बुधवार, 19 जून 2019

जन जीवन
वन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन 

  जल संरक्षण और पारिस्थि-तिकीय संतुलन में वनों की भूमिका को प्राथमिकता देना, वनवासी और वन निर्भर समुदायों की आजीविका की रक्षा करना भी आज की वानिकी के लक्ष्य होने चाहिए । 
भारतीय वन अधिनियम १९२७ में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया कानून है । आजादी के ७२ साल बाद तक भी हम अपने वन प्रबंधन को उसी कानून के आधार पर चला रहे हैं। हालांकि ९० के दशक मेंभी इस कानून के स्थान पर नया कानून लाने के प्रयास किए गए थे, किन्तु वन संसाधन पर दावेदारों के हितों में आपसी टकराव इतने अधिक हैं कि उनमें आपसी समन्वय बिठाना कोई आसान काम नहीं । अत: तत्कालीन सरकार ने यह सोचा होगा कि एक नई सिरदर्द क्योें मोल ली जाए और मामला वहीं पड़ा रहा । १९२७ के बाद देश की नदियों में बहुत जल बह चुका है । 
इसलिए एक नए कानून की जरूरत तो सभी समझते हैं, किन्तु हर दावेदार अपने हितों के मुताबिक नया वन अधिनियम चाहता है । १९२७ में ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश हितों की पूर्ति के लिए वन अधिनियम बनाया था, इस बात पर किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए । ज्यादा से ज्यादा वन औघोगीकरण का हित साधना ही उसका मुख्य लक्ष्य था । इसीलिए पहला वन अधिकारी जो भारत के मालाबार जंगलों के प्रबंध के नाम पर भारत में भेजा गया, वह एक पुलिस अफसर था । तब से ही वन विभाग एक पुलिस प्रशासन की तर्ज पर काम करने वाला विभाग है और उसी कार्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए १९२७ का वन अधिनियम आधारभूत कानून का काम करता आ रहा है । एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि वन संसाधनों के दावेदार, आज की परिस्थितियों के आधार पर कौन हो, यह बात भी सुलझाई नही गई है । 
ब्रिटिश राज में तो मुख्य दावेदार वन विभाग, उद्योग, खनन आदि क्षेत्र ही थे, जिनके हितसाधन के लिए वन संसाधनों को स्थानीय उपयोगकर्ताआें के हाथ से बाहर निकालने के लिए पुलिस की तर्ज पर वन विभाग का गठन किया गया था । इसके लिए वनों के बंदोबस्त की प्रक्रिया अपनाई गई, जिसके तहत स्थानीय बरतनदारों की  सुनवाई करके एक सेटलमेंट अफसर उनके अधिकारों की सीमा निर्धारित कर देता था । जहां स्थानीय जनता ने कुछ विरोध किया, वहां के लिए कुछ छूट दे दी । वनों के मामले में दो पहलू हैं । एक तो वनों की विविध उपज है, दूसरी वन भूमि है । ब्रिटिश वन विभाग ने वनों पर कब्जा करके पहले तो वन उपज का लाभ लेने के लिए योजना बनाई, जिसमें अधिक से अधिक से दोहन और वन कटाई से वन विनाश की दर बहुत ज्यादा है, यदि इसके साथ वन रोपण का कार्य नहींकिया गया, तो संसाधन नष्ट होने का खतरा पैदा हो जाएगा । 
वन रोपण कार्य आरंभ करने के लिए जर्मन वानिकी वैज्ञानिकों का सहयोग लिया गया । क्योंकि ब्रिटेन को वन विज्ञान की उतनी जानकारी तब तक नहीं थी । जर्मन वैज्ञानिकों का क्योंकि कोई निहित स्वार्थ नहीं था, इस कारण उन्होंने वानिकी का अच्छा वैज्ञानिक आधार तैयार करने में सहयोग किया, किन्तु वानिकी नीति और प्रशासन तो ब्रिटिश सरकार तथा वन विभाग को ही चलाना था । उन्होंने प्राकृतिक विविधता से परिपूर्ण वनों को एकल प्रजाति के इमारती लकडी के वनों में बदलने का क्रम शुरू  कर दिया । 
देश का एक बहुत बड़ा वर्ग जो वन संसाधनों पर अपनी आजीविका के लिए पूर्णतया या आंशिक रूप से निर्भर है और इसी कारण वनों का स्वाभाविक संरक्षक है, उसका सशक्तिकरण हो । उसके रोजगार की समस्या हल हो तथा मध्य भारत में उनके अंदर माओवादियों की घुसपैठ  का वैचारिक अधिष्ठान भी समाप्त् हो ।         

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