड़ी रहीं है । अत: उनसे किसी वरिष्ठ नेता की अत्यधिक निकटता चिंता का विषय है । विश्व स्तर पर जेनेटिक इंजीनियरिंग ऐसी छ:-स्तर कंपनियों के हाथ में केंद्रित हो गई है जो इसके उपयोग से विश्व खाद्य व कृषि व्यवस्था पर अपना नियंत्रण मजबूत करना चाहती हैं । इनमें वे कंपनियां भी हैं जिन्होंने भारत जैसे जैव-विविधता में संपन्न देशों के बीजों और पौध-संपदा पर अनैतिक तौर-तरीकों से कब्जा जमाने के कई प्रयास किए हैं । इन कंपनियों ने अरबों डालर जेनेटिक इंजीनियरिंग के कृषि उपयोग में झोंक दिए हैं । परंतु जब इन फसलों व तकनीकों के दुष्परिणाम सामने आने लगे तो उनके हाथ-पैर भी फूलने लगे । ऐसी स्थिति उत्पन्न होने लगी कि भविष्य में निर्यात वहीं से होगा जो जेनेटिक इंजीनियरिंग की फसलों से मुक्त क्षेत्र होगा। अब यह कंपनियां चाहती हैं कि भारत व चीन जैसे बड़े स्तर की खेती वाले देशों में शीघ्र ही इन फसलों को फैला दिया जाए ताकि सबको मजबुरी में इन खतरनाक फसलों को ही स्वीकार करना पड़े । उनके इस कुप्रयास का जमकर विरोध होना चाहिए । यह कंपनियां अपने पक्ष में कहती है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग से उत्पादकता बढ़ती है । पर अमेरिका में जहां इन फसलों का अधिकतम प्रसार हुआ है, वहां फ्रेण्ड्स फार अर्थ तथा यूनियन फार कन्सर्नड साइंर्टिस्टस के प्रामाणिक अध्ययनों ने बता दिया है कि इन फसलों से उत्पादकता नहीं बढ़ी है । इन कंपनियों के दावे आंकड़ों की हेराफेरी पर आधारित होते हैं । इस तरह भ्रम फैलता है कि ऊंची उत्पादक जेनेटिक इंजीनियरिंग से मिली है जबकि यह हकीकत नहीं है । दूसरी ओर स्वास्थ्य व पर्यावरण पर इनके भीषण दुष्परिणाम सामने आ चुके हैं । जैफरी स्मिथ की पुस्तक जेनेटिक रूलेट (जेनेटिक जुआ) में लगभग ३०० पृष्ठों में ऐसे दुष्परिणामों की लंबी सूची दी गई है । अत: इन खतरनाक फसलों से बहुत सावधान रहना जरूरी है ।***
लकड़ी खाने वाला अनोखा समुद्री जीव
लकड़ी खाने वाला छोटा समुद्री जीव नई बॉयो इंर्धन बनाने मेंे अहम साबित हो सकता है । ये शोध नेशनल एकेडमी ऑफ सांइस की एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है । यह जीव सैकड़ों वर्षोंा से जहाजों को बर्बाद कर रहा है, इसका नाम है `ग्रिब्बल' । वैज्ञानिकों का कहना है कि इस जीव में अनूठी पाचन प्रणाली है जो लकड़ी को शर्करा में बदल देती है जो लकड़ी को शर्करा में बदल देती है । इस बदलाव से अल्कोहल आधारित इंर्धन बनाया जा सकता है । ग्रिब्बल के पेट में ऐसे एंजाइम्स पाए गए हैं जिनसे लकड़ी को शर्करा में बदला जा सकता है । वैज्ञानिक आशा कर रहे हैं कि एंजाइम्स को बनाने वाले जीन को डिकोड कर पाएँगे और फिर इससे बड़ी मात्रा में एंजाइम्स बनाएँगे । शोध टीम के प्रमुख प्रो. साइमन मैक्वीन मैसन का कहना है कि ग्रिब्बल की आँत आश्चर्यजनक है । क्योंकि, ज्यादातर जीवों की आँतों में जीवाणु तक नहीं होते हैं । वैज्ञानिक कृत्रिम एंजाइम्स बनाने की शुरूआत भी कर चुके है ।

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