बुधवार, 9 जून 2010

८ खास खबर

अब इंसान बन जाएगा ईश्वर
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम जीवन की रचना करने का दावा किया है । उन्होनें मानव निर्मित डीएनए से एक जिंदा कृत्रिम कोशिका बनाने में सफलता हासिल की है । लेकिन उनकी इस कोशिश ने नैतिक, दार्शनिक व वैज्ञानिक सवाल भी पैदा किए हैं । शोधकर्ता ने कम्प्यूटर के जरिए चार रसायनों की मदद से एक कृत्रिम कोशिका बनाई है क्रेग वेंटर इंस्टीट्यूट के प्रमुख अनुसंधानकर्ता डॉ. क्रेग वेंटर ने कहा-हम इसे कृत्रिम कोशिका इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह पूरी तरह कृत्रिम क्रोमोजोम से तैयार की गई है कृत्रिम क्रोमोजोम एक केमिकल सिंथेसाइजर में कम्प्यूटर के जरिए चार रसायनों के घोल से तैयार किया गया । साइंस पत्रिका में छपे इस शोध को मील का पत्थर बताया जा रहा है । पूर्व में डॉ. वेंटर की अगुवाई वाली टीम ने एक बैक्टीरिया में प्रत्यारोपित किया था । बाद में उन्होंने इस बैक्टीरिया के जीनोम को एक अन्य बैक्टीरिया में प्रत्यारोपित किया था । इस बार उन्होंने दोनों तरीके अपनाए और कृत्रिम कोशिका की रचना कर डाली । डॉ. वेंटर व उनकी टीम में शामिल अनुसंधानकर्ताआें का दावा है कि वे इस विधि से जीवन की बुनियादी मशीनरी को समझ सकेंगे । बैक्टीरिया की कौशिकाएँबना पाएँगे । इससे दवाइयाँ व जैव इंर्धन बन सकेंगा । अमेरिका में वेज्ञानिक पहली सिथेटिक कोशिका बनाने में कामयाब हुए है ।शोधकर्ताआें को उम्मीद है कि वे बैक्टीरिया की कोशिकाएँ बनाने में कामयाब हो पाएँगे, जिससे दवाइयां और इंर्धन बन सकेंगी । शोध टीम की अगुवाई डॉ. क्रेग वेंटर ने की । उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पहले सिंथेटिक बेक्टीरिया जीनोम बनाया था और एक बैक्टीरिया से दूसरे में जीनोम प्रतिरोपित किया था अपनी नई उपलब्धि पर उन्होंने कहा कि इससे नई औद्योगिक क्रांति आ सकती है अगर हम इन कौशिकाआें का इस्तेमाल कामकाज में कर पाएँ तो उद्योगों में तेल पर निर्भरता कम हो जाएगी और वातावरण में कार्बन डाईआक्साईड भी कम हो सकती है । डॉ. वेंटर की टीम कई इंर्धन और दवा कंपनियों के साथ काम कर रही है ताकि बैक्टीरिया के ऐसे क्रोमोसोम बनाए जा सकें, जिससे नई दवाईयाँ और इंर्धन बन सके । लेकिन आलोचकों का कहना है कि सिंथेटिक जीवों के फायदों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है । ब्रिटेन की जीनवॉच संस्था की डॉ. हेलन कहती है कि सिंथेटिक बैक्टीरिया का इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है उनका कहना है कि अगर आप वातावरण में नए जीव छोड़ देंगे तो इससे फायदे के मुकाबले नुकसान ज्यादा होगा, क्योंकि आपको नहीं पता कि ये वातावरण में किस तरह के बदलाव करेंगे । वैज्ञानिकों ने लाइफ क्रिएट करने का नया ऑपरेटिंग सिस्टम ढँूढ निकाला । कम्प्यूटर की भाषा में यह कहें तो वैज्ञानिकों ने जिनेटिक कोड का नया वर्जन २.० पेश किया है । वैज्ञानिकों को इस नए ऑपरेटिंग सिस्टम मे जिनेटिक कोड को ऐसे लाईफ प्रोटीन बदलने में कामयाबी मिली है, जैसा कि अभी तक नेचरल वर्ल्ड में कभी नहीं देखा गया । सभी जीवित चीजों में चार लेअर का जिनेटिक कोड होता है, जिसे न्यूक्लियोटाइड कहते है ही तीन न्यूक्लियोटाइड मिलकर जीवन के लिए जरूरी एक अमीनो एसिड बनाते हैं न्यू साइंटिस्ट के मुताबिक, रिसर्चर जैसन चिन की अगुआई में कैंब्रिज युनिवर्सिटी की टीम ने किसी कोशिका की मशीनरी को इस तरह डिजाइन करने में सफलता पाई की यह चार न्यूक्लियोटाइड को जीवन के एक अणुरूपी कॉम्बिनेशन के रूप में पढ़ सकें जीवन के लिए ऐसे ६४ कॉम्बिनेशन जरूरी है ।इन चार लेअर वाले जिनेटिक कोडों को कोडोंस कहा जाता है । लेकिन ब्रिटिश टीम ने ऐसे २५६ ब्लैंक कोडोंस ईजाद करने में कामयाबी हासिल की है ये कोर्डोस अमीनों एसिड की जगह ले सकते है जो कि अभी तक वजूद में ही नहीं थे । ब्रिटेन के न्यूकासलन विश्वविद़्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला मे मानव शुक्राणु बनाने का दावा किया । वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया मे पहली बार हुए इस प्रयोग की सफलता से पुरूषों में बंध्यता या पिता नहीं बन पाने की समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है प्रयोगशाला में स्पर्म (शुक्राणु) विकसित करने के अपने सफल प्रयोग की रिपोर्ट विज्ञान पत्रिका स्टेम सेल एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुई थी इस क्षेत्र से जुड़े कई अन्य वैज्ञानिकों को इस बात पर संदेह है कि पूरी तरह से विकसित शुक्राणुआेंको प्रयोगशाला में पैदा किया गया है । लेकिन न्यूकासल के वैज्ञानिकों ने एक वीडियो जारी कर दावा किया था कि उनके द्वारा बनाए गए शुक्राणु पूरी तरह विकसित और गतिशील हैं । प्रयोगशाला में विकसित शुक्राणुआेंका गर्भ धारण कराने में इस्तेमाल नही किया जा सकता । क्योंकि ब्रिटेन में इसकी अनुमति नहीं है और इस पर कानूनन पाबंदी है । इन शुक्राणुआें का आगे कोई उपयोग हो सके, इसके लिए जरूरी है कि पहले उन भ्रूणों की गारंटी दी जाए जिनसे स्टेम कोशिकाएँ लेकर शुक्राणु बनाए जाते हों । वैज्ञानिकों का कहना था कि ये चिंता करना कि हमारा मकसद इन शुक्राणुआें के इस्तेमाल से बच्च्े पैदा करने का है, गलत है । हम जो कर रहे हैं वह पुरूषों में बंध्यता की समस्या को समझने की, शुक्राणुआें के विकास को समझने की कोशिश है । ***

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