बुधवार, 15 अप्रैल 2015

पर्यावरण परिक्रमा
सोशल मीडिया में कमेंट पर नहीं होगी गिरफ्तारी
सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा ६६ ए को खत्म कर दिया है । अब सोशल मीडिया पर कुछ लिख देने पर तुरन्त गिरफ्तारी नहीं होगी । इस धारा के तहत् पुलिस को ये अधिकार था कि वो किसी भी सोशल मीडिया यूजर को उसके द्वारा लिखी गई किसी ऐसी बात फर गिरफ्तारी कर सकती थी जो उसे आपत्तिजनक लगे, या इस बात पर कोई शिकायत दर्ज कराए । अब पुलिस को इस तरह की गिरफ्तारी से पहले मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी। 
आईटी एक्ट की धारा ६६ए के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति संवाद सेवाआें (इंटरनेट या फोन आदि) के माध्यम से प्रतिबंधित या आपत्तिजनक सूचनाआें का आदान प्रदान कर रहा हो तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है । 
सोच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आधारभूत बताते हुए न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की पीठ ने कहा कि सूचना प्रौघोगिकी अधिनियम की धारा ६६ ए से लोगों के जानने का अधिकार सीधे तौर पर प्रभावित होता है । यह प्रावधान साफ तौर पर संविधान में उल्लेखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है । 
इस धारा से आजादी दिलाई है श्रेया सिंघल ने । सिंघल पूर्व कानून मंत्री एच.आर. गोखले की प्रपौत्री और जस्टिस सुनंदा भंडारे की पोती है।  २०१२ में श्रेया को इस कानून के बारे में पता चला । श्रेया की मां भी वकील है । उनसे बात करने के बाद श्रेया ने एक वकील की मदद से पी.आईएल दाखिल की थी । 
मंकी आइलैंड में रहते हैं चिम्पैंजी
पश्चिम अफ्रीकी देश लाइबेरिया में मंकी आइलैंड है, जो खासतौर से चिम्पैंजी के लिए मशहूर है । घने जंगल के अंदर फारमिग्गटन नदी के पास स्थित यह आइलैंड पर्यटकों की पहुंच से दूर है । यहां ६० से ज्यादा चिम्पैंजी हैं, जिनका कभी मेडिकल रिसर्च के लिए उपयोग किया जाता था । मेडिकल क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ यहां के चिम्पैजियों को हीरा कहते हैं, जो बीमारी से लड़ने और रिजल्ट देने में सक्षम है । 
लाइबेरियन इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च सेन्टर ने इन चिम्पैजियों पर कई प्रयोग किए हैं । इसमें सबसे प्रमुख वह प्रयोग था, जिसे १९७० के दशक में हेपेटाइटिस का इलाज ढूंढने के लिए याद किया जाता है । वर्ष १९९५ से २००० के मध्य में एनिमल राइट्स समूहों के भारी दबाव के कारण इस सेंटर मे रिसर्च बंद कर दिया गया था । उसके बाद चिम्पाजियों को आइलैंड पर छोड़ दिया गया । वहां अब वे आराम से रह रहे हैं । यह सेंटर की ही योजना थी कि अब चिम्पाजियों का उपयोग रिसर्च में नहीं हो रहा है, तो क्यों न उन्हें प्राकृतिक वातावरण में रखा  जाए । मंकी आइलैंड पर रहने वाली चिम्पैंजी केवल केयरटेकर को ही करीब आने देते है, पर्यटकों को   नहीं । 
अब ड्रोन कैमरेसे भी होगी बाघोंकी निगरानी 
बाघों की सुरक्षा अब ड्रोन कैमरे से भी होगी । बाघ संरक्षण परियोजना वाले जंगलों के ऊपर जल्द ही ड्रोन कैमरों से निगरानी की जाएगी, ताकि कोई शिकारी या तस्कर बाघों को मार या क्षति न पहुंचा सके । केन्द्र सरकार पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ड्रोन निगरानी योजना शुरू करने जा रही है । 
मध्यप्रदेश प्रदेश की कुछ रेंज में भी ड्रोन से बाघों की ई-निगरानी की योजना है । जानकार बताते है कि मध्यप्रदेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ को भी इस प्रोजेक्ट से जोड़ने की योजना है । बताया जाता है कि पिछले चार सालों में देश के कई प्रदेशों में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है, साथ ही मध्यप्रदेश में भी बाघों के संरक्षण को लेकर लंबे अरसे से प्रयास किए जा रहे है । महत्वपूर्ण बात यह है कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी इस दिशा में प्रयास किए जा रहे है । हालांकि, जानकारों का कहना है कि तमाम उपायों के बावजूद देश में बाघों के शिकार पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग पाने से केन्द्र सरकार चिंतित है । 
पिछले दिनों केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के प्रमुख वन्य जीव संरक्षकों के साथ हुई एक उच्च् स्तरीय बैठक में ड्रोन निगरानी परियोजना को हरी झंडी दे दी । इसके तहत बाघों के पुनर्वास व अनाथ शावकों के संरक्षण को भी शामिल किया गया है । वन अफसरों की मानें तो ड्रोन आकाशीय सर्वेक्षण व निगरानी के लिए एक टूल का कार्य करेगा । इससे निश्चित रूप से बाघों के संरक्षण में मदद मिलेगी । 
मध्यप्रदेश में पेपर लैस होगी विधानसभा 
मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्यवाही अगले सत्र से ऑन लाइन होने जा रही है । प्रश्न और उत्तर सब ऑनलाईन । इस पहल से हर साल १२०० किलो वजनी तीन लाख पेपर बचेंगे । इनकी प्रिटिंग और पैकेजिंग मिलाकर ५० लाख रूपए का खर्च भी बचेगा । 
अब आम वोटर भी विधानसभा की वेबसाइट पर यह देख पाएंगे कि उनके विधायक क्या प्रश्न कर रहे हैं । अभी गिने-चुने विधायक ही इंटरनेट पर काम के आदी है । इसलिए इनकी ट्रेनिंग भी हो रही है । दो ट्रेनिंग प्रोग्राम हो चुके हैं । पहली बार १२३ और दूसरी बार ४० विधायकों ने इसमें शिरकत की । दिलचस्प यह भी है कि २०१६ में अगले बजट सत्र के पहले विधानसभा में सबकी डेस्क पर कम्प्यूटर होंगे । करीब सवा सौ विधायकों को लैपटॉप दिए जा चुके हैं । 
अगले सत्र में २०० प्रश्नों की भारी भरकम प्रश्नोत्तरी नहीं छपेगी । सिर्फ प्रश्नकाल में पूछे जाने वाले २५ प्रश्नों की छपी हुई कॉपी ही मिलेगी । रोज ८०० प्रश्नोत्तरी छपती हैं । आगामी सत्र में सिर्फ तीन सौ ही छपेंगी । कार्य सूची आनलाईन    होगी ।
विधानसभा के प्रमुख सचिव भगवानदेव इसरानी कहते हैं कि सभी विधायकों के ई-मेल आईडी बन जाने पर जुलाई में आयोजित मानसून सत्र में सभी विधायकों से ऑनलाइन प्रश्न बुलवाए जाएंगे । वे अपने निर्वाचन क्षेत्र से ही प्रश्न भिजवा सकेंगे । उन्हें सत्र के २६ दिन पहले प्रश्न लगाने भोपाल नहीं आना पड़ेगा । 
क्लीन इंडिया प्रोजेक्ट को मिला १००० करोड़ का दान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील को स्वीकारते हुए इंडिया इंक ने स्वच्छ भारत अभियान के लिए १००० करोड़ रूपए दिए हैं । प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के लिए अब तक एलएंडटी, डीएलएफ, वेदांता, भारती, टीसीएस, अंबुजा सीमेंट्स टोयोटा किलोंस्कर, मारूति, टाटा मोटर्स, कोका कोला, डाबर, रेसिक्ट बैकेसर, आदित्य बिड़ला ग्रुप, अडानी, बायोकॉन, इंफोसिस, टीवीएस और कई अन्य कंपनियां आर्थिक सहयोग कर चुकी है । स्वच्छ भारत के इस अभियान में गांवों में शौचालय बनवाना, लोगों के रहन-सहन और बर्ताव में बदलाव लाने के लिए वर्कशॉप, वेस्ट मैनेजमेंट  वॉटर हाइजीन और सेनिटेशन जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं । इनमें से ज्यादा प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी कंपनियों ने अपने कॉर्पोरेट सोशल रिसपॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत ली है, वहीं कुछ मेंपब्लिक प्राइवेट हिस्सेदारी भी है । 
विशेषज्ञों की माने तो इससे कॉर्पोरेट हाउसिंग को दोहरा फायदा हो रहा है । एक तरफ तो सीएसआर में अनिवार्य २ प्रतिशत निवेश का लक्ष्य पूरा हो रहा है, दूसरी तरफ वे सरकार की नजरों में अपनी अहमियत भी बढ़ा रहे है । 
शुरूआत में कंपनियों के मालिकों ने झाडू उठाए और अपने कर्मचारियों को भी इस अभियान से जुड़ने को कहा । बाद में धीरे-धीरे कंपनियों ने स्वच्छ अभियान के लिए  प्रोजेक्ट्स डिजाइन करने शुरू कर दिए और इनके लिए अलग से बजट भी सुरक्षित कर दिया । 
ब्लैकहोल में बरकरार रहती हैं सूचनाएं 
ब्लैकहोल में प्रवेश करने के बाद सूचनाएं नष्ट नहीं होती है बल्कि वे उसके भीतर ही मौजूद रहती है । पिछले कई वर्षो से भौतिक शास्त्री इस विषय पर बहस करते आ रहे हैं । विज्ञानियों के इस दल में एक भारतीय मूल का विज्ञानी भी हैं । 
अधिकतर भौतिक विज्ञानियों का मानना है कि ब्लैकहोल में सूचनाएं अवशोषित हो जाती है फिर बिना कोई सबूत छोड़े वे वहां से लुप्त् हो जाती है । युनिवर्सिटी एट बफेलो मेंभौतिकी के सहायक प्रोफेसर देजान स्तोजकोविक ने बताया, हमारे अध्ययन के अनुसार ब्लैकहाल में सूचना के प्रवेश करने पर वह गुम नहीं होती और न गायब होती है । विश्व विघालय के पीएचडी छात्र अंशुल सैनी ने इस अध्ययन में स्तोजकोविक के साथ सह लेखक के रूप में सहयोग किया है । फिजिकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित यह अध्ययन बताता है कि ब्लैकहोल द्वारा उत्सर्जित कणों के बीच का संपर्क यह बता सकता है कि उनके अंदर क्या छिपा है । यह ब्लैकहोल के बनने के कारकोंके गुणों को बता सकते हैं । यह उसके पदार्थो और ऊर्जा के गुणों के बारे में जानकारी दे सकते हैं । स्तोजकोविक का कहना है कि यह एक अहम खोज है क्योंकि इसमें सूचना गुम नहीं होती । 

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