सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

पर्यावरण परिक्रमा
वैज्ञानिकों ने बनाया खान-पान का चार्ट 
दुनिया के ३७ वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने खानपान का ऐसा विशेष चार्ट तैयार किया हैं, जोन सिर्फ लोगों की सेहत बल्कि धरती कोभी सुरक्षित रखेगा । अगर धरती पर मौजूद सभी लोग अपने खानपान में मांस और शक्कर में ५० प्रतिशत की कमी कर दें तोहर साल समय सेपहलेमरनेवाले१करोड़ लोगों में कमी लाई जा सकती है । 
वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर इस चार्ट को अपनाया जाए तो२०५० तक एक करोड़ लोगों का पेट भी भरा जा सकता है । हालांकि सिर्फ डायट बदलने सेज्यादा फायदा तब तक नहीं होगा, जब तक खाने की बर्बादी जारी रहेगी । 
द प्लेनेट्री हेल्थ डायट नाम के इस डायट कोतैयार करनेमें २ साल का वक्त लग गया । इसमें जलवायु परिवर्तन सेलेकर आहर  तक को शामिल किया गया । फिलहाल दुनिया की आबादी ७.७ अरब हैं जो२०५० तक बढ़कर एक हजार करोड़ होजाएंगी । यह आबादी जितनी बड़ी है उसका पेट भरना भी उतनी ही बड़ी चुनौती होगी । 
प्रतिदिन हमें २५०० किलोकैलोरी की जरूरत इस डायट चार्ट सेउसकी पूर्ति की जा सकती है । तापमान बढ़ानेवाली ग्रीन हाउस गैसों में कमी आएगी । 
कई प्रजातियां विलुप्त् होने से बचेंगी, आबादी बढ़ेगी । पानी की बर्बादी रूकेगी । खेती योग्य भूमि कोबढ़ानेकी जरूरत नहीं पड़ेगी, जमीनें कम बंटेगी । जंगलों की कटान  रूकेगी । 
ग्लोबल वार्मिंग से दुग्ध उत्पादन में आएगी कमी
जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग के भारत में असर और चुनौतियों के दायरे में फल और सब्जियों पर ही नहीं बल्कि दुग्ध भी   है । जलवायु परिवर्तन के भारतीय कृषि पर प्रभाव संबंधी अध्ययन पर आधारित कृषि मंत्रालय की आंकलन रिपोर्ट के अनुसार अगर तुरन्त नहीं संभलेतोइसका असर २०२० तक १.६ मीट्रिक टन दूध उत्पादन में कमी के रूप में दिखेगा । 
रिपोर्ट में चावल समेत कई फसलों के उत्पादन में कमी और किसानों की आजीविका का असर कोलेकर भी आशंका जताई गयी है । पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संबंद्ध संसद की प्राक्कलंन समिति के प्रतिवेदन में इस रिपोर्ट के हवाले सेअनुमान व्यक्त किया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण दूध उत्पादन कोलेकर नहीं संभले तो२०५० तक यह गिरावट दस गुना तक बढ़ कर मीट्रिक टन होजायेगी । भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा संसद में पेश प्रतिवेदन के अनुसार दुग्ध उत्पादन में सर्वाधिक गिरावट उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगी । ग्लोबल वार्मिंग के कारण, येराज्य दिन के समय तेज गर्मीके दायरे मेंहोंगेऔर इस कारण पानी की उपलब्धता में गिरावट पशुधन की उत्पादकता पर सीधा असर डालेगी । चार हेक्टेयर सेकम कृषि भूमि के काश्तकार महज खेती से अपने परिवार का भरण पोषण करने में सक्षम नहीं होंगे। भारत में खेती पर आश्रित ८५ प्रतिशत परिवारों के पास लगभग पांच  एकड़ तक ही जमीन हैं । इनमें भी ६७ फीसदी सीमांत किसान है जिनके पास सिर्फ  २.४ एकड़ जमीन है । रिपोर्ट में कहा गया है कि २०२० तक चावल के उत्पादन मेंचार सेछह प्रतिशत, आलू में ११ प्रतिशत, मक्का में १८ प्रतिशत और सरसों के उत्पादन में दोप्रतिशत तक की कमी संभावित है । 
वहीं पश्चिम तटीय क्षेत्र केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान निकोबार और लक्ष्यद्वीप में नारियल उत्पादन में इजाफा होनेका अनुमान है । भविष्य की इस चुनौती के मद्देनजर मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर समिति नेसिफारिश की है कि अनियंत्रित खाद के इस्तेमाल से बचते हुये भूमिगत जलदोहन रोक कर उचित जल प्रबंधन की मदद सेयुक्तिसंगत सिंचाई साधन विकसित करना ही एक मात्र उपाय है । 
अब लापता नहीं होगे विमान, उपग्रह रखेंगे नजर 
आने वाले दिनों में विमानों के लापता होनेकी घटनाएं सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगी । २०२० के बाद दुनियाभर मेंसेकोई भी उड़ान धरती और आसमान के बीच कभी लापता नहींहोगा । यह फिल्मी कल्पना नहीं, हकीकत है । 
दरअसल, वर्जीनिया स्थित अमरीकी निजी अंतरिक्ष संचार कंपनी इरिडियम ने एक ऐसा संचार,  नेटवर्क इरिडियम नेक्स्ट तैयार किया है, जो दुनियाभर के विमानों पर हर पल नजर रखेगा । इसके लिए कंपनी अब तक ७५ सैटेलाइट पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर चुकी है । इनमें से१० सैटेलाइट एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के फॉल्कन रॉकेट द्वारा पिछलेशुक्रवार कोही भेजेगए हैं । 
इरिडियम नेक्स्ट एक प्रकार की वेश्विक उपग्रह नौवहन प्रणाली (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) हैं । जिसके तहत ७५ सैटेलाइट आपस में जुडे रहेंगे । रडार की तरह इनके द्वारा दुनियाभर मेंउड़नेवालेविमानों पर नजर रखी जाएगी । इन्हें उड्डयन कंपनी और हवाई यातायात नियंत्रकों (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) से जोड़ा जाएगा । 
इरिडियम एयरॉन सैटेलाइट जल्द ही विमानों की निगरानी का काम शुरू करेंगे, जिससेरडार के रेंज सेबाहर हवाई जहाज कभी गायब नहीं होंगे। गगन : भारत में उपग्रह आधारित हवाई नौवाहन सेवाआें के लिए गगन (जीपीएस एडेड जियोऑगमेटेड नेविगेशन) प्रणाली तैयार की गई है । ३० जून २०२० सेयह अनिवार्य होगा । यह प्रणाली द.पू. एशिया सेअफ्रीका, प. एशिया, ऑस्ट्रेलिया चीन व रूस के बीच यातायात में मददगार होगी । 
हर दिन २२०० करोड़ बढ़ी भारतीय कुबेरों की हैसियत
भारतीय धनकुबेरों की संपत्ति में पिछले साल रोजना २२०० करोड़ रूपयेकी बढ़ोत्तरी हुई । साल २०१८ में १ फीसदी धनकुबेर ३९ प्रतिशत ज्यादा अमीर हुए, जबकि वित्तीय रूप से कमजोर लोगों की संपत्ति में महज तीन फीसदी का इजाफा हुआ । 
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की सालाना पांच दिवसीय बैठक से पहले पिछले दिनों जारी  ऑक्सफेम की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर साल २०१८ में धनकुबेरों की संपत्ति में रोजना १२ फीसदी या २.५ अरब डॉलर का इजाफा हुआ, जब कि दुनिया के सबसेगरीब तबके लोगों की सम्पत्ति में ११ फीसदी की गिरावट आई । ऑक्सफेम नेकहा कि १३.६ करोड़ भारतीय साल २००४ सेही कर्ज में डूबे हैं । आबादी का यह आंकड़ा देश की सबसेगरीब आबादी का १० फीसदी है । रिपोर्ट के अनुसार अमीरी-गरीबी के बीच यह बढ़ती खाई दुनियाभर में लोगों का गुस्सा बढ़ा रहा है । 
रिपोर्ट के अनुसार कुल २६ लोगों के पास उतनी संपत्ति है जितनी दुनिया के ३.८ अरब लोगों के पास है । ऑक्सफेम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक बिनी ब्यानयिमा नेकहा, नैतिक रूप सेयह बेहद अपमानजनक है मुठ्ठीभर अमीर लोग भारत की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ातेजा रहेहै, जबकि गरीब दोजून की रोटी और बच्चें की दवा तक के लिए संघर्ष कर रहेहै । 
ऑक्सफेम के अनुसार दुनिया भर में घर और बच्चें की देखभाल करते हुए महिलाएं सालभर में कुल १० हजार अरब डॉलर की पगार के बराबर काम करती हैंऔर एवज में उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता । यह दुनिया की सबसेबड़ी कंपनी एप्पल के सालाना कारोबार का ४३ गुना है । भारतीय महिलाएं बिना वेतन वालेजोघरेलू काम करती है, उसका मूल्य देश की जीडीपी के ३.१ प्रतिशत के बराबर है । ऑक्सफेम  नेवैश्विक स्त्री-पुरूष असमानता सूचकांक २०१८ में भारत की खराब रैकिंग (१०८ वें पायदान) का जिक्र करतेहुए कहा कि इसमें २००६ के मुकाबलेसिर्फ १० स्थान की कमी आई है । भारत चीन व बांग्लादेश जैसेपड़ोसियों सेभी पीछे है ।१०० वर्ष बाद भी देख पाएंगे आज के उपकरण
आने वाली पीढ़ी १०० साल बाद भी आज इस्तेमाल होने वाले उपकरण देख पाएगी । नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक तकनीक के प्रतीक १०० उपकरणों से तैयार किए गए टाइम कैप्सूल को एलपीयू (लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी) परिसर में जमीन के अंदर १०० साल के लिए दबा दिया । दुनिया में यह अपने प्रकार का पहला ऐसा अनोखा प्रयोग है । 
वर्तमान टेक्नोलॉजी को सहेजने के लिए जालंधर १०६वीं इंडियन साइंस कांग्रेस के दूसरे दिन यह कदम उठाया गया । १०० साल बाद तीन जनवरी २११९ को जब यह टाइम कैप्सूल जमीन से बाहर निकाला जाएगा, तब उस समय की पीढ़ी को वर्तमान में प्रयोग होने वाली टेक्नोलॉजी का पता चल सकेगा । 
टाइम कैप्सूल मेंभारतीय सांइस व टेक्नोलॉजी के प्रतीक मंगलयान, ब्रह्मोस मिसाइल व तेजस फाइटर विमानों के मॉडल भी रखे गए हैं । कैप्सूल को धरती में १० फीट की गहराई तक दबाया गया है । नोबेल पुरस्कार विजेता बॉयो केमिस्ट अवराम हर्षको, अमेरिकी फिजिसिस्ट डंकन डालडेन व बॉयो केमिस्ट थॉमस सुडोफ केबटन दबाते ही टाइम कैप्सूल धरती में समा गया ।                              

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