गुरुवार, 22 मार्च 2012

प्रदेश चर्चा

झारखंड : प्रदूषण का गुणगान
उमाशंकर एस./संजीव कुमार कंचन

विश्व बैंक की कार्यप्रणाली को देखकर कहा जा सकता है कि हाथी के दांत खाने के और तथा दिखाने के और । झारखंड की उषा मार्टिन की स्टील निर्माण इकाई से फैलते प्रदूषण ने न केवल आसपास के निवासियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला है बल्कि समीपवर्तीकृषि भूमि को भी बंजर बना दिया है । इस दोहरी मार के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थाआें द्वारा तीसरी दुनिया के देशों में प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयों को दी जा रही आर्थिक मदद अपनी कहानी खुद कह रही है ।
रेल जैसे ही धीमे-धीमे झारखंड के जमशेदपुर नगर की ओर बढ़ती है वैसे-वैसे आकाश लाल होता दिखाई देने लगता है औद्योगिक इकाई से उड़ती घनी लाल धूल जिसमें कि बिना जले कोयले की धूल एवं राख का अंबार है । यह इकाई है उषा मार्टिन समूह के स्वामित्व की एक मध्यम स्तर की लौह एवं स्टील मिल । जमशेदपुर के एक उपनगर आदित्यपुर में करीब १२० हेक्टेयर में फैली यह मिल सन् १९७४ से कार्यरत है । इस इकाई में दो छोटी (ब्लास्ट) भटि्टयां, तीन कोयला आधारित स्पंज आयरन भटि्टयां जिनकी क्षमता ३५० टन प्रतिदिन है और तीन बिजली चलित भटि्टयां हैं, जिनमें स्टील निर्माण होता है । भारत के पूर्वी हिस्से में प्रदूषण फैलाती स्पंज आयरन इकाईयों को सामान्य तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन उषा मार्टिन इकाई के मामले में यह इसलिए षड़यंत्रकारी प्रतीत होता है क्योंकि इसे विश्व बैंक की निजी क्षेत्र विकास शाखा अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) से धन प्राप्त् होता है ।
वर्ष २००२ में अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम ने उषा मार्टिन में १४.५ प्रतिशत हिस्सेदारी (२४०.६ लाख अमेरिकी डॉलर) हासिल कर ली थी । वित्त निगम के अनुसार यह धन उन्हें स्पंज आयरन भट्टी के साथ ७.५ मेगावाट का बिजली संयंत्र डालने के लिए दिया गया था और इस संयंत्र का परिचालन भट्टी से निकलने वाली बेकार गरम गैसों से होना था । अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम दक्षिण एशिया के तत्कालीन निदेशक डिमिट्रिज टस्टिरागोस का कहना था कि कंपनी के द्वारा इस अंचल में पर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक सुधार के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयत्नों ने हमें इस परियोजना में निवेश करने हेतु प्रेरित किया है । धन की स्वीकृति देते हुए निगम का निष्कर्ष था कि उषा मार्टिन धन प्रािप्त् हेतु पर्यावरण प्रभाव के पैमाने के हिसाब से बैंक की बी श्रेणी में आती है । इस श्रेणी का अर्थ है ऐसी परियोजनाएं जिनमें सीमित मात्रा में प्रतिकूल सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों की संभावनाएं हो और ये अक्सर विशिष्ट स्थान मूलक होती हैं तथा थोड़े बहुत प्रयास के पश्चात इनके विपरीत प्रभावों को समाप्त् किया जा सकता है ।
झुरकुली के तारकनाथ शिकायत करते हुए कहते हैं, मिल की स्टील पिघलाने वाली भट्टी से निकलने वाली घनी लाल बस्ती के सभी ८० परिवारों को प्रभावित कर रही है । सभी लोग जिसमें कि विशेषकर बच्च्े शामिल हैं सांस संबंधी समस्याआें से प्रभावित हैं । यहां पर किसी भी तरह की स्वास्थ्य सेवा भी उपलब्ध नहीं है । हम उपचार के लिए शहर जाना पड़ता हैं ।
इस इलाके का पानी का महत्वपूर्ण स्त्रोत सीतारामपुर बांध भी मिल के बिना उपचारित जल के बांध में जाने से प्रदूषित होता जा रहा है । झारगोविन्दपुर के गणेश मण्डल बताते हैं कि मिल भटि्टयों से निकला अपना ठोस अपशिष्ट मुख्य रेलवे लाईन के पास में फेंक देती है जिसकी वजह से १०० परिवारों का जीवन प्रभावित हो रहा है । बारिश में भारी धातुएं जमीन में समा जाती हैं । रात में अत्यधिक उत्सर्जन की वजह से सुबह उठने पर हम अपने पूरे गांव पर लाल धूल की मोटी परत जमी हुई पाते हैं ।
अनेक निवासी जो पहले खेती पर निर्भर थे अब नजदीक की औघोगिक इकाइयों जिसमें उषा मार्टिन भी शामिल है, में दिहाड़ी पर काम करने लग गए हैं । मण्डल का कहना है कि उषा मार्टिन मिल से होने वाले प्रदूषण ने कृषि भूमि को अनुपजाऊ बना दिया है । गांव के लोगों को मिल में रोजगार तो मिलता है लेकिन केवल ठेकेदार के माध्यम से जो कि इनके द्वारा अर्जित धन का बढ़ा हिस्सा ले उड़ता है । इतना ही नहीं संयंत्र में अक्सर व्यवसायगत दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं । अनेक दुर्घटनाआें की वजह से वर्ष २००७ से अब तक ६ मजदूरों की मृत्यु भी हो चुकी है ।
कार्यवाही का अभाव - मिल से होने वाले उत्सर्जन का बड़ा कारण है बिजली की भट्टी की प्रक्रिया, जिसमें कि व्यवस्थित द्वितीयक उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली अभी तक स्थापित नहीं की गई है । झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी आर.एम. चौधरी का कहना है नागरिकों से बार-बार वायु, जल एवं ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की शिकायतें मिली हैं जिनसे तदुपरान्त नोटिसों के जरिए मिल को भी अवगत करा दिया गया है । जनवरी २०१० में बोर्ड की शर्तो का पालन न करने पर मिल को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया था जिसमें कहा गया था कि संयंत्र का निरीक्षण स्वतंत्र एजेंसियों से क्यों नहीं कराया गया । पर्यावरणविदो ने पाया कि जमशेदपुर स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कार्यालय बहुत कम कर्मचारियों के साथ कार्य कर रहा है और यहां की प्रयोगशाला भी कार्यशील नहीं है । वैसे मिल द्वारा दिए गए नोटिस पर किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की गई हैं ।
वहीं दूसरी ओर उषा मार्टिन जमशेदपुर मिल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रमुख विजय शर्मा का कहना है कि शिकायतों पर गंभीरता से कार्य किया गया है । उनका मानना है कि हमारी स्टील पिघलाने वाली भट्टी २५ वर्ष पुरानी है और इसमें कुछ कम अवधि की प्रक्रियाआें में आए परिवर्तन से उत्सर्जन में वृद्धि हो गई है । हम वायु उत्सर्जन पर नियंत्रण हेतु एक उच्च् क्षमता वाली प्रणाली जून २०१२ तक स्थापित कर देंगे । विजय शर्मा का यह भी कहना है कि विस्तार कार्यक्रम के चलते वर्ष २०१३ तक हमारा वार्षिक स्टील उत्पादन १० लाख टन पहुंच जाएगा और इससे उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को संयंत्र में पुन: इस्तेमाल कर लिया जाएगा और बाकी को किसी दूरस्थ स्थान पर पर्यावरण अनुकूल तरीके से निस्तारित कर दिया जाएगा ।
त्रुटिपूर्ण मान्यता - मिल के ७.५ मेगावाट का विद्युत संयंत्र संयुक्त राष्ट्र स्वच्छ विकास प्रणाली (एसडीएम) योजना के अन्तर्गत पंजीकृत है । लेकिन इसमें प्राथमिक पर्यावरण अनुपालन रोकथाम तक की सुविधा नहीं है जो कि क्रेडिट जारी करने का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह रियो घोषणा पत्र की कार्यसूची के उस उद्देश्य का उल्लघंन है जो कि प्रदूषण के न्यूनतम होने की बात कहता है । दक्षिण एशिया-अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम के निदेशक थामस डेवनपोर्ट से गतवर्ष एक साक्षात्कार में जब भारत में अच्छे निवेश के बारे में पूछा गया तो उन्होनें उषा मार्टिन को एक दीर्घावधि वाला बेहतर निवेश बताया था ।
प्रदूषण के बारे में पूछने पर अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम का कहना है निगम समय-समय पर अपने ग्राहकों द्वारा अपनाई जा रही पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रक्रियाआें के आकलन हेतु ग्राहकों के स्थल का भ्रमण करता है । हम मजबूत पर्यावरणीय एवं सामाजिक परिणाम सामने लाने हेतु ग्राहकों के साथ मिलकर प्रयत्न करते हैं । इसी तरह हम उषा मार्टिन के साथ मिलकर भी सकारात्मक पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव पाने हेतु कार्य करेंगे ।

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