शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

वर्ष 2017
वैश्विक परिदृश्य में पर्यावरण
डॉ. ओ. पी. जोशी
वर्ष २०१७ में पर्यावरण से सम्बधिंत कई घटनायें घटी एवं बिगड़ते  पर्यावरण पर चेतावनी स्वरुप कई रिपोर्टस भी जारी कह गयी । प्रस्तुत है कुछ प्रमुख घटनायें एवं रिपोर्ट्स । अमेरीका का लगभग १००० वर्ष पुराना टनेल-ट्री (सिकोइया प्रजाति) १५ जनवरी का आए तूफान में धराशायी हो गया । लगभग २५० फीट उंचाई के इस पेड़ के तने को काटकर १३७ वर्ष पूर्व इसमें एक सुरंग बनाई गयी थी जिसमें से कार निकल जाती थी । सुरंग को लोग पायोनियर केबिन भी कहते थे । इस सुरंग के कारण लोगोंका दो किलोमीटर का चक्कर बच जाता था । कैलिफोर्निया के कुछ लकड़ी तस्करो ने कुछ पुराने रेड वुड के वृक्ष भी काटे । 
अंटार्कटिका मेंहिम चट्टानों (आइस शेल्फ) लार्सेन सी का एक बड़ा हिस्सा १० से १२ जुलाई के मध्य टूटकर अलग हो गया जिससे लार्सेन सी का आकार १२ प्रतिशत कम हो गया । टूटकर अलग हुआ भाग लंदन के क्षेत्रफल से चार गुना बड़ा था (लगभग ५८०० वर्ग किलोमीटर)। लार्सेन सी में पिछले कई वर्षो से २०० कि.मी. लम्बी दरार देखी जा रही थी । पर्यावरणविदों ने इसका कारण बढ़ता तापमान मानते हुए इसे भविष्य के लिए खतरनाक बताया है ।
विश्व में सम्भवत: पहली बार न्यूजीलैंड की सरकार ने मार्च में वहां की १५० कि.मी लम्बी वांगजुई नदी को सजीव इंसान मानकर मानव अधिकार प्रदान किए । नदी को दिए अधिकारों के तहत् प्रदूषण, अतिक्रमण व अत्यधिक दोहन पर न्यायालय में मुकदमा करके दंड का प्रावधान किया गया है । न्यायालयीन प्रकरणों में नदी का पक्ष कोई शासकीय वकील तथा माओरी समाज के प्रतिनिधि करेंगे । यहां की माओरी जनजाति पिछले १५० वर्षो से इस नदी हो बचाने की लड़ाई लड़ रही है ।
वर्ष २०१६ मे हुए पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के समझौते से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मार्च में अलग होने की घोषणा की । ट्रंप प्रशासन इसे अमेरिकी लोगों पर आर्थिक बोझ मानता है । वर्तमान यूएस सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की स्वच्छ ऊ र्जा योजना को रद्द करके यू.एन.ग्रीन क्लाईमेट फंड को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर रोक लगा दी । पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (इ.पी.ए.) के बजट मेंएक तिहाई की कटौती की गई ।
पौलेण्ड की सरकार ने एक पर्यावरण कानून पारित कर निजी जमीन पर मनचाही संख्या में पेड़ो को बगैर अनुमति काटने का प्रावधान किया । पर्यावरण प्रेमियों तथा मानव अधिकार समूहो ने इसका विरोध किया है । वैको शहर में महिलाआें ने `पोलिश मदर्स ऑन ट्री स्टंप्स ' नाम से एक समूह गठित करके इस कानून का विरोध शुरु किया है। विरोध प्रदर्शन मेंमहिलाएं कटे वृक्षों के  ठूंठों पर बैठकर बच्चें को स्तनपान कराती है । वे दर्शाना चाहती है कि पेड़ भी पर्यावरण का पोषण एक माता के समान करते है ।
ऑस्ट्रेलिया के बुद्धिजीवियों तथा खिलाड़ियों ने क्वीसलैंड में अडाणी समूह के  चेयरमेन को कोयला खनन परियोजना वापस लेने के लिए एक खुला पत्र लिखा । इस परियोजना से विश्व प्रसिद्ध ग्रेट बैरीयर रीफ को खतरा बताया गया है । ग्लोबल वार्मिंग तथा भूजल स्तर के लिए भी इसे उचित नहीं बताया गया । ६० वर्षोंा तक चलने वाली यह परियोजना लगभग एक लाख करोड़ रुपए की है । ९० जाने-माने लोगों द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि यदि परियोजना आगे बढ़ी तो दोनों देशों (भारत व ऑस्ट्रेलिया) के बीच सम्बंधो पर बुरा प्रभाव होगा एवं क्रिकेट तथा अन्य खेल भी प्रभावति होगें। पत्र लिखने वालों में विश्व प्रसिद्ध क्रिकेटर इयान तथा ग्रेग चेपल भी शामिल है ।
पेरिस जलवायु सम्मेलन के समझौते पर नियम कानून बनाने हेतु जर्मनी के बॉन शहर मेंनवम्बर में एक सम्मेलन हुआ जिसमें १९७ देश के लगभग २५ हजार प्रतिनिधियों ने भाग लिया । इस सम्मेलन के आयोजन की सारी व्यवस्थाएं (ई-बस व सायकल का उपयोग, चाय-पानी के लिए मिट्टी के कप, कागज का उपयोग नहीं, कोई प्रेस नोट का वितरण न हो तथा राश्न नदी के किनारेंतम्बुआें में कार्य) तो पर्यावरण हितैषी रहे परंतु अन्य सम्मेलनों के समान यहां भी कोई ठोस निणर्य नहीं हो पाया । विकासशील देशों से कई गुना अधिक कार्बन का उत्सर्जन करने वाले विकसित देश इसी जिद पर अड़े रहे कि उत्सर्जन कम करने में सभी को साझा प्रयास करने चाहिए । अमेरिका के कम प्रतिनिधित्व के बावजूद जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए भागीदार देशोंकी एकता व प्रयास सराहनीय रहे ।
ब्राज़ील के एक न्यायालय ने राष्ट्रपति के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसके तहत विश्व प्रसिद्ध अमेज़न के वर्षा वनों एक बड़े संरक्षित अभयारण्य में खनन कार्य की अनुमति प्रदान की गई थी । राष्ट्रपति का यह मानना था कि खनन कार्य से देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी परंतु न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण को ज़्यादा महत्व दिया ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले चार दशकों से दुनिया की एक तिहाई भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो गई है । कई कारणों से मैग्नेशियम, सोडियम तथा पौटेशियम की मात्रा के बढ़ने से यह परिणाम हुआ है । मिट्टी की सेहत बिगड़ने की दर उर्वरा शक्ति के निर्माण से लगभगल सौ गुना अधिक है । यह आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष २०५० तक दक्षिण एशिया, उत्तर पूर्वीव मध्य अफ्रीका इससे ज्यादा प्रभावित होगें । अफ्रीका महाद्वीप के कई देशोंमें तो पिछले कई वर्षो से भूमि सुधार के काईकार्य नही पाए है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा युनीसेफ द्वारा तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की ६० प्रतिशत आबादी शौच व्यवस्था के अभाव में जीवनयापन कर रही है तथा ३० प्रतिशत लोगों को साफ पेयजल उपलब्ध नहीं है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने रिपोर्ट में कहा है कि शौच व्यवस्था, साफ पेयजल तथा स्वास्थ्य सेवाएं मूलभूत आवश्यकताएं है जो सभी की पहुंच में होना जरुरी है तभी पर्यावरण साफ सुथरा रहेगा ।
अमेरीकी वैज्ञानिकों ने पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित एक लेख में चेतावनी दी है कि भारत के ९० प्रतिशत समुद्री पक्षियों के पेट मेंकिसी न किसी तरह प्लास्टिक पहुंच गया है । वर्ष २०५० तक यह प्रतिशत ९९ की सीमा पार कर जाएगा । १९६० के दशक में केवल ५ प्रतिशत समुद्री पक्षी प्लास्टीक से प्रभावित थे । जॉर्जिया विश्वविद्यालय का अध्ययन दर्शाता है कि यदि वर्तमान गति से समुद्रो में प्लास्टिक फेंका जाता रहा तो २०५० में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक होगा ।
नेचर में प्रकाशित विश्व स्वास्थय संगठन की एक रिपोर्ट अनुसार विश्व में घर से बाहर के वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष ३५ लाख लोगों की मौत होती है एवं २०५० तक यह ६६ लाख होने की संभावना है । विश्व के सर्वाधिक २० प्रदूषित शहरों में आधे से ज्यादा भारतीय शहर बताए गए है ।
ग्लोबल विटनेस तथा गार्जियन ने एक संयुक्त रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष २०१७ में पर्यावरण सुरक्षा से जुड़े १७० लोंगो को मार दिया गया । इनमें अधिकांश घटनाएं खनन, वन्यजीव संरक्षण तथा उद्योग के क्षेत्र से सम्बंधित  थी और ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा हुई । रिपोर्ट में भारत का नाम भी शामिल है ।
यूएस की नेशनल एके डमी ऑफ सांइसेज़की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार हमारी पृथ्वी जीवों के महाविनाश के छठे दौर में प्रवेश कर चुकी है । पृथ्वी के लगभग ४.५ अरब वर्ष के इतिहास में अब तक पांच बार ऐसा हुआ है जब सबसे ज्यादा फैली प्रजाति विलुप्त् हो गई । पांचवे दौर में विशालकाय डायनासौर समाप्त् हुए थे । कु छ वैज्ञानिक इस छठे महाविनाश को वैश्विक महामारी भी कह रहे हैं ।
वैश्विक पर्यावरण से जुड़ी ये प्रमुख घटनाए तथा रिपोट्र्स यही दर्शाती है कि पर्यावरण बेहद खराब स्थिति में पहुंच चुका है । यदि ऐसी ही परिस्थितियां जारी रहीं तो प्रजातियों के आसन्न छठे महाविनाश में होमो सेपिएन्स प्रजाति (मनुष्य) की विलुिप्त् की सम्भावना से एकदम इन्कार नहीं किया जा सकता ।   ***

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