शनिवार, 18 अगस्त 2018

पर्यावरण परिक्रमा
एनजीटी ने गंगा मिशन को सूचना पट्ट लगाने का निर्देश दिया
पिछले दिनों राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने गंगा की हालत पर बेहद चिंता जताई है । साथ ही कहा है कि जब सिगरेट के पैकेट पर यह लिखकर चेतावनी दी जा सकती है कि यह स्वास्थ्य के हानिकारक है तो फिर गंगा नदी केऊपर क्यों नहीं ? इसके साथ ही एनजीटी ने हरिद्वार से उन्नाव के बीच गंगा के पानी की स्थिति को लेकर भी अपनी नाराजगी जाहिर की है, जो नहाने और पीने के लायक नहीं है । 
इसके साथ ही एनजीटी ने नेशनल मिशन फॉर गंगा क्लीन को यह आदेश दिया है कि वह हर १०० किलोमीटर की दूरी पर पर्याप्त् सूचना के साथ एक बोर्ड लगाएं । उसमें गंगा नदी के पानी की क्वालिटी के बारे में पूरी सूचना हो ताकि यह पता चल सके कि वो पीने और नहाने के लायक है या नहीं । एनजीटी ने कहा कि श्रद्धालू लोग श्रद्धापूर्वक नदी का जल पीते हैं, और इसमें नहाते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि इसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर हो सकता  है । अगर सिगरेट के पैकटों पर यह चेतावनी लिखी हो सकती है कि यह स्वास्थ्य के लिए घातक है, तो लोगोंको नदी के जल के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी जाए ?
एनजीटी प्रमुख  ए.के. गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा - हमारा नजरियां है कि महान गंगा के प्रति अपार श्रद्धा को देखते हुए, सामान्य जन यह जाने बिना इसका जल पीते हैं और इसमें नहाते हैं कि जल इस्तेमाल के योग्य नहीं है । गंगाजल का इस्तेमाल करने वाले लोगों के जीवन जीने के अधिकार को स्वीकार करना बहुत जरूरी है और उन्हें जल के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए । एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को सौ किलो मीटर के अंतराल पर डिस्पले बोर्ड लगाने का निर्देश दिय ताकि यह जानकारी दी जाए कि जल पीने या नहाने लायक है या नहीं । 
अमेरिकी ने बनाए बांस के टूथब्रश
स्टारबक्स और मैकडोनल्ड जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों ने प्लास्टिक के विरोध के चल रहे अभियान को समर्थन दिया है । ऐसा ही एक मुहिम अमेरिकी आंत्रप्रेन्योर क्रिस्टिना रेमिनेज ने शुरू की है । उन्होंने बांस से टूथब्रश तैयार किए हैं जो पूरी तरह इकाफ्रैंडली हैं । 
प्लस अल्ट्रा स्टार्टअप की फाउंडर क्रिस्टिना कहती हैं कि मुझे इस पल का छह साल से इंतजार था । अब बड़ी कंपनियोंको भी प्लास्टिक के नुकसान के बारे में जागरूकता आने लगी है । क्रिस्टिना का तर्क है - जो कैमिकल युक्त प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरनाक है, वह शरीर के लिए कैसे अच्छा हो सकता  है ? फिर हम अपने मुंह में इसे कैसे जगह दे पाते है । क्रिस्टिना को यह बात हमेशा परेशान करती थी । एक अध्ययन के मुताबिक एक शख्स साल में चार बार ब्रश बदलता है तो पूरे जीवन में करीब ३०० टूथब्रश इस्तेमाल करता है । ये सारा प्लास्टिक धरती को प्रदूषित करता  है ।
प्लस अल्ट्रा शुरू करने से पहले क्रिस्टिना रिटेल स्टोर होलफूड्स में कैशियर के रूप मेंकाम  करती  थी वहीं रहते हुए क्रिस्टिना को वेंडर बनने का आइडिया आया । कॉफी रिसर्च के बाद  यह  कंपनी  शुरू की । साथ में स्टोर पर नौकरी भी जारी रखी । पहले तो प्रोडक्ट को खासा रिस्पॉन्स नहीं मिला । फिर चीन की एक कपंनी ने  ब्रश के ८० प्रोटोटाइअप मंगाए और डेंटिस्ट से चेक करवाए । 
पहला  बड़ा ऑर्डर (२१ लाख रूपये) वहीं से मिला । इसके लिए क्रिस्टिना ने २७ लाख सालाना पैकेज वाली नौकरी भी छोड़ दी थी । आज उनकी कंपनी में कुल जमा छह एम्पॉयी हैं लेकिन सालाना बिक्री करीब १०-१३ करोड़ रूपय के करीब पहुंच  गई ह ै। 
क्रिस्टना के लिए शुरूआती समय बहुत ही संघर्ष वाला था । इस टूथब्रश के लिए मार्केट तलाशना बहुत मुश्किल था । सामान्य ब्रश की तुलना में इनकी कीमत (२५०-४५० रूपये) ज्यादा थी । पर क्रिस्टिना ने हिम्मत नहीं हारी, होलफूड्स में रहने के दौरान सीखे मार्केटिंग स्किल काम आए । आज २२ अमेरिकी राज्यों में ३०० से ज्यादा रिटेल स्टोर पर उनके टूथब्रश बिक रहे है । अमेजन और अगले साल पूरे अमेरिका में मिलने लगेगे । फिलहाल वह शेविंग रेजर के हैडल बांस से बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है । 
क्रिस्टिना कहती है कि आने वाले पांच साल में बाथरूम में इस्तेमाल होने वाले ज्यादातार प्रोडक्ट्स को वह बांस के ईको- फैं्रडली प्रोडक्ट से बदलकर रख   देगी । 
दूल्हा डोप टेस्ट में पास होगा तभी होगी शादी 
पंजाब एक ओर जहां नशे की समस्या सेजूझ रहा है । वहीं, केन्द्रशासित प्रदेश और पंजाब हरियाणा की राजधानी चण्डीगढ़ में इस समस्या से निपटने के लिए अनोखी योजना शुरू करने की तैयार की जा रही है । 
दरअसल, बेहद नियोजित तरीके से बसाए गए चण्डीगढ़ में शादी के पहले होने वाले दूल्हे का डोप टेस्ट (नशे की जांच) कराने की योजना बनाई गई है । इस केन्द्रशासित प्रदेश के अफसरों का कहना है कि अगर दूल्हा इसके लिए तैयार होता है तो वे डोप परीक्षण के लिए मेडिकल उपकरण भी मुहैया कराएंगे । 
अफसरोंने हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट को इस बारे में जानकारी भी दी है कि इस तरह की जांच कराना संभव है और यह नशे के रोकथाम की दिशा में अहम कदम होगा । ज्यादातर पारिवारिक विवाद की वजह पति द्वारा नशा करना था । ऐसे में अगर दूल्हे के डोप जांच की सुविधा की व्यवस्था अगर सरकार करती है तो चंडीगढ़ ऐसा करने वाला देश का पहला प्रदेश होगा । 
सरकार द्वारा कराए गए अध्ययन के मुताबिक, चंडीगढ़ समेत पंजाब में करीब ९ लाख युवा नशाखोरी में शामिल है । इनकी उम्र १५-३५ साल केबीच है । ज्यादार (५३ फीसदी) हैरोइन जैसा नशा लेते है । 
पिछले साल अप्रैल में जस्टिस रितु बहारी ने कहा था हरियाणा, पंजाब और केन्द्र शासित राज्य चण्डीगढ़ को नोटिस जारी किए गए हैं कि हर सिविल अस्पताल में इस तरह की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती है, जिसमें दूल्हों का डोप टेस्ट हो सके । क्योंकि अधिकतर पारिवारिक विवादों में कोर्ट ने नोटिस किया है कि उनकी वजह शादी से पहले इस बात की जांच न करना है कि वे नशे का सेवन तो नहीं करते । 
समुद्र में दफन कर रहे टैंक, ताकि पनपे जीवन
लेबनान में जंगी टैंको को भूमध्यसागर में डूबोया जा रहा है, ताकि समुद्री जीवन का संरक्षण किया जा सके और समुद्र में वनस्पति और जीवजन्तु पनप सकें । वैज्ञानिकों का मानना है कि टैंक समुद्र में डालने से इनके ऊपर काई जमेगी और समुद्र का पर्यावरण स्वच्छ होगा । समुद्र में डूबे टैंक चट्टानों की तरह काम करेंगे और इन पर वनस्पति पनपेगी । इस तरह कृत्रिम चट्टाने सेना में काम आने वाले लोहे के पलंगों से भी बनाई जा रही है । 
२०१२ से ही वैज्ञानिक समुद्री जीवन के संरक्षण के लिए काम रहे है । बेरूत के डॉ. माइकल चालहाउब ने त्रिपोली के समुद्र तट की खूबसूरती बढ़ाने के लिए फंड की व्यवस्था की   है । ७०-१०० मीटर की दूरी के अंतराल पर रखा जा रहा है, टैंको का एक दूसरे से । नौकाआें और क्रेन की सहायता से इन टैंको को समुद्र की सतह पर पहुंचाया जा रहा है । 
पिछले १०० सालों में ९० फीसदी घटी गरीबी
आम धारणा के विपरीत आय और जीवनस्तर के मामले में दुनिया के हालात पहले से काफी बेहतर हो गए है । पिछले १०० साल के दौरान घोर गरीबी तकरीबन ९० फीसदी कम हो गई है । १९१० में जहां ८२.४ फीसदी लोग घोर गरीबी में जीवन बिता रहे थे, वहीं २०१५ में ऐसे लोगों की तादाद घटकर केवल९.६ फीसदी रह गई है ं । वर्ल्ड बैंक के मुताबिक वैसे लोगों को गरीब माना जाता है, जिनकी आय रोजना १.९० डॉलर (लगभग १३१ रूपये) से कम है । 
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च प्रोजेक्ट में कहा गया है वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के हिसाब से १९५० में पूरी  दुनिया में तीन चौथाई से ज्यादा लोग घोर गरीबी में थे । १९८१ में भी ऐसे लोगों की संख्या ४४ फीसदी थी । इस मामले में नवीनतम आंकड़े साल २०१५ के उपलब्ध हैं, जिसके मुताबिक घोर गरीबी का सामान कर रहे लोगों की तादाद १० फीसदी से कम रह गई है । प्रोजेक्ट में इसे बड़ी उपलब्धि माना गया है । 
रिपोर्ट के मुताबिक १८२० में कुछ ही लोग अच्छी जीवनशैली का आनंद उठा रहे थे और ज्यादातर लोगोंकी माली हालत ऐसी थी, जिसे हम घोर गरीबी कहते है । जैसे-जैसे समय बीतता गया, दुनिया के ज्यादा से ज्यादा हिस्सोंमें तेजी से औघोगीकरण हुआ । नतीजतन उत्पादकता बढ़ी और इस वजह से लोग गरीबी से उबरने लगे । 
हालांकि समग्र तौर पर दुनियाभर में गरीबी  काफी कम हुई है, लेकिन सभी देशों में यह उपलब्धि एक जैसी नहीं रही है । वर्ल्ड बैंक ने कहा है २०१२ और २०१३ के बीच घोर गरीबी झेल रहे लोगों की तादाद में जो कमी आई, उसमें सबसे ज्यादा योगदान पूर्वी एशिया और प्रशांत का रहा, जिसमें भारती, चीन और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल है । 

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