रविवार, 24 अप्रैल 2011

परम्परा


जीवन मूल्यों की अहमियत
जार्ज मॉनबिट

विज्ञापन से संचालित आधुनिक उपभोक्तावादी संस्कृति हमें असहज, असंतुष्ट, स्वार्थी व कुछ हद तक क्रुर भी बना रही है । इस सबके बीच हम बाहरी दिखावा करने वाले दुनिया पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेना चाहते है । परिस्थितियोंमें बदलाव के लिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सहजता, सदाशयता ओर करूणा को अपनाएं ।
हम कत्लगाह के दरवाजे पर कतार लगाए दस्तक दे रहे है । आज अमीरों की गलतियों के लिए गरीबों को दंडित किया जा रहा है ।, विश्ववाद को हमने कचरे की टोकरी में फेंक दिया है और राज्यों द्वारा सुरक्षा प्रदान करने के सिद्धांत का विलोपन कर दिया गया है । कुछ छोटे मोटे विरोध के अलावा उपरोक्त मामले में हमारी व्यापक लड़ाई के मुद्दे नहीं बन पाए है । अपने हितों की खिलाफत करने वाली नीतियों के प्रति हमारी स्वीकृति २१ वीं सदी में अबूझ पहेली है । संयुक्त राज्य अमेरिका के सफे दपोश कर्मचारी आक्रोशित होकर स्वयं को स्वास्थ्य सेवाआें की परिधि से बाहर रखने की मांग कर रहे है और साथ ही इस मांग पर अड़े है कि अरबपतियों को कम से कम कर अदा करना चाहिए ।
मुझे इसका उत्तर विश्व वन्यजीव कोष नामक पर्यावरण समूह के लिए टाम क्राम्पटन द्वारा लिखी गई रूचिकर रिपोर्ट साझा मुद्दे अपने सांस्कृतिक मूल्यों के साथ कार्य में मिला जिसमें मनोविज्ञान के क्षेत्र में हाल में हुई प्रगति के माध्यम से समाज क्षेत्र में हाल में हुई प्रगति के माध्यम से समाज कल्याण को लेकर जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए है । प्रगतिवादी मानव ज्ञान के जिस मिथक से प्रभावित है उसे टाम क्राम्पटन ज्ञानोदय या दिव्यता मॉडल की संज्ञा देते है । इससे लोग वास्तविकता का आकलन कर विवेकपूर्ण निर्णय की ओर अग्रसर होते है । इस हेतु लोगों से आंकड़ों से बाहर निकालने का आग्रह करना होगा जिससे कि वे अपनी इच्छाआें और हित से संबंधित निर्णय ले सकें।
वास्तविकता यह है कि विवेकपूर्ण ढंग से लागत - लाभ विश्लेषण करने के बजाए हम केवल उन्हीं जानकारियों को स्वीकार करते है जो हमारे मूल्यों और पहचान को स्थापित करती है । इस प्रक्रिया में विरोधाभासी जानकारियों को हम अस्वीकार कर देते है । दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपनी सोच को अपनी सामाजिक पहचान के ईद गिर्द ढाल लेते है और उसकी गंभीर चुनौतियों से रक्षा भी करते है । इतना ही नहीं असहज वास्तविकता से मुंह मोड़कर परिवर्तन के विरूद्ध कठोर रवैया अपना लेते है ।
मनोवैज्ञानिक हमारी सामाजिक पहचान को दो मूल्यों बाह्य और आंतरिक के रूप में विश्लेषित करते है । बाह्य मूल्य हमारे जीवनस्तर और स्व विकास को संबोधित होते है । शक्तिशाली बाह्य मूल्य रखने वाले सोचते है कि अन्य लोग उन्हें किस रूप में देखते है । वे वित्तीय सफलता, छवि और प्रसिद्धि को अत्यधिक महत्व देते है । आंतरिक मूल्यों या प्रतिबद्धताआें का संबंध मित्रों, परिवार और समुदाय से संबंधों और आत्म स्वीकृति से है । जिन लोगों में प्रबल आंतरिक प्रतिबद्धता होती है वे अन्य व्यक्तियों की प्रशंसा या पुरस्कार पर निर्भर नहीं होते । उनके विश्वास उनके स्व हित में ही परिलक्षित होते है ।
कुछ लोग पूर्णतया बाह्य या पूर्ण आंतरिक प्रतिबद्धताआें वाले होते है । लेकिन हमारी सामाजिक पहचान सामान्यता इन दोनों के मिश्रण से ही बनती है । करीब ७० देशों में मनौवैज्ञानिक प्रयोग यह दर्शाते है कि लोग वित्तीय सफलता को बहुत महत्व देते है, उनमें दूसरे के प्रति कमतर सहानुभूति, जोड़तोड़ की कठोर प्रवृत्ति, वंशवाद और असमानता के प्रति अत्यधिक आकर्षण, अपरिचितों के प्रति कठोर पूर्वाग्रह ओर मानवाधिकार और पर्यावरण के प्रति कमतर दिलचस्पी होती है वहीं शक्तिशाली आत्म स्वीकृति वालों में दूसरों के प्रति अधिक सदाश्यता एवं मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और पर्यावरण के प्रति चिंता भाव होता है । ये मूल्य एक दूसरे पर हावी होने के प्रक्रिया में रहते है जिसकी बाह्य आकांक्षाएं बहुत तीव्र होगी उसके आंतरिक लक्ष्य उतने ही कमजोर होंगे ।
वैसे हम अपने मूल्यों के साथ जन्म नहीं लेते । हमारा सामाजिक वातावरण उन्हें ढालता है । राजनीति भी हमारी सोच को उतना ही बदलती है जितना की परिस्थितियां। उदाहरण के लिए सभी के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवाआें का प्रावधान हमारी आतंरिक प्रतिबद्धता को पुष्ट करता है । गरीबों की स्वास्थ्य सेवाआें से बेदखली असमानता का सामान्यीकरण करती है और बाह्य मूल्यों को सशक्त बनाती है ।
मार्गरेट थैचर के शासन में आने के बाद ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर दक्षिणपंथी झुकाव प्रारंभ हुआ जो कि ब्लेयर ब्राउन के कार्यकाल में भी जारी रहा । इन सभी सरकारों ने प्रतिस्पर्धा को अत्यधिक प्राथमिकता दी ं इसी के साथ बाजार और वित्तीय सफलता ने हमारे जीवन मूल्यों को ही परिवर्तित कर दिया ं इस दौरान धन और अवसरों के पूनर्वितरण की नीतियों के संबंध में जनसमर्थन में तेजी से कमी आई । इस परिवर्तन को विज्ञापन और मिडिया ने ओर मजबूती प्रदान की ।
मीडिया की असक्ति सत्ता की राजनीति पर हुई । इसकी धनवानों की सूची में १०० सर्वाधिक शक्तिशाली, प्रभावशाली, बुद्धिमान या संुदर व्याक्तियों को सम्मिलित किया गया । साथ ही मिडिया ने अपनी सनक में प्रसिद्ध व्यक्तियों, फैशन, तेज गति की कारों और महंगे अवकाश स्थलों को प्रोत्साहित किया । इन सबने बाह्य मूल्यों को लोगों के मन में बैठा दिया । असुरक्षा और अपर्याप्त्ता की भावना जगाने का अर्थ है स्व स्वीकृति का ह्ास होना । साथ ही ये आंतरिक लक्ष्यों का गला भी घोटते है ।
विज्ञापन जगत जो कि बड़ी संख्या में मनोवैज्ञानिकों को नियुक्त करता है । इस सबसे अच्छी तरह से वाकिफ है । वैश्विक विपणन कंपनी जेडब्यूटी के वैश्विक योजना निदेशक मरफी का कहना है हमेंब्रांड मैनेजर नहीं सामाजिक इंजीनियर बनना है और किसी ब्रांड के बारे में विचार बदलने के बजाय सांस्कृतिक शक्तियों को चालाकी से प्रभावित करना है । वे जैसे ही हमारे बाह्य मूल्यों को मजबूती प्रदान करती है उन्हें उत्पाद बेचते में आसानी हो जाती है ।
दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञों ने राजनीतिक पटल के परिवर्तन में जीवन मूल्यों के महत्व को भी अच्छी से समझ लिया है । थैचर की प्रसिद्ध टिप्पणी है दिल और आत्मा को बदलने के लिए अर्थव्यवस्था एक औजार है । अमेरिका में भी कंजरवेटिव सामान्यता वास्तविकता ओर आंकड़ों पर बहस करने से घबराते है । इसके बजाए वे मुददों को इस तरह प्रस्तुत करते है जिससे बाह्य मूल्य ज्यादा आकर्षक प्रतीत होकर स्थापित होते है ।
इस प्रवृत्ति के जवाब में प्रगतिवादियों को रवैया भी विध्वंसकारी है । मूल्यों में आ रहे बदलाव से टकराव के बजाय हम उन्हें अपनाना चाहते है । एक समय प्रगतिशील कहे जाने वाले राजनीतिक दलों के नए नजरिए पर गौर करना आवश्यक है। नई लेबर पार्टी द्वारा जिसे स्व लाभ की कुंजी ही कहा जा सकता है । ऐसा करते समय वे बाह्य मूल्यों को न केवल स्वीकार ही कर रहे है बल्कि उन्हें वैधता भी प्रदान कर रहे है। इस संदर्भ में कई ग्रीन (पर्यावरण) और सामाजिक न्याय अभियानों द्वारा आम जनता को दिए जा रहे संभाषणों पर भी गौर करना आवश्यक है । उदाहरण के लिए विकासशील देशों को गरीबी से मुक्त कराने से ब्रिटिश उत्पादों का बाजार बढ़ेगा या हाईब्रीड कार खरीदने से आप अपने मित्रों को प्रभावित कर पाएगें और आपका जीवन स्तर ऊँचा होगा । इस रणनीतियों से बाह्य मूल्यों में मजबूती आएगी । प्राकृ तिक या ग्रीन उपभोक्तावाद भी एक प्रलयंकारी भूल है ।
कामन काज ने इसका बहुत आसान इलाज बताते हुए कहा है कि हम अपने मूल्यों को दफन होते देखना बंद करें और इसके बजाए उन्हें लोगों को समझाएं और उन पर आचरण करें तथा वे राजनीतिक परिवर्तन के मनोविज्ञान को समझने में मदद करें और लोगों को बताएं कि इसमें किस स्तर पर हेरा-फेरी की जा रही है ।
इन शक्तियों खासकर विज्ञापन उद्योग, जो कि हमें असुरक्षित और स्वार्थी बनाता है , को चुनौती देने के लिए हम सबको एकजुट होना होगा । ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता एक मिलिबेंड ने कहा है कि वे चाहते है कि समाज में परिवर्तन आए जिससे कि समुदाय और परिवार का सम्मान बढ़े । साथ ही हमें हमारी विदेशी नीति को बदलना होगा । जिससे कि वह हमेशा मूल्यों पर खड़ी रहे न कि केवल गठजोड़ (मित्र राष्ट्रों) के भरोसे ।
परंतु यहां भी पशोपेश की स्थिति है । क्योंकि इन परिवर्तनों के लिए हम सिर्फ राजनीतिज्ञों पर ही भरोसा कर सकते है । अगर पारिभाषिक तौर पर देखें तो राजनीति में ही लोग सफल हुए है जिन्होनें बाह्य मूल्यों को प्राथमिकता दी है । उनकी आकांशाआें की प्रतिपूर्ति हमें मानसिक शांति, पारिवारिक, जीवन दोस्ती और अंतत: भाईचारे से करना होगी । अतएव आवश्यक है कि हम स्वयं को बदलें । हम जिस तरह की रानीति चाहते है । उस पर बहस करनी होगी । यह बहस कार्यसाधकता या औचित्य के आधार पर नहीं सदाशयता और करूणा के आधार पर होगी । अन्य के खिलाफ इस बहस का आधार होगा । कि वे स्वार्थी और क्रूर है ।
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