सोमवार, 18 मार्च 2019

पर्यावरण समाचार
सर्वोच्च् न्यायालय ने दी वनवासियों को राहत 
सर्वोच्च न्यायालय ने आदिवासियों और वनवासियों को भारी राहत देते हुए उन्हें फिलहाल बेदखल नहीं करने का आदेश दिया है । सर्वोच्च न्यायालय ने १३ फरवरी के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दिया  है । इसी के साथ केन्द्र और राज्य सरकार को फटकार भी लगाते हुए कहा कि अब तक क्योंसोते रहे । इस मामले की अगली सुनवाई १० जुलाई को होगी । 
यह फैसला पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार की ओर से आदिवासियों को जंगलों से हटाने के आदेश पर रोक लगाने के मामले में सुनवाई के दौरान दिया । दरअसल केन्द्र और गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जल्द सुनवाई के लिए मेंशन किया । 
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से अधिवक्ता विवेक तन्खा और कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा । गौरतलब है कि १३ फरवरी को जस्टिस अरूण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस् इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने १६ राज्यों के करीब ११.८ लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को खारिज करते हुए राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि वे अपने कानूनों के मुताबिक जमीनें खाली कराएं । न्यायालय ने १६ राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश जारी कर कहा था कि वे २४ जुलाई से पहले हलफनामा दायर कर बताएं कि उन्होंने तय समय में जमीनें खाली क्यों नहीं कराई । 
वन अधिकार अधिनियम के तहत अजजा और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा किए ११७२९३१ (१.१७ मिलियन) भूमि स्वामित्व के दावों कोविभिन्न आधारों पर खारिज कर दिया गया है । इनमें वो लोग शामिल है जो ये सबूत नहीं दे पाए कि तीन पीढ़ियों से भूमि उनके कब्जे में थी । ये कानून ३१ दिसम्बर २००५ से पहले तीन पीढ़ियों तक वन भूमि पर निवासियों को भूमि हक देने का प्रावधान करता है । 
इन दावों की जांच के लिए जिलों में कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी जिनमें वन अधिकारियों को भी रखा गया था  । म.प्र. में अजजा और अन्य वनों के निवासियों (वन अधिकार कानून की मान्यता) अधिनियम, २००६ के तहत वनों में निवासी द्वारा प्रस्तुत भूस्वा-मित्व के दावों का २० फीसदी है ।

कोई टिप्पणी नहीं: