मंगलवार, 16 जून 2015


सम्पादकीय 
शब्द पढ़वाकर व्यक्ति की पहचान 
एक ही शब्द के अर्थ अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग होते हैं । इसलिए जब कोई व्यक्ति शब्दों को पढ़ता या पढ़ती है तो दिमाग में उत्पन्न तरंगों का पैटर्न भी अलग-अलग होता है । स्पैन के बास्क सेंटर ऑन कॉग्नीशन, ब्रैन एंड लैंग्वेज के ब्लेयर आर्मस्ट्रॉन्ग और उनके साथियों का ख्याल है कि दिमागी तरंगों के इस पैटर्न से व्यक्ति की पहचान की जा सकती है । उनके विचार से यह फिंगरप्रिंट, आंखोंकी पुतली के स्कैन के पैटर्न के अलावा एक और विधि साबित हो सकती है । आर्मस्ट्रॉन्ग के दल ने ४५ वालंटियर्स को ७५ संक्षिप्तक्षर पढने को कहा (जैसे ऋइख, ऊतऊ वगैरह) जब वालंटियर्स उन शब्दों को उच्चरित करने में मशगूल थे तब शोधकर्ताआें ने उनके दिमाग में पैदा हो रहे संकेतोंको रिकॉर्ड करके एक कम्प्यूटर में भेज दिया । 
कम्प्यूटर ने इन संकेतोंका विश्लेषण करके हर वालंटियर का एक मस्तिष्क तरंग खाका तैयार कर लिया । इससे बाद इन वालंटियर्स को वही शब्द एक बार फिर पढ़ने को कहा गया और कम्प्यूटर के द्वारा उनकी पहचान करवाने की कोशिश की गई । कम्प्यूटर ने ९४ प्रतिशत मामलोंमें व्यक्ति की सही पहचान कर ली । वैसे तो व्यक्ति के दिमाग में पैदा होने वाले विघुतीय संकेतों के आधार पर व्यक्ति की पहचान के प्रयोग पहले भी हो चुके है । इन तकनीकों का एक फायदा यह है कि इनमें पहचान के लिए पासवर्ड वगैरह से मुक्ति हो सकती है, यह काम सतत ढंग से किया जा सकता है । 
मगर दिक्कत यह है कि सही पहचान मात्र ९४ प्रतिशत मामलों में ही हो पाई । यदि इस तरह की पहचान के आधार पर किसी गोपनीय कक्ष में प्रवेश की अनुमति वगैरह को जोड़ना है तो ९४ प्रतिशत का आंकड़ा पर्याप्त् नहीं है । दूसरी समस्या यह है कि इस तरह की पहचान प्रणाली में व्यक्ति की खोपड़ी पर इलेक्ट्रोड वगैरह लगाने पड़ेगे, तभी तो उसके मस्तिष्क की विघुतीय तरंगों को पकड़ पाएंगे । अलबत्ता, मजेदार बात यह है कि हर व्यक्ति शब्दों के अर्थ को थोड़ा अलग-अलग संजोकर रखता है और यह बात उसके उच्चरण मेंझलकती है । इससे और कुछ नहीं, इतना पता तो चलता है कि मस्तिष्क में शब्दार्थ की हमारी स्मृति वाला हिस्सा कुछ विशेष ढंग से काम करता है और ये स्मृतियां लगभग स्थाई होती है । 

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