सोमवार, 20 मई 2019

जन जीवन
वृक्ष संस्कार से मृत्यु भी सार्थक
कुमार सिद्धार्थ 

  मृत्यु के बाद पार्थिव शरीर को आग के हवाले करने की परंपरा के  चलते भारत में हर साल ७० फीसदी लकड़ी केवल शवों के अंतिम संस्कार के लिए जला दी जाती है ।
इसके लिए पांच करोड़ पेड़ों को काट कर ४ मिलियन टन लकड़ी प्राप्त की जाती है। पारंपरिक तरीकों के दाह संस्कार से लकड़ी के जलने से हवा में लगभग अस्सी लाख टन कार्बन मोनो-ऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। दहन के बाद निकलने वाली राख जलाशयों या नदियों में फेंकी जाती है, जिससे उनकी विषाक्तता बढ़ती है।
कुछ समय पहले राष्ट्रीय हरित पंचाट (ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने न केवल दाह-संस्कार के तरीकों पर चिंता प्रकट की थी, बल्कि इन तरीकों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भी चर्चा की थी । ऐसे में जब दुनिया में पर्यावरण असंतुलन पर गंभीर विमर्श हो रहा हो, तब अंतिम संस्कार के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई समस्या बनकर उभर रही है। 
उल्लेखनीय है कि एक शव की अंत्येष्ठि में करीब पांच क्विंटल लकड़ी लगती है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक देश में १.२ प्रतिशत मृत्यु दर है। इस लिहाज से देश में हर साल लगभग १ करोड़ शवों का दाह संस्कार किया जाता है। प्रत्येक शव के अंतिम संस्कार के लिए १५ साल के दो पेड़ अग्नि के हवाले करने पड़ते हैं। लकड़ी से शव के अंतिम संस्कार पर करीब पांच हजार रुपए औसतन खर्च होता है। 
वैसे तो देश-दुनिया में पर्यावरण संतुलन एवं हरियाली बनाये रखने के लिए समाज के द्वारा मृत्यु-संस्कार के संदर्भ में वैकल्पिक प्रयास किये जाते रहे हैं। दाह-संस्कार के इन परंपरागत विकल्पों के अलावा `वृक्ष जीवन से मृत्यु-संस्कार` का विचार भी एक विकल्प के रूप में सामने आया है। यह प्रगतिशील विचार सर्वोदय जगत में मशहूर, रचनात्मक चिन्तक, लेखक ८४ वर्षीय भाई  मणीन्द्रकुमार के मन में उपजा । मणीन्द्र भाई ने पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने और अंतिम-संस्कार को जीवन उपयोगी बनाने के लिये 'वृक्ष जीवन संस्कार` का सार्थक तरीका अपनाया है, जो मृत्यु संस्कारों की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
एक मई, २०१८ को मणीन्द्र भाई  की पत्नी श्रीमती मोहना देवी का देहावसान हो गया था। दो मई  को उनका `वृक्ष संस्कार` सेवाधाम आश्रम, उज्जैन में किया गया । वृक्ष संस्कार के इस तरीके में पहले करीब ६ फीट गहरा और ४ फीट चौडा गड्डा  खोदा गया । उसमें पहले गोबर, गौ मूत्र और पेड़ों की पत्तियां डाली गइंर् और उसके ऊपर मिट्टी का बिछौना बनाया गया। उसमें श्रीमती मोहना देवी केशव को लिटाया गया और गड्ढे को फिर मिट्टी से भर दिया गया । इसमें मृत शरीर का भूमि संस्कार कर उसके ऊपर पौधे का रोपण किया गया । मणीन्द्र भाई का मानना है कि मृत शरीर में कैल्शियम, फास्फोरस एवं अनेक प्रकार के खनिज द्रव्य और अस्थि मज्जा (बोनमेरो) होते हैंजो एक खाद्य के रूप में उपयोगी हो सकते हैं ।  भूमि संस्कार के बाद शरीर खाद में बदल जाता है और ठीक उसके ऊपर उगने वाला पौधा उस खाद  से आवश्यक तत्व ग्रहण कर वृक्ष बन जाता है जो सालों तक मृत व्यक्ति की याद के रूप में जीवित रहता है।
उल्लेखनीय है कि मणीन्द्र कुमारजी के पिता का निधन करीब ३० साल पहले हुआ तो अनायास उनके मन में 'वृक्ष जीवन संस्कार` का विचार आया था । उस वक्त उन्होंने अपने चारों भाईयों से चर्चा की कि पिताजी को अंजड़ (बड़वानी) स्थित जिनिंग फैक्टरी की जमीन पर गाड़कर पांच भाईयों के नाम पर पांच वृक्ष लगा दिये जाएं । लंबे विचार-विमर्श के बाद सभी भाई तो मान गए परन्तु महिलाओं की सहमति नहीं मिल सकी। तब मणीन्द्र भाई ने अग्नि संस्कार में शामिल नहीं होने की घोषणा कर दी, लेकिन परिवारजनों ने तब भी उनकी बात नहीं सुनी । पिता का अग्नि संस्कार ही किया गया । अपने विचार पर अडिग मणीन्द्र कुमार पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए । इसके बाद उन्होंने `वृक्ष जीवन संस्कार` को एक अभियान के रूप में अपनाया, जो अब 'वृक्ष जीवन संस्कार परिषद` के रूप मेंसामने है।
प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा आमटे ने भी अपने जीवनकाल में महाराष्ट्र के आनन्द वन में इस प्रक्रिया को प्रारम्भ कर दिया था। वे कई लोगों का वृक्ष संस्कार कर चुके थे, जब बाबा आमटे और उनकी पत्नी साधना ताई का देहान्त हुआ तो उनके परिजनों ने भी इसी अनुसार `वृक्ष संस्कार` किया था । उनका मानना था कि इस विधि से अंतिम संस्कार करने से मनुष्य के सारे अवयवों और यहां तक कि बोनमेरो का भी सार्थक उपयोग हो जाता है। तीन जनवरी २०१२ को वरिष्ठ सर्वोदयी श्याम बहादुर 'नम्र` का मरणोपरान्त वृक्ष संस्कार ही किया गया ।
करीब तीन दशक से 'वृक्ष संस्कार` में लगे मणीन्द्र भाई ने बाबा आमटे की प्रेरणा से इसे एक अभियान का स्वरूप दिया है। बाबा का मानना था कि इस विधि से अंतिम संस्कार करने से दुनिया का भला होगा ।  मृत्यु संस्कार के इस विकल्प पर अब तक ३०० व्यक्तियों ने अपनी रूचि दिखाते हुए मृत्यु इच्छापत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। रतलाम के निकट रत्नेश्वर रोड़, खलघाट, बड़वानी तथा सेवाधाम, उज्जैन में `वृक्ष संस्कार से अंतिम संस्कार` करने की शुरूआत हो चुकी है । बड़वानी नगर पालिका परिषद् ने इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर वृक्ष संस्कार करने वालों को जमीन उपलब्ध करवाने की स्वीकृति दी है। पिछले दिनों इंदौर के प्रबुद्धजनों ने इस विचार को कार्यान्वित करने के लिए भूमि खरीदने का विचार किया है। एक सोसायटी गठित कर  वृक्ष संस्कार के विचार को कार्यान्वित करने के बारे में सोचा जा रहा है।
वृक्ष जीवन संस्कार परिषद के अध्यक्ष मणीन्द्र भाई कहते हैं कि निकट भविष्य में यह विचार समाज स्वीकार करेगा, क्योंकि वृक्ष संस्कार से मृत्यु भी सार्थक हो जाती है। इससे मृत व्यक्ति न केवल अमर हो जाता है, वह अनन्त भी हो जाता है। वृक्ष के जो बीज होते हैं, वे गिरकर, फिर बढें़गे एवं फैलते जाएंगे। वे बीज फिर वृक्ष बनेंगे और वृक्ष बनने की प्रक्रिया चलती और बढ़ती जाएगी ।  

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