शनिवार, 18 अगस्त 2018

मध्यप्रदेश पर विशेष 
मध्यप्रदेश के वन संसाधन
जकिया रूही
वन संपदा से सम्पन्न मध्य- प्रदेश मेंआर्थिक एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से वनों के महत्व को देखते हुए वन प्रबंधन की दिशा में राज्य सरकार द्वारा विभिन्न नीतियों एवं संस्थाआें के माध्यम से ठोस कदम उठाए गए हैं । 
हाल ही में जारी की गई भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (वन सर्वेक्षण) २०१७ में राज्य सरकार के इन्हीं प्रयासों के चलते मध्यप्रदेश का विशेष उल्लेख किया गया है । मध्यप्रदेश को सर्वाधिक वन क्षेत्रफल एवं बांस क्षेत्रफल वाले राज्य के रूप में विशिष्टता प्राप्त् हुई है । जल निकायों के क्षेत्रफल में वृद्धि तथा प्रचुर वन कार्बन के लिए भी राज्य को चिन्हित किया गया है । स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश में वन संसाधनों का प्रबंधन राष्ट्रीय स्तर पर एक सकारात्मक संदेश देता है । 
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधीनस्थ संस्था भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून द्वारा सन् १९८७ से वन सर्वेक्षण रिपोर्ट द्विवार्षिक रूप से प्रकाशित की जाती है । वर्तमान रिपोर्ट (२०१७) इस श्रेणी का १५वां प्रतिवेदन है जिसमें भारतीय दूर संवेदी उपग्रह आई.आर.एस. रिसोर्ससेट-२ से प्राप्त् आँकड़ों का प्रयोग कर वन संपदा का आंकलन किया गया  है । 
वन सर्वेक्षण २०१७ के अनुसार मध्यप्रदेश सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला राज्य है, जिसका कुल ७७४१४ वर्ग किलोमीटर अर्थात भौगोलिक क्षेत्र का २५.११ प्रतिशत हिस्सा वनों से आच्छादित है । अरूणाचल प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्रमश: ६६९६४ तथा ५५५४७ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ दूसरे एवं तीसरे स्थान पर है । साथ ही मध्यप्रदेश में कुल ८०७३ वर्ग किलोमीटर का वृक्षावरित इलाका मौजूद है । इस प्रकार से राज्य में वनावरित तथा वृक्षावरित क्षेत्र का विस्तार कुल ८५४८७ वर्ग किलोमीटर है जो कि भौगोलिक क्षेत्र का २७.७३ प्रतिशत तथा देश के कुल हरित आवरण वाले भू-भाग का १०.६६ प्रतिशत हिस्सा है । इस प्रकार से मध्यप्रदेश में प्रतिव्यक्ति हरित क्षेत्रफल की गणना ०.१२ हेक्टेयर की गई है । 
इस रिपोर्ट में हरित आवरण से संबंधित जिले वार आँकड़े भी प्रस्तुत किए गए हैं । मध्यप्रदेश का सर्वाधिक वन क्षेत्रफल बालाघाट एवं उमरिया में मौजूद है जो कि इन जिलों के भौगोलिक क्षेत्रफल का क्रमश: ५३.४६ प्रतिशत व ४९.८५ प्रतिशत है । उज्जैन व शाजापुर जिलों में न्यूनतम वनावरण क्रमश: ०.४४ प्रतिशत तथा ०.७४ प्रतिशत पाया गया है । वर्ष २०१५ के आकलन के मुकाबले सर्वाधिक वनावरण वृद्धि शिवपुरी (८७ वर्ग किलोमीटर) तथा शहडोल (८४ वर्ग किलोमीटर) में दर्ज की गई है । 
भारत में ग्रीन गोल्ड अर्थात बांस युक्त कुल क्षेत्र १५.६९ मिलियन हेक्टेयर आकलित किया गया है जिसका कि ११.५८ प्रतिशत अर्थात १.८ मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल मध्यप्रदेश में स्थित है । वर्ष २०११ की तुलना में ५१०८ वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज करते हुए मध्यप्रदेश ने सर्वाधिक बांस क्षेत्र वाला राज्य बनने के साथ बांस राज्य का दर्जा प्राप्त् किया है, वहीं महाराष्ट्र व अरूणाचल प्रदेश इस सूचक में द्वितीय व तृतीय स्थान पर रहे । 
जल संरक्षण के क्षेत्र में वनों के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस रिपोर्ट में पहली बार जंगलों में मौजूद जल निकायों के क्षेत्रफल वाले सूचकांक को भी शामिल किया गया है, जिसमें सर्वाधिक वृद्धि दर्ज करने वाले महाराष्ट्र, गुजरात एवं मध्यप्रदेश शीर्ष राज्य है । सुखद तथ्य है कि मध्यप्रदेश के वनों में स्थित जल स्त्रोंतो में वर्ष २००५ में १९३० वर्ग किलोमीटर की तुलना में वर्ष २०१५ में २३१९ वर्ग किलोमीटर अर्थात ३८९ वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है । 
कार्बन स्टाक के मामले में भी मध्यप्रदेश राज्य की सराहना हुई है । देश भर में अरूणाचल प्रदेश के कार्बन स्टाक के बाद मध्यप्रदेश में सर्वाधिक स्टाक पाया गया है जो पेरिस जलवायु समझौते के राष्ट्रीय लक्ष्य के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है । मध्यप्रदेश का ६९५.६ मिलियन टन कार्बन स्टाक देश के कुल वन कार्बन का ९.८२ प्रतिशत हिस्सा है । 
रिपोर्ट में सामने आए उत्साहजनक तथ्य राज्य की वानिकी, कृषि वानिकी एवं जल वानिकी नीतियों के अहम योगदान को दर्शाते हैं । राज्य में वन संसाधनों के संरक्षण एवं संवर्धन की दो प्रमुख योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है । कृषि वानिकी से कृषक समृद्धि योजना के तहत वृक्षारोपण/बांस रोपण के लिए प्रत्येक किसान को न्यूनतम ५० व अधिकतम ५००० पौधे नि:शुल्क प्रदाय किये जाते हैं । निजी भूमि पर वानिकी को बढ़ावा देने के लिए किसान लक्ष्मी योजना चलाई जा रही है जिसके अन्तर्गत चयनित भूमि स्वामियों को न्यूनतम १०० पौधों के सफल रोपण हेतु प्रोत्साहन दिया जाता है । दोनों ही योजनाआें में जीवित पौधों की संख्या के आधार पर अनुदान राशि का प्रदाय किया जाता है । 
मध्यप्रेश के आर्थिक सर्वेक्षण २०१७-१८ के अनुसार कृषि वानिकी से कृष समृद्धि योजना के अन्तर्गत कृषकों की भूमि पर रोपण हेतु १.०८ करोड पौधों का प्रदाय सितम्बर २०१७ तक किया गया । निजी भूमि पर वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत भूस्वामी / वनदूतों को माह सितम्बर २०१७ तक ३९.३६ लाख राशि का अनुदान वितरित किया गया है । 
प्रदेश की विभिन्न संस्थाएँ भी कुशलवन प्रबंधन की दिशा में कार्य कर रही है । राज्य का वन विभाग अपनी प्रशासनिक इकाइयों १६ वृत्त एवं ६३ वन मण्डलों के माध्यम से वन क्षेत्रों के वैज्ञानिक प्रबंधन में जुटा हुआ है । वन विभाग अपने फारेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम द्वारा उपग्रह के माध्यम से जंगलोंमें आगजनी की घटनाआें पर निगरानी रखता है । मध्यप्रदेश में वनों की उत्पादकता बढ़ाने एवं वनीकरण कार्य हेतु प्रदेश के ११ कृषि जलवायु क्षेत्रों के अन्तर्गत भोपाल, जबलपुर, रीवा, ग्वालियर, सागर, इन्दौर, खण्डवा, झाबुआ, रतलाम, सिवनी व बैतूल में एक-एक अनुसंधान एवं विस्तार वृत्त स्थापित किए गए हैं । प्रत्येक वृत्त के अन्तर्गत उच्च् तकनीकी रोपणियाँ स्थापित की गई हैं जो वृक्षारोपण की सफलता सुनिश्चित करती हैं । 
जहां एक ओर मध्यप्रदेश बांस मिशन बांस उत्पादन व संरक्षण में अहम भूमिका निभा रही है, वहीं लोक वानिकी एवं संयुक्त वन प्रबंधन के कार्यक्रमों द्वारा जन सहयोग से जंगलों की गुणवत्ता बढ़ाई जा रही है । मध्यप्रदेश संरक्षित वन नियम तथा मध्यप्रदेश ग्राम वन नियम २०१५ के अनुसार ग्राम वन एवं संरक्षित वनों का प्रबंधन ग्राम सभा द्वारा गठित ग्राम वन समितियों को देकर राज्य में जन भागीदारी की अनूठी पहल की गई है । 
हालाँकि वन सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के हरित क्षेत्रफल में १२ वर्ग किलोमीटर की मामूली गिरावट दर्ज की गई है जिसके मुख्य कारण कृषि विस्तार, विकास कार्य, खनन एवं जलमग्नता बताए गए हैं । वर्ष २००५ में राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के कुल ४८.४८ प्रतिशत मेंबुवाई हुई जो वर्ष २०१७ में बढ़कर ५०.१४ प्रतिशत हो गई । साथ ही राज्य में वर्ष २००४-०५ में ७.५ लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता वर्ष २०१५-१६ में ३६ लाख हेक्टेयर हो चुकी है । 
कृषि विस्तार के इन विस्तृत उपायों के कारण मध्यप्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य बना है जिसने लगातार पांचवी बार कृषि कर्मण सम्मान प्राप्त् किया । प्रदेश में वर्ष २००४-०५ में ११४५० किलोमीटर सड़कों की तुलना में वर्तमान में लगभग ३१५०० किलोमीटर लम्बाई की सड़कों का निर्माण एवं उन्नयन हुआ । सरदार सरोवर परियोजना के तहत अलीराजपुर, बड़वानी, धार और खरगौन जिलों के १७८ गांव डूब से प्रभावित हुए । 
हरित क्षेत्र में इस गिरावट की प्रतिपूर्ति करने के लिए नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान नर्मदा कछार में वृक्षारोपण का सघन अभियान चलाया गया । अकेले २ अगस्त २०१७ को नर्मदा नदी के किनारे ७.१० करोड़ पौधों का रोपण किया गया । मध्यप्रदेश ने व्यापक विकास कार्यो के बावजूद हरित क्षेत्र में न्यूनतम कमी दर्ज कर विकास बनाम पर्यावरण बहस में एक सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है । 
भारत में विश्व के कुल भू-भाग का २.४ प्रतिशत हिस्सा है जिस पर दुनिया की १७ प्रतिशत आबादी तथा १८ प्रतिशत मवेशियों की जरूरत पूरी करने का दबाव है । इसके बावजूद भारत अपनी वन संपदा को संरक्षित रखने में सफल रहा है । हर्ष का विषय है कि हरित भवन के रणनीतिक प्रयास में मध्यप्रदेश की अहम भूमिका रही है । आशा है कि भविष्य में भी मध्यप्रदेश प्रकृति: रक्षति रक्षिता को चरितार्थ करते हुए सतत् विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर अन्य राज्यों का पथप्रदर्शन करेगा ।  

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