गुरुवार, 10 जुलाई 2014

वानिकी विकास और सामाजिक संस्थायें

    वृक्ष और मानव जाति का रिश्ता अनन्त काल से चला आ रहा है । किसी देश की समृद्धि उस देश की वन सम्पदा पर निर्भर करती है । देश के पर्यावरणों में वनों की प्रमुख भुमिका है । पिछले तीन-चार दशकों से देश में हो रही पर्यावरण विघटन की समस्याआें में जो जलवायु में परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है, इसका प्रमुख कारण वनों का विनाश ही है । मानव जीवन के तीन बुनियादी आधार शुद्ध हवा, ताजा पानी और उपजाऊ मिट्टी मुख्य रूप से वनों पर ही आधारित है ।
    भारत में भौगोलिक क्षेत्र के १८.३४ प्रतिशत वन क्षेत्र है । देश में वनों में आधे वन मध्यप्रदेश में है । हमारे देश में प्राचीन काल से वृक्ष पूजा का प्रचलन रहा है । देश में एक तरफ तो श्रद्धा और आस्था का दौर चलता रहा, तो दूसरी ओर बड़ी बेहरहमी से वनों को उजाड़ा जाता रहा है ओर यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है । इन दिनों पहाड़ और नदियां नग्न होती जा रही है । इस देश में बाढ़, सुखा और भुकम्प के खतरे बढ़ते जा रहे है । वनों के विनाश ने ग्लोबल वार्मिंग की विश्वव्यापी समस्या को जन्म दिया जिसके कई दुष्परिणाम धीर-धीरे सामने आ रहे है । भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का कहना है कि यदि तापमान में ३ डिग्री सेल्सीयस की वृद्धि होती है तो देश में गेहूं की सालाना पैदावार में १० से १५ प्रतिशत तक की कमी हो जायेगी ।
    हमारे देश में प्राचीन काल से ही पेड़ लगाने और सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न प्रयास होते रहे है जिसमें सरकार और समाज दोनों ही समान रूप से भागीदार होते थे । इस प्रकार राज और समाज के परस्पर सहकार से देश में खरीद संस्कृति का विकास हुआ जिसने वर्षो तक देश को हरा-भरा रखा । इन दिनों देश भर में वन महोत्सव के अन्तर्गत पौधे लगाने का अभियान चल रहा है । वानिकी विकास में समाज सेवी संस्थाआें की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर प्रयास होते रहे है । इस अभियान में शैक्षणिक और सामाजिक संस्थाआें के साथ ही बड़ी संख्या में युवा जुड़े और पौधारोपण अभियान को एक जन अभियान बनाया जा सके, इसके लिए ज्यादातर लोगों का विचार है कि इसमें स्थानीय लोगों, वन विभाग और सरकारी अधिकारियों, सामाजिक संस्थाआें और पर्यावरण कार्यकर्ताआें की सामूहिक शक्ति से ही वांछित परिणाम प्राप्त् किए जा सकेगें ।

कोई टिप्पणी नहीं: