प्रधानमंत्री ने थामी शेर बचाने की कमान
बाघ बचाआें मुहिम की
बाघ बचाआें मुहिम की
कमजोरियों को दुरस्त करने की कमान अब सीधे प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने थाम ली है इस कवायद में उन्होंने उत्तराखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियोंको चिट्ठी लिख कर तत्काल टाइगर रिजर्व क्षेत्रों की सुध लेने को कहा है ।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश चंद्र पोखरियाल निशंक को लिखी चिट्ठी में प्रधानमंत्री ने कार्बेट क्षेत्र में मानव-बाघ टकराव की घटना पर चिंता जताई । साथ ही राज्य सरकार से बाघ क्षेत्रों पर स्थानीय लोगों की निर्भरता कम करने के लिए कहा गया है । ताकि टकराव की स्थिति से बचा जा सके ।
प्रधानमंत्री ने बीते दिनों कार्बेट क्षेत्र में बाघों को बचाने के लिए किए गए प्रयासों को तेज करने के साथ-साथ राज्य को कार्बेट में पर्यटन को नियंत्रित करने की सलाह दी है । साथ ही कार्बेट के आसपास के क्षेत्र को पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील घोषित करने के लिए भी कहा है ।
प्रधानमंत्री मनमोहन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोंक चह्वाण को भी चिट्ठी लिखी है । उन्हौने तड़ोबा रिजर्व मेंे यथाशीघ्र बफर क्षेत्र रेखांकित करने का आग्रह किया साथ ही स्पेशल टाइगर फोर्स के गठन को भी गति देने का कहा । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी प्रधानमंत्री ने ऐसा ही कहा है । प्रधानमंत्री ने तीनों राज्यों से बाघ संरक्षण के मोर्चे पर तैनात फील्ड स्टाफ के खाली पड़े पद भी जल्द भरने का आग्रह किया ।
गौरतलब है कि बीते दिनों राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पांचवी बैठक में प्रधानमंत्री ने बाघों को बचाने के लिए चल रही मुहिम के कील-कांटे दुरूस्त करने को कहा था इसी बैठक में प्रधानमंत्री ने वन और पर्यावरण मंत्रालय के तहत वन्यजीवों के लिए अलग विभाग बनाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी थी ।
बाघों की लगातार घटती संख्या
पर अंकुश लगाने के लिए केन्द्र सरकार ने कई मशक्कत शुरू कर दी है । इसके तहत महराष्ट्र, उड़ीसा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए अभयारण्य बनाने का फैसला लिया गया है । वर्ष २००८ में हुई गणना के अनुसार, देश में कुल १४११ बाघ ही बचे है । लगातार घटती संख्या के दो मुख्य कारण अभी सामने आए है । पहला, बाघों का बड़े पैमाने पर शिकार होना है । जबकि दूसरा , जगल में भोजन का अभाव भी उन्हें भूखे मरने पर मजबूर कर रहा है । ऐसे में सरकार कुछ विशेष स्थान बनाने पर विचार कर रही है जहां बाघों को पर्याप्त् संरक्षण और सुरक्षा मिल सके ।
भूकंप की चेतावनी देते हैं मेंढक
बरसों पहले मनुष्य ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया, जो विनाशकारी भूकंप से पृथ्वी के दहलने की पूर्व चेतावनी दे सकता है । यदि बुधवार को प्रकाशित हुए वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट कर पुष्टि हो जाती है तो हमें भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाला एक सजीव माध्यम मिल जाएगा । रिपोर्ट के मूताबिक उम्मीद की जा रही है कि भूकंप की चेतावनी देने वाला यह माध्यम एक छोटा, भुरा उभयचर हो सकता है । अध्ययन में बताया गया है कि मध्य इटली में छ: अप्रैल २००९ को ला अक्विला शहर में आए भूकंप के बारे में नर मेंढक (बुफो बुफो ने पांच दिन पहले चेतावनी दी थी । इस प्राकृतिक आपदा में ३०० लोगों की मौत हो गई थी और ४०,००० अन्य विस्थापित हो गए थे ।
ब्रिटेन मुक्त विश्वविद्यालय के जीव विज्ञानी राशेल ग्रांट ने ला आक्विला से ७४ किलोमीटर दूर सान रफिलों लेक में मेंढक पर निगरानी रखने की एक परियोजना शुरू की । इसके कुझ दिन बाद ही ला आक्विला में ६.३ तीव्रता का भूकंप आया था वैज्ञानिकों के दो सदस्यीय इल ने इस स्थान का २९ दिनों तक मुआयना किया था मेंढकों की संख्या गिनी तापमान, आर्द्रता, हवा की गति, बारिश और अन्य परिस्थितियों की माप की ।
ग्रांट ने पाया कि दो बाद ही उनकी संख्या में कमी हो गई । वही, भूकंप से पांच दिन पहले एक अप्रैल को ९६ फीसदी नर मेंढक वहां से भाग चुके थे । उनमें से कई दर्जन नौ अप्रैल को पूर्णमासी की रात वापस लौटे । इस बीच, प्रजनन स्थल पर मेंढकों के जोड़ियों की संख्या भूकंप से तीन दिन पहले घटकर शुन्य हो गई और छ: अप्रैल से लेकर भूकंप के बाद तक वहां उनका एक भी नया अंडा नहीं पाया गया । ***
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश चंद्र पोखरियाल निशंक को लिखी चिट्ठी में प्रधानमंत्री ने कार्बेट क्षेत्र में मानव-बाघ टकराव की घटना पर चिंता जताई । साथ ही राज्य सरकार से बाघ क्षेत्रों पर स्थानीय लोगों की निर्भरता कम करने के लिए कहा गया है । ताकि टकराव की स्थिति से बचा जा सके ।
प्रधानमंत्री ने बीते दिनों कार्बेट क्षेत्र में बाघों को बचाने के लिए किए गए प्रयासों को तेज करने के साथ-साथ राज्य को कार्बेट में पर्यटन को नियंत्रित करने की सलाह दी है । साथ ही कार्बेट के आसपास के क्षेत्र को पर्यावरण संरक्षण कानून के तहत पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील घोषित करने के लिए भी कहा है ।
प्रधानमंत्री मनमोहन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोंक चह्वाण को भी चिट्ठी लिखी है । उन्हौने तड़ोबा रिजर्व मेंे यथाशीघ्र बफर क्षेत्र रेखांकित करने का आग्रह किया साथ ही स्पेशल टाइगर फोर्स के गठन को भी गति देने का कहा । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी प्रधानमंत्री ने ऐसा ही कहा है । प्रधानमंत्री ने तीनों राज्यों से बाघ संरक्षण के मोर्चे पर तैनात फील्ड स्टाफ के खाली पड़े पद भी जल्द भरने का आग्रह किया ।
गौरतलब है कि बीते दिनों राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पांचवी बैठक में प्रधानमंत्री ने बाघों को बचाने के लिए चल रही मुहिम के कील-कांटे दुरूस्त करने को कहा था इसी बैठक में प्रधानमंत्री ने वन और पर्यावरण मंत्रालय के तहत वन्यजीवों के लिए अलग विभाग बनाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी थी ।
बाघों की लगातार घटती संख्या
पर अंकुश लगाने के लिए केन्द्र सरकार ने कई मशक्कत शुरू कर दी है । इसके तहत महराष्ट्र, उड़ीसा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए अभयारण्य बनाने का फैसला लिया गया है । वर्ष २००८ में हुई गणना के अनुसार, देश में कुल १४११ बाघ ही बचे है । लगातार घटती संख्या के दो मुख्य कारण अभी सामने आए है । पहला, बाघों का बड़े पैमाने पर शिकार होना है । जबकि दूसरा , जगल में भोजन का अभाव भी उन्हें भूखे मरने पर मजबूर कर रहा है । ऐसे में सरकार कुछ विशेष स्थान बनाने पर विचार कर रही है जहां बाघों को पर्याप्त् संरक्षण और सुरक्षा मिल सके ।
भूकंप की चेतावनी देते हैं मेंढक
बरसों पहले मनुष्य ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया, जो विनाशकारी भूकंप से पृथ्वी के दहलने की पूर्व चेतावनी दे सकता है । यदि बुधवार को प्रकाशित हुए वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट कर पुष्टि हो जाती है तो हमें भूकंप की पूर्व चेतावनी देने वाला एक सजीव माध्यम मिल जाएगा । रिपोर्ट के मूताबिक उम्मीद की जा रही है कि भूकंप की चेतावनी देने वाला यह माध्यम एक छोटा, भुरा उभयचर हो सकता है । अध्ययन में बताया गया है कि मध्य इटली में छ: अप्रैल २००९ को ला अक्विला शहर में आए भूकंप के बारे में नर मेंढक (बुफो बुफो ने पांच दिन पहले चेतावनी दी थी । इस प्राकृतिक आपदा में ३०० लोगों की मौत हो गई थी और ४०,००० अन्य विस्थापित हो गए थे ।
ब्रिटेन मुक्त विश्वविद्यालय के जीव विज्ञानी राशेल ग्रांट ने ला आक्विला से ७४ किलोमीटर दूर सान रफिलों लेक में मेंढक पर निगरानी रखने की एक परियोजना शुरू की । इसके कुझ दिन बाद ही ला आक्विला में ६.३ तीव्रता का भूकंप आया था वैज्ञानिकों के दो सदस्यीय इल ने इस स्थान का २९ दिनों तक मुआयना किया था मेंढकों की संख्या गिनी तापमान, आर्द्रता, हवा की गति, बारिश और अन्य परिस्थितियों की माप की ।
ग्रांट ने पाया कि दो बाद ही उनकी संख्या में कमी हो गई । वही, भूकंप से पांच दिन पहले एक अप्रैल को ९६ फीसदी नर मेंढक वहां से भाग चुके थे । उनमें से कई दर्जन नौ अप्रैल को पूर्णमासी की रात वापस लौटे । इस बीच, प्रजनन स्थल पर मेंढकों के जोड़ियों की संख्या भूकंप से तीन दिन पहले घटकर शुन्य हो गई और छ: अप्रैल से लेकर भूकंप के बाद तक वहां उनका एक भी नया अंडा नहीं पाया गया । ***
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