बुधवार, 19 जून 2019

पर्यटन
भारत मेंपर्यावरणीय पर्यटन
डॉ.दीपक कोहली
भारत एक ऐसा देश है जो पूरी तरह से प्राकृतिक संपदा से संपन्न है। यहां नदीं पहाड, झरने, रेगिस्तान, एवं जगंल इत्यादि सभी कुछ है। जो इसे विविधताओं में एकता वाला राष्ट्र बनाते है । 
भारत में प्रकृति से जुड़े कई पर्यटन स्थल है जो ना केवल आपको प्रकृति के करीब ले जाने में मदद करते हैं बल्कि प्रकृति की विविधता और उसके सृजन को भी परिभाषित करते हैं। पर्यावरणीय पर्यटन पूरी तरह से पर्यटन के क्षेत्र में एक नया दृष्टिकोण है। मूलरूप से पर्यावरणीय पर्यटन जितना संभव हो कम पर्यावरणीय प्रभाव के रूप में क्षेत्र की मूल आबादी को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे आप वहां की यात्रा के साथ उस जगह के वन्य जीवन और उनके निवास के संरक्षण को प्रोत्साहित करते है।यह, वातावरण की सांस्कृतिक और प्राकृतिक इतिहास की सराहना करने के लिए प्राकृतिक क्षेत्रों के लिए एक संरक्षण यात्रा है। 
मनोरंजन के लिए प्रकृति में गहरी यात्रा करने के लिए इको-टूरिज्म यानि पारिस्थितिक पर्यटन बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। यह प्राकृतिक परिवेश को परेशान या नष्ट किए बिना और साथ ही उस स्थान पर मौजूद मूल संस्कृतियों का दोहन किए बिना आपका मनोंरजन करते है। पारिस्थितिक पर्यटन यात्री और सेवा प्रदाता दोनों की जिम्मेदारी है कि वो प्रकृति को किसी भी तरह का नुकसान  ना पहुंचाए ।    
देश में विभिन्न वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की घोषणा ने निश्चित रूप से वन्यजीव संसाधनों के विकास में वृद्धि को प्रोत्साहित किया है। वर्तमान में, देश में ४४१ वन्यजीव अभ्यारण्य और ८० राष्ट्रीय उद्यान हैं जो सामूहिक रूप से भारत में पशुओं के संरक्षण और उनकी देखभाल के लिए कार्य करते हैं। 
जागरूकता फैलाने के लिए, भारत सरकार ने देश में पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में पारिस्थितिक पर्यटन को लेकर विभाग भी स्थापित किया है जो वर्तमान में भारत में वन्यजीव संसाधन के संरक्षण के काम करता है । इन दिनों देश में अवैध शिकार को काफी हद तक बंद कर दिया है। शिकारियों, शिकारी और जानवरों और पेड की अवैध व्यापारियों के लिए गंभीर सजा कर रहे हैं। जानवरों और पौधों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए जो कई पशु और पादप अधिकार संगठन काम कर रहे हैं । 
पर्यावरण पर्यटन प्रकृति से जुड़ा पर्यटन है जिसमें आप देश की संस्कृति, सभ्यता के साथ विभिन्न जीव-जंतुओं के बारे में भी जान पाते हैं। विभिन्न पेड़-पौधे फल-फूल इस पर्यटन का हिस्सा होते हैं इसीलिए आपको यह विशेष रुप से ध्यान रखने की आवश्यकता है कि आप इनका किसी भी तरह से दोहन ना करें। आप इन्हें बिना नुकसान पहुंचाए प्रकृति की इस सुरम्य यात्रा का आनंद लें।   पर्यावरण पर्यटन पारिस्थितिकी संतुलन को नुकसान नहीं यकीन कर रही है, जबकि उनके प्राकृतिक सुंदरता और सामाजिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध हैं कि स्थानों के लिए यात्रा पर जोर देता। 
पारिस्थितिकी पर्यटन एक स्वाभाविक रूप से संपन्न क्षेत्र है और इसकी सुंदरता और स्थानीय संस्कृति को बनाए रखने की विविधता को संरक्षित करने के लिए एक जागरूक और जिम्मेदार प्रयास से संबंधित है। आपकी पर्यावरणीय यात्रा के लिए हम आपको कुछ ऐसे ही स्थलों के बारे में बताने जा रहे है जो आपकी यात्रा को प्रकृति से जोड़ उसके और करीब ले आएगी । जो देश में पारिस्थितिक पर्यटन का एक बड़ा हिस्सा हैं। 
तिरुवनंतपुरम से लगभग ७२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित तनमाला भारत का पहला नियोजित पारिस्थितिक पर्यटन स्थान है। सुंदर पश्चिमी घाटों और शेन्दुरुनी वन्यजीव अभयारण्य के सुन्दर जंगलों से घिरा हुआ, तनमाला अपने एक तरह की कामकाजी और जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। यह तीन प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित है - अवकाश क्षेत्र, साहसिक क्षेत्र और संस्कृति क्षेत्र प्रत्येक एक विशेष विषय के अनुसार डिजाइन किया गया। यहां पर कई रिसॉट्र्स भी स्थित हैं जहां आगंतुक शांतिपूर्वक रह सकते हैं।
महाराष्ट्र में स्थित अंजता और एलोरा की गुफाएं सबसे प्राचीन पर्यावरणीय पर्यटन का स्थल है। यह सबसे लोकप्रिय पर्यटक  आकर्षणों में से एक, के रुप में जानी जाती हैं। खासकर यदि आप एक वास्तुकला प्रेमी हैं।  यहां की गुफाएं सुंदर और उत्तम दीवार चित्रों और कला का घर हैं जो बुद्ध और हिंदू धर्म के जीवन पर आधारित हैं। 
यह गुफाएं महाराष्ट्र के  औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। बड़े-बड़े पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई ये गुफाएं भारतीय कारीगरी और वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। अजंता की गुफाओं में ज्यादातर दीवारों पर की गई नक्काशी बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है जबकि एलोरा की गुफाओं में मौजूद वास्तुकला और मूर्तियां तीन अलग-अलग धर्मों से जुड़ी  हैं- बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म का प्रतीक हैं। अजंता एक दो नहीं बल्कि पूरे ३० गुफाओं का समूह है जिसे घोड़े की नाल के आकार में पहाड़ो को काटकर बनाया गया है और इसके सामने से बहती है एक संकरी सी नदी जिसका नाम वाघोरा है। 
एलोरा की गुफाएं पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई वास्तुकला का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। धार्मिक चित्रों, मूर्तियों और गुफाओं की प्राकृतिक सुंदरता पर्यावरण के अनुकूल आगंतुकों को उस समय की मौजूद संस्कृतियों में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। व्यावसायीकरण से दूर, अजंता और एलोरा गुफाएं आपके इको-टूर के हिस्से के रूप में जाने के लिए एक शानदार जगह हैं।
भारतीय मुख्य भूमि से दूर स्थित, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ५७२ छोटे द्वीपों का एक समूह है जो अपने निर्वासित जंगलों, स्पष्ट जल और सदाबहार पेड़ों के लिए जाने जाते हैं। चूंकि वे अन्य देशों के नजदीक स्थित हैं, इसलिए द्वीप विभिन्न वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला का एक घर हैं ।   पर्यावरण पर्यटकों के लिए इस द्वीप के पास बहुत कुछ है। एक शांत वातावरण, स्वच्छ हवा, सुन्दर जंगल और एक समृद्ध समुद्र के साथ, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह  कपर्यावरण पर्यटन के लिए सबसे पसंदीदा स्थानों में से एक बन गए हैं। यहां की प्रदूषण रहित हवा, पौधों और जानवरों की नायाब प्रजातियों की मौजूदगी की वजह से आपको इस जगह से प्यार हो जाता है।
नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान हिमालय में एक अविश्वनीय जैव विविधता के साथ असाधारण रूप से सुंदर पार्क हैं। भारत के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत नंदा देवी का प्रभुत्व, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपने निर्बाध पर्वत जंगल के लिए जाना जाता है और सुंदर ग्लेशियर और अल्पाइन मीडोज के पक्ष में है। राष्ट्रीय उद्यान के तौर पर नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना १९८२ में हुई थी। यह उत्तरी भारत में उत्तराखंड राज्य में नंदा देवी की चोटी (७८१६ मी) पर स्थित है। वर्ष १९८८ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था।
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान में एक और अधिक सभ्य परिदृश्य है । फूलों का एक शानदार क्षेत्र यहां आपको देखने को मिलता है। यह दोनों राष्ट्रीय उद्यान खूबसूरती से एक-दूसरे की प्रशंसा करते हैं और हिमालय में दीर्घकालिक पारिस्थि-तिकीय अवलोकन के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। इस उद्यान में १७ दुर्लभ प्रजातियों समेत फूलों की कुल ३१२ प्रजातियां हैं। देवदार, सन्टी/ सनौबर, रोडोडेंड्रन (बुरांस) और जुनिपर यहां की मुख्य वनस्पतियां हैं।  नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क में आकर पर्यटक, हिम तेंदुआ, हिमालयन काला भालू, सिरो, भूरा भालू, रूबी थ्रोट, भरल, लंगूर, ग्रोसबिक्सम, हिमालय  कस्तूकरी मृग और हिमालय तहर को देख सकते हैं। इस राष्ट्रीय पार्क में लगभग १०० प्रजातियों की चिड़ियों का प्राकृतिक आवास है। 
राजस्थान के भरतपुर में स्थित, केवलादेव नेशनल पार्क मानव निर्मित आर्द्रभूमि है और भारत में सबसे प्रसिद्ध अभयारण्यों में से एक है जो पक्षियों की हजारों प्रजातियों का घर है। इस राष्ट्रीय उद्यान में ३७९ से अधिक पुष्प प्रजातियां, ३६६ पक्षी प्रजातियां, मछली की ५० प्रजातियां, छिपक-लियों की ५ प्रजातियां, १३ सांप प्रजातियां, ७ कछुआ प्रजातियां और ७ उभयचर प्रजातियां हैं। केवलादेव नेशनल पार्क देश के सबसे अमीर पक्षी विहारों में में से एक है, खासकर सर्दियों के महीनों के दौरान यहां देश-विदेशी पक्षियों का जमावड़ा लगता है।  पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इस पक्षी विहार में हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त् जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। १९८५ में इसे यूनेस्को की विश्व विरासत भी घोषित कर दिया गया था ।
उत्तरी कर्नाटक में दांदेली उन लोगों के लिए छुट्टी के लिए एक उत्तम विचार स्थान है जो पर्यावरण-पर्यटन और प्रकृति से प्यार करते हैं। यह अपने साहसी जल खेलों के लिए जाना जाता है और इसे कई पर्यावरण गतिविधियों के साथ एक पारिस्थि-तिकी-अनुकूल पर्यटन स्थल के रूप में घोषित किया गया है जो क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक सौंदर्य और वन्यजीवन को संरक्षित रखने में मदद करता है।
पर्णपाती जंगलों और एक विविध वन्यजीवन से घिरा हुआ, दांदेली पर्यटकों को एक अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करता है। पश्चिमी घाट के घने पतझड़ जंगलों सो घिरा दांदेली दक्षिण भारत के साहसिक क्रीड़ा स्थल के रूप में जाना जाता है। राफ्िंटग के लिए दान्डेली भारत में दूसरी सबसे लोकप्रिय जगहों में शुमार है।  इसके अलावा कायकिंग, कोरेकल राइडिंग, ट्रैकिंग और रोप क्लाइबिंग कर सकते हैं।  यहाँ पर पक्षियों की  लगभग २०० प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें ऐशी स्वालो श्राइक, ड्रॉगो, ब्राहमिनी काइट, मालाबार हॉर्नबिल और मिनीवेट शामिल हैं। पर्यटक अभ्यारण्य के जंगल में ट्रेकिंग के साथ-साथ नौकायन भी कर सकते हैं। 
लक्षद्वीप  दुनिया में सबसे प्रभावशाली उष्णकटिबंधीय द्वीप प्रणालियों में से हैं। ४२०० वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला हुआ लक्षद्वीर ३६ द्वीपों का एक छोटा सा समूह हैं, जो समुद्री जीवन से अत्यधिक समृद्ध हैं। केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप द्वीप समूह पर्यावरण-पर्यटन के कारण प्रसिद्ध हैं । नारियल वीथिकाओं के अतिरिक्त पपीते, केले व  अमरूद के पेड़ों की कतारें भी सैलानियों को अलग अहसास से भर देती हैं।
लक्षद्वीप का सबसे बड़ा आकर्षण है- प्राचीन सुन्दरता और सकुनू की जिंदगी। शहरी भाग-दौड? और व्यस्त दिनचर्या के कोलाहल से दूर, आपको यहां सिर्फ समुद्री तटों से टकराती लहरों की आवाज सुनाई देगी। इस द्वीप पर आपको स्कूबा डाइविंग, स्नोर्किंलग, कयाकिंग, कैनोइंग, विंडसर्फिंग, याच और इसी तरह की कई अन्य रोमांचक गतिविधियां मिल जाएंगी।
राजस्थान के अलवर से ३७ किलोमीटर दूर स्थित, सरिस्का टाइगर रिजर्व भारत में प्रमुख वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है।  एक विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र के साथ, सरिस्का टाइगर रिजर्व अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों का घर है।  अरावली पहाडियों के संकीर्ण घाटियों और तेज चट्टानों पर स्थित, सरिस्का टाइगर रिजर्व का शानदार परिदृश्य पर्णपाती पेड़ो और उत्कृष्ट घास के मैदानों से भरा हुआ है। इस खूबसूरत वन्यजीव अभयारण्य का पूरी तरह से अन्वेषण करने का सबसे अच्छा तरीका आपके वाहन के माध्यम से है। सरिस्का को वन्य जीव अभ्यारण्य का दर्जा १९५५ में मिला, और जब प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई, तो १९७८ में इसे टाइगर रिजर्व बना दिया गया। कुछ ही सालों बाद इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया। 
अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित यह अभ्यारण्य बंगाल टाइगर, जंगली-बिल्ली, तेंदुआ, धारीदार लकडबग्घा, सुनहरे सियार, सांभर, नीलगाय, चिंकारा जैसे जानवरों के लिए तो जाना ही जाता है, मोर, मटमैले तीतर, सुनहरे कठफोडा, दुर्लभ बटेर जैसी कई पक्षियों का बसेरा भी है। इसके अतिरिक्त यह अभ्यारण्य कई ऐतिहासिक इमारतों को भी खुद में समेटे हुए है, जिसमें कंकवाड़ी किला प्रसिद्ध है। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान विविध प्रजातियों के जंगली जानवरों-तेंदुए, चीतल, सांभर, नीलगाय, चार सींग वाला हिरण, जंगली सुअर, रीसस मकाक, लंगूर, लकड़बग्घा और जंगली बिल्लियों का शरणस्थल है। 
कॉर्बेट  नेशनल पार्क भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य है जो टाइगर परियोजना का हिस्सा बन गया है । यह वनस्पति और बड़ी संख्या में बाघों के लिए जाना जाता है, कॉर्बेट नेशनल पार्क ११० पेड़ प्रजातियों, ५८० पक्षी प्रजातियों, सरीसृपों की २५ प्रजातियों और ५० स्तनपायी प्रजातियों का घर है। इस अभयारण्य का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका जीप सफारी के माध्यम से है जिसे आसानी से पर्यटक केन्द्र में रखा जा सकता है। 
कॉर्बेट नेशनल पार्क वन्य जीव प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है जो प्रकृति माँ की शांत गोद में आराम करना चाहते हैं । पहले यह पार्क (उद्यान) रामगंगा राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता था परंतु वर्ष १९५७ में इसका नाम कॉर्बेट नेशनल पार्क (कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान) रखा गया । यह भारत में जंगली बाघों की सबसे अधिक आबादी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और जिम कॉर्बेट पार्क  लगभग १६० बाघों का आवास है। इस पार्क में लगभग ६०० प्रजातियों के रंगबिरंगे पक्षी रहते है इसके अलावा यात्री यहाँ ५१ प्रकार की झाडियाँ, ३० प्रकार के बाँस और लगभग ११० प्रकार के विभिन्न वृक्ष देख सकते हैं । कॉर्बेट नेशनल पार्क  आने वाले पर्यटकों के लिए कोसी नदी रॉफ्िटंग का अवसर प्रदान करती है।  
मुम्बई के नजदीक स्थित, महाराष्ट्र में एलिफंटा गुफाएं अपने रॉक-कट मूर्तियों के लिए जानी जाती हैं जो सम्मानित हिंदू देवता - भगवान शिव को समर्पित हैं। इनमें से कुछ गुफाएं विशाल आकार में हैं, जिनमें मंदिर शामिल हैं, जो लगभग ६०,००० वर्ग फुट कवर करते हैं। यूनेस्को द्वारा विरासत स्थल के रूप में घोषित, एलिफंटा गुफाआें की मूर्तियां एक वास्तुकला प्रेमी के लिए स्वर्ग हैं।
एलिफेंटा गुफाआें को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के   रूप में भी घोषित किया है और भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग द्वारा इसका रखरखाव किया जाता है। एलिफेंटा की गुफाएं कलात्मक कलाकूतियों की श्रृंखला है जो कि एलिफेंटा आईलैंड में स्थित है। इसे सिटी आफ केव्य कहा जाता   है । मुंबई के गेटवे आफ इंडिया से लगभग १२ किमी की दूरी पर अरब सागर में स्थित यह छोटा सा टापू है। यहां सात गुफाएं बनी हुई है जिनमें से मुख्य गुफा में २६ स्तंभ हैं । भगवान शिव के कई रूपों को उकेरा गया है। यहां भगवान शंकर की नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं। शिल्प दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित है। 
एलिफेंटा की गुफांए कलात्मक कलाकूतियों की श्रृंखला है जो कि एलिफेंटा आईलैंड में स्थित है। एलिफेंटा में भगवान शंकर के कई लीला रूपों की मूर्तिकारी, एलौरा और अजंता की मूर्तिकला के समकक्ष ही है। एलिफेंटा की गुफाओ में चट्टानों को काट कर मूर्तियाँ बनाई गई है। इस गुफा के बाहर बहुत ही मजबूत चट्टान भी है। इसके अलावा यहाँ एक मंदिर भी है जिसके भीतर गुफा बनी हुई है ।  
पारिस्थितिक पर्यटन अभी भी भारत में विकसित हो रहा है और पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय रूप से बढता जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय जीव-जन्तु, पेड़ पौधों का संरक्षण हो सके जो आज के समय में भारत सरकार की प्रथम प्राथमिकता है।                   

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