बुधवार, 31 मार्च 2010

१२ कविता

गुलमोहर:संघर्ष में सफलता का मंत्र

डा.संतकुमार टण्डन`रसिक'तिलमिलाती

धूप में झुलसने सेजब हम बेजार होते हैं,तुम कितनी शान सेखिल खिलाते होसड़कों के किनारे, पार्को, उद्यानों उपवनों मेंगुलमोहर, तुम वह गुल होजिस पर हमें नाज है ।लाल अंगारों से दहकते तुम्हारे फूलहमें कितनी ठंडक पहुंचाते हैंजैसे अपने ओठों पर गहरी लाल लिपिस्टिक लगाएसौन्दर्य - स्पर्द्धा में कोई युवतीस्टेज पर कैट-वाक करती हुईविजय की आशा में इठलाती हैउसी तरह तुम प्रकृति के रैम्प परअपनी अदा दिखलाते है,हम चाहते हैं तुम्हारी छाया में बैठनाऔर अपने को सुकून से भर देनागुलमोहर!तुम हमें देते होसंघर्ष में सफलता का मंत्रधूप तुम्हें जितना तपाती-मारती हैतुम उतनी शान से मुस्कराते हो !***

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