मंगलवार, 26 जुलाई 2011

पक्षी जगत

पक्षियों में अस्तित्व का सकंट
प्रो. आर.के. कृष्णात्रे
अंगराज कर्ण ने दधीचि की महानता पर चर्चा करते हुए भीष्म पितामह से कहा था - नर तन की शोभा हाथ से है और हाथ की शोभा दान से हैं । शोभा सौन्दर्य श्रृगांर आदि शब्दों का अपने आप में कोई महत्व नहीं जब तक इन्हें सापेक्षिक संदर्भ में न देखा जाय । शारीरिक सौन्दर्य, मूर्ति-श्रृगांर जैसे समासिक शब्द ही इनके यथार्थ का बोध करा सकते है ।
यदि वृक्षों के श्रृंगार की बात करेंतों फूल, फल और पक्षियों की याद आती है । इनमें पक्षियों का स्थान सर्वश्रेष्ठ है । पर्यावरण विदों ने इसे स्वीकार किया । मिल्टन फ्रेण्ड ने अपने शोध अध्ययन में यह स्पष्ट किया है कि पेडों पर बैठे पक्षियों का कलख उनके सौन्दर्य और रंग में निखार लाता है । शोध से यह रहस्य भी प्रकाश में आया है कि पेडों पर पक्षियों का विश्राम उनकी आयु बढ़ाता है ।
धरती के पर्यावरण की समृद्धि एवं संतुलन पेड़-पौधों पर आधारित है । इनमें से यदि कोई कम होने लगे तो दूसरे पर व्यापक प्रभाव पड़ता है । निरन्तर विलुप्त् होती पक्षियों की प्रजातियां पर्यावरण में गंभीर असंतुलन उत्पन्न कर रही है । अनेक दुर्लभ प्रजातियां समाप्त् हो चुकी है । पक्षियों की लगातार घटती संख्या अत्यन्त निराशाजनक स्थिति है । पर्यावरण के संरक्षण एवं विकास के लिये पक्षियों का अस्तित्व नितांत आवश्यक है ।

पक्षी जगत में गिद्ध, चील, कौए आदि की प्रजातियां आज खतरे में हैं । सबसे अधिक संकट गिद्धों पर मंडरा रहा है जिनकी संख्या घटकर मात्र दस प्रतिशत रह गई है । वर्ष १९९६ में हमारे देश में गिद्धों की संख्या घटी तो मृत जानवरों को खाकर सफाई करने की प्रक्रिया धीमी हो गई, फलस्वरूप वातावरण में सकं्रमण से उत्पन्न कीटाणुआें की संख्या में वृद्धि होने लगी और जन स्वास्थ्य पर संकट बढ़ने लगा । उल्लू, चील, कबूतर, पपीहा नीलकंठ, तोता, सारस, वटेर, आबाबील जैसे पक्षी भारी संख्या में घट रहे है ।
वैदिक संस्कृति में पक्षियों को विशिष्ट महत्व दिया गया है । अर्थवेद में हॅस का उल्लेख किया गया है । यजुर्वेद में कहा गया है - सोम मदंभ्यों व्यपिवत हंस: शुचिवत। अर्थात् हंस सोम को जल से अलग करता है । कुछ संहिताआें में भी हंस का यह नीर-क्षीर विवेक उल्लेखित है । अथर्ववेद में गरूड़ का संदर्भ मिलता है । मोर और काज का वर्णन भी इस वेद में उपलब्ध है ।
पर्यावरण चेतना में क्षेत्र में अभूत पूर्व योेगदान करने वाली राष्ट्रीय पत्रिका पर्यावरण डाइजेस्ट में लिखा है - वृक्ष और पक्षी प्रकृति की अनुपम धरोहर है । पर्यावरण की दृष्टि से इनका संरक्षण आवश्यक है । भोपाल, रतलाम आदि कई नगरों में पक्षियों को पेयजल सुलभ कराने के प्रयत्न प्रशंसनीय ही नहीं, बल्कि समूचे देश के लिये अनुकरणीय है । जागृत नागरिकों ने इस निमित्त मिट्टी के सकोरे उपलब्ध करवाकर पक्षियों के प्रति अपनी संवेदना और कर्तव्य का परिचय दिया है ।
युग ऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने हमेशा हरीतिमा संवर्धन पर बड़ा जोर दिया । यही कारण है कि पर्यावरण संरक्षण युग निर्माण योजना का प्रमुख सूत्र है । आचार्य जी का पक्षी प्रेम उनकी लोकप्रिय पुस्तक सुनसान के सहचर में विस्तार से प्रकट हुआ है । इसमें उन्होनें लिखा है - निर्जन क्षेत्र में जब दूर-दूर तक कोई दिखाई न पड़े, तन पक्षी, पेड़ पौधें , फूल पहाड़ झरने नदियां, साथी बनकर मित्रवत व्यवहार कर, सारी व्यथाएं दूर करने में समर्थ और सशक्त सिद्ध होते हैं । एक बार सुन्दर पक्षियों की मीठी बोली का रस पान करें उनके कलरव का भरपुर आनंद लें, फिर आपको जन वार्तालाप अनर्गल लगेगा ।




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