रविवार, 15 मार्च 2015

प्राणी जगत
क्या हमारे मस्तिष्क मेंआंतरिक जीपीएस है 
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

हम यह कैसे जानते है कि कहां क्या है ? स्थानों और निर्देशों को कैसेपहचानते हैं ? हम कहां इस तरह की जानकारी संग्रहित करते हैं और याददाश्त से इसे उभारते हैं ? आज हम शुक्रगुजार है सूचना तकनीकी की ताकत के, जिसकी मदद से हमें किसी भी जगह पहुंचने के लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं । 
गूगल मैप और जियोग्राफिक पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की मदद से सही जगह पहुंचा जा सकता है । लेकिन मस्तिष्क यह सब कैसे कर पाता है ? यह सब कैसे होता है ? हमारे मस्तिष्क में आतंरिक जीपीएस कहां होता है ?
इनमें से कुछ सवालों के जवाब तीन वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन से आए हैं - युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूके) के जॉन लो कीफ, ट्रोन्डहाइम (नार्वे) के दम्पति एडवर्ड और मे-ब्रिट मोसर । इन तीनों को चिकित्सा/जीव विज्ञान का २०१४ का नोबेल पुरस्कार दिया गया है । 
कुछ समय पहले तक यह माना जाता था कि मस्तिष्क में सेरेबल कॉर्टेक्स के नीचे स्थित हिप्पोकैम्पस मस्तिष्क का स्मृति केन्द्र होता है । १९६० के अंतिम दशकों में जॉन ओ कीफ ने इस क्षेत्र में काम शुरू किया था कि मस्तिष्क कैसे व्यवहार को काबू करता है और चूहे किसी भूलभुलैया में कहां है यह कैसेपहचानना सीखते हैं । उन्होनें चूहों को एक बड़े बक्से में रखा और मस्तिष्क के चुने हुए हिस्सोंपर, विशेष तौर पर हिप्पौकेम्पस पर इलेक्ट्रोड्स चिपका दिए । चूहे जब घूमने-फिरने लग तो उनके मस्तिष्क से आने वाले इलेक्ट्रिकल संकेतों को रिकार्ड किया गया । 
शोधकर्ताआें ने पाया कि जब चूहा बक्से में किसी खास जगह (जैसे किसी कोने में) पर जाता है तो कुछ विशिष्ट तंत्रिका कोशिकाएं सक्रिय होती हैं । जब वे दूसरी जगह जाता था तो दूसरी तरह की कोशिकाआें का समूह सक्रिय हो जाता था । फिर इसके बाद ओ कीफ मस्तिष्क में वह जगह जिसे प्लेस सेल कहते हैं का पता कर सके और हिप्पोकैम्पस मेंइस तरह की प्लेस कोशिकाआें का नक्शा बना पाए । प्रत्येक प्लेस कोशिका विशेष स्थान और परिवेश में सक्रिय होती है । यह तंत्रिका मैपिंग का शुरूआती बिन्दु  था । 
उसी समय नार्वे के दम्पति मे-ब्रिट और एडवर्ड मोसर ने अपनी पीएचडी युनिवर्सिटी ऑफ ओसलो से की और सबसे पहले युनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा गए और फिर ओ कीफ के नेतृत्व में उनकी लैब में पोस्टडॉक्टरल फेलोबने । 
यहां उन्होनें चूहों में आतंरिक जीपीएस के तंत्रिका तंत्र की क्रिया पर काम करने का निर्णय लिया । यूएस के कैलीफोर्निया के कावली फाउंडेशन से रिसर्च ग्रांट हासिल करने के बाद वे ट्रॉन्डहाइम मेंरिसर्च सेटअप लगाने के लिए नार्वेलौट आए । उनका उद्देश्य यह खोजना था कि मस्तिष्क में स्थान पता करने वाली प्लेस सेल को सक्रिय होने के संकेत कहां से मिलते हैं । 
इस दिशा में, उन्होनें चूहों के हिप्पोकैम्पस और उसके आसपास के हिस्सों में सीधे इलेक्ट्रोड्स लगा दिए और उन चूहों को एक बड़े बक्सें में आजादी से घूमने के लिए छोड़    दिया । जब चूहे बॉक्स में यहा-वहां दौड़ते थे तब इलेक्ट्रोड्स से आने वाले संकेतों का विश्लेषण कम्प्यूटर की मदद से किया गया । इस प्रकार, उनके हिलन-डुलने का एक नक्शा बन गया । इसके बाद उन्होंने हिप्पोकैम्पस के एक हिस्से और आसपास के क्षेत्र को रासायनिक तरीके से सूत्र कर दिया । यह तंत्रिका की एक पतली पट्टी थी जिसे एंटोराइनल कार्टेक्स कहते हैं । उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होनें पाया कि हिप्पोकैम्पस में स्थित प्लेस सेल को उत्तेजित करने वाला संकेत सच में एंटोराइनल कॉर्टेक्स की कोशिकाआें से आ रहा था । 
वैज्ञानिकों ने देखा कि जब ये चूहे बॉक्स में स्थित किसी विशिष्ट स्थान पर जाते थे उस समय एंटोराइनल कॉर्टेक्स कोशिकाआें से आने वाले संकेत बेतरतीब नहीं थे बल्कि एक ग्रिड में व्यवस्थित थे - एक षट्कोणीय पैटर्न में मधुमक्खी के छत्ते के समान । 
नेचर के एक अंक में डॉ. एलीसन एबॉट ने इस काम का सारांश प्रस्तुत किया । उन्होनें बताया कि उस बॉक्स के तल पर कोई भी षट्कोणीय आकृति नहींबनी थी । ये आकृतियां अमूर्त रूप से चूहे के मस्तिष्क के अंदर उभरी होगी और इन्हें परिवेश पर आरोपित किया गया होगा । यह मस्तिष्क की भाषा में एक कोड है जिसका इस्तेमाल चूहों ने जगह और स्थान ढूंढने के लिए किया होगा । 
इससे भी ज्यादा हैरतअंगेज तो इस ग्रिड को बनाने वाली कोशिकाआें - ग्रिड जनरेटिंग कोशिकाआें की जमावट है । जब हम एंटोराइनल कॉर्टेक्स पट्टी के ऊपरी हिस्से से निचले हिस्से की तरफ जाते हैंतब यह पैटर्न क्रमिक ढंग से पास-पास सटी ग्रिड से दूर-दूर बनी ग्रिड में बदलता जाता है । इस मॉड्यूल में प्रत्येक पायदान में बिन्दुआें के बीच दूरी का अंतर १.४ गुना की स्थिर दर से बढ़ता है । 
इस षट्कोणीय पैटर्न और निश्चित मॉड्यूलर के गणित ने सिद्धांतकारों को आकर्षित किया  है । डॉ. एलीसन एबॉट और म्यूनिश की न्यूरोसाइटिस्ट डॉ. एन्ड्रिज हर्ज बताती है कि यह खोज बहुत ही अनेपक्षित है कि मस्तिष्क इतने सरल गणितीय पैटर्न का उपयोग करता है जिसका हम सदियों से गणित में अध्ययन कर रहे हैं । वे बताती हैं कि बच्च्े, मनुष्य और चूहे जिस जगह वे रहते हैं वहां की बहुत ही प्राथमिक चेतना के साथ पैदा होते हैं और फिर यह क्षमता धीरे-धीरे विकसित होती है । 

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