रविवार, 19 जनवरी 2014

ज्ञान विज्ञान
दबा हुआ खजाना सपनों में नहीं, पत्तियों पर दिखता है

    पता नहीं सपने में खजाने दिखने की बात पर कितना भरोसा करना चाहिए मगर हाल ही में शोधकर्ताआें ने बताया है कि ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले युकेलिप्टस के पेड़ों की पत्तियों को देखकर बताया जा सकता है कि उनके नीचे सोना दबा हुआ है । जिस जमीन में सोना गड़ा हो, उस पर उगने वाले युकेलिप्टस की पत्तियों में सोने के लवण जमा हो जाते हैं । और ये पेड़ ४० मीटर की गहराई से भी सोने को खींचकर पत्तियों में जमा कर लेते हैं । 
     यह शोध ऑस्ट्रेलिया की विज्ञान शोध संस्था सीएसआईआरओ के मेल लिंटर्न और उनके साथियों ने किया है । पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के दो स्थानों पर लिंटर्न व उनके साथियों ने यह दर्शाया है कि पौधे अपने वाहक ऊतक की मदद से सोने को सोख लेते हैं और पत्तियों तक पहुंचा देते हैं जहां इसे जमा कर लिया जाता है । पत्तियों में सोने की सांद्रता १०० अंश प्रति दस अरब अंश (पीपीबी) तक पहुंच सकती है ।
    प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों से पता चला कि सोने के आयन पानी में घुल जाते हैं और जड़े इन्हें सोख लेती है । वैसे तो सोना पौधों के लिए विषैला होता है मगर युकेलिप्टस के पेड़ में इसे कैल्शियम ऑक्सलेट के क्रिस्टलों में कैद कर दिया जाता है जिसकी वजह से यह कोशिकाआें के कामकाज को प्रभावित नहीं कर पाता ।
    उपरोक्त परिणामों से पता चलता है कि जमीन में सोने के भण्डार खोजने में पेड़ों की मदद ली जा सकती है । लिंटर्न का तो कहना है कि यह विधि इतनी कारगर है कि हो सकता है कि कुछ कंपनियों को पहले से इसकी जानकारी हो और उन्होनें इसे छिपाया हो । खैर, इतना तो मानना ही होगा कि सपनों से तो ज्यादा विश्वसनीय होगी यह विधि ।

उम्र बताने की रासायनिक घड़ी

    उम्र बढ़ने के साथ बाल सफेद होना और झुर्रियां पड़ना तो बाहरी लक्षण भर हैं । ताजा शोध से पता चला है कि शरीर में कुछ अंदरूनी रासायनिक लक्षण भी होते हैंजो उम्र को नाप सकते हैं । ये रासायनिक चिन्ह हमारी आनुवंशिक सामग्री यानी डीएनए पर उम्र के साथ नजर आते   हैं । इन्हें शरीर का एपिजीनोम कहते  हैं । ऐसा ही एक चिन्ह है डीएनए पर मिथाइल समूहों का जुड़ना ।
    पिछले कुछ वर्षो में जीव वैज्ञानिकों ने डीएनए के उन हिस्सों का काफी अध्ययन किया है जहां उम्र बढ़ने के साथ मिथाइल समूह काफी मात्रा में जुड़ जाते हैं । इस तरह के मिथाइलीकरण का एक परिणाम यह होता है कि कुछ जीन्स काम करना बंद कर देते हैं । अब कैलिफोर्निया विश्वविघालय के जैव-सूचनाविद स्टीव हॉवर्थ ने दर्शाया है कि शरीर के विभिन्न ऊतकों में मिथाइलीकरण का स्तर किस ढंग से बदलता है । उन्होंने दर्शाया है कि मिथाइलीकरण का स्तर जन्म से लेकर १०१ वर्ष की उम्र तक उम्र का बढ़िया द्योतक है । यह खास तौर से गेर-कैंसर ऊतकों के मामले में बढ़िया काम करता है । 


     डी.एन.ए. मिथाइलीकरण के आधार पर उम्र की घड़ी विकसित करने के लिए हॉवर्थ ने डीएनए मिथाइलीकरण के ८२ सार्वजनिक डैटा सेट्स में से ८००० नमूनों की जानकारी का विश्लेषण किया । इस नमूने में ५१ विभिन्न स्वस्थ मानव ऊतक शामिल  थे । इसके अलावा उन्होंने ६००० ऐसे नमूनों का भी विश्लेषण किया जो कैंसरग्रस्त थे । इन सबमें उन्होंने मिथाइलीकरण के चिन्हों का अध्ययन किया । हॉवर्थ ने कुल ३५३ एपिजीनोम चिन्हों का उपयोग किया।
    जांच करने पर देखा गया कि मिथाइलीकरण के आधार पर तमाम ऊतकों और कोशिकाआें की उम्र का काफी अच्छा अंदाज लगाया जा सकता है - गलती एकाध साल की ही होती है । और तो और, इस विधि से गणना करने पर नवजात शिशुआें के ऊतकों की उम्र लगभग शून्य आई जबकि जन्म पूर्व ऊतकों तथा बहुसक्षम स्टेम कोशिकाआें की उम्र ऋणात्मक निकली । लगता है कि एपिजीनोम पर आधारित यह घड़ी काफी सटीकता से उम्र का हिसाब रखती है ।
    आश्चर्य की बात यह रही कि किसी भी स्त्री में स्तनों के सामान्य ऊतकों की उम्र उसी स्त्री के शेष ऊतकों से लगभग २-३ साल ज्यादा निकली । जिन महिलाआें को स्तन कैंसर था, उनमें रोगग्रस्त ऊतक के आसपास स्थित ऊतकों की उम्र शेष ऊतकों की तुलना में १२ साल तक ज्यादा पाई गई । स्टीव हॉवर्थ ने यह भी पाया कि २० कैंसरग्रस्त ऊतकोंकी उम्र स्वस्थ कोशिकाआें की अपेक्षा ३६ वर्ष तक ज्यादा थी ।
    कुल मिलाकर यह अध्ययन बुढ़ाने की प्रक्रिया को समझने के हमारे प्रयासों को आगे ले जाता है ।

सन् २०१६ में संभावित है मलेरिया का टीका

    मलेरिया टीके के विकास में हम एक कदम आगे बढ़े हैं । अफ्रीका में किए गए एक लम्बे परीक्षण के बाद यह आशा जगी है कि शायद मलेरिया के टीके को २०१५ तक मंजूरी मिल जाएगी और २०१६ में यह उपलब्ध हो जाएगा ।
    इस टीके का विकास पाथ मलेरिया वैक्सीन इनिशिएटिव के नेतृत्व में ग्लेक्सो स्मिथ क्लाइन ने किया है । टीके का नाम आरटीएसएस है और इसका परीक्षण अफ्रीका में ११ स्थानों के १५००० बच्चें पर किया गया है । इनमें से आधे बच्चें की उम्र ६-१२ सप्तह के बीच थी जबकि शेष आधे ५ से १७ माह के थे । प्रत्येक समूह में से आधे बच्चें को आटीएसएफ टीका दिया गया था जबकि शेष को एक प्लेसिबो (यानी टीके के नाम पर एक औषधि विहीन मिश्रण) दिया गया   था । इसके बाद सारे बच्चें को मलेरिया की रोकथाम के सामान्य उपाय एक समान दिए गए थे । इनमें मच्छरदानी का उपयोग शामिल था । 
 

    हाल ही में डरबन में आयोजित एक सम्मेलन में इस परीक्षण के आंकड़े प्रस्तुत किए गए । पाथ मलेरिया वैक्सीन इनिशिएटिव के उपाध्यक्ष डेविड कासलोव ने सम्मेलन में बताया कि परीक्षण के अट्ठारह महीनों के बाद पता चला है कि टीका ज्यादा उम्र के बच्चें में ज्यादा असरकारक है ।
    परीक्षण शुरू होने के एक साल बाद देखा गया कि बड़े बच्चें में मलेरिया के मामले में ५६ प्रतिशत कम और छोटे बच्चें में ३१ प्रतिशत कम हुए थे । डेढ़ साल पूरा होने पर लगता है कि टीके का असर थोड़ा कम हुआ है । डेढ़ साल की अवधि में मलेरिया के मामलों में बड़े बच्चें में ४६ प्रतिशत और छोटे बच्चें में २७ प्रतिशत की कमी देखी गई ।
    वैसे कासलोव का मत है कि समय के साथ टीके की प्रभाविता में कमी अपेक्षित थी । लगभग सारे टीकों के साथ ऐसा होता है कि समय के साथ उनका असर कम होता जाता   है । इसका मतलब यह कि मलेरिया के टीके का बूस्टर डोज देना  पड़ेगा । परीक्षण में शामिल एक-तिहाई बच्चें को बूस्टर डोज दिया भी जा चुका है और इसके परिणाम एक साल में सामने आ जाएंगे । अलबत्ता, प्रारंभिक परीक्षण के सकारात्मक नतीजों को देखते हुए ग्लेक्सो स्मिथ क्लाइन युरोप में इस टीके को स्वीकृति दिलवाने के लिए आवेदन करने पर विचार कर रही है ।

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