बुधवार, 15 जुलाई 2015

अपने देश में जैव विविधता की अनदेखी
मुकुल व्यास, नई दिल्ली
दुनिया में जैव विविधता खतरे में है और इसमें भारत भी पीछे नहीं  है । हमारा ग्रह मूलत: एक नीला ग्रह है । हमारे समस्त नीले सागर और उनमें पनपने वाले जीव-जंतु हमारी जैविक विविधताआें के लिए बेहद जरूरी है । मनुष्य की कई बुनियादी आवश्यकताएं समुद्रों द्वारा पूरी की जाती है । हमारी सांसों के लिए ७० प्रतिशत ऑक्सीजन समुद्रों से मिलती है । 
कुदरत ने हमें भरपूर जैव विविधता दी थी । इसमें से बहुत कुछ हम गंवा चुके हैं। फिर भी हमारे सामने संरक्षण और हिफाजत के लिए अभी भी काफी कुछ  बचा हुआ है । हमारे यहां १८ ऐसे स्थान है, जो जैव-विविधता की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है । मसलन, हमारे पूर्वीहिमालय क्षेत्र में दुर्लभ किस्म के जीव जन्तुआें और वनस्पतियों का वास है, लेकिन मनुष्य की गतिविधियों के दबाव से इन दुर्लभ प्रजातियों के कुदरती पर्यावास को खतरा उत्पन्न हो गया है । पश्चिमी घाट हमारा सबसे बड़ा जैव विविधता वाला क्षेत्र है । इसका विस्तार कन्याकुमारी से गुजरात तक है । यह दुनिया के उन २५ क्षेत्रोंमें से है, जो जैव विविधता की दृष्टि से बहुत नाजुक माने जाते हैं । यहां ऊष्मा कटीबंधीय घने जंगल हैं, जहां बहुत ही दुर्लभ किस्म के पेड़-पौधे पाए जाते हैं । यहां किंग कोबरा, जैसे नाग, चट्टानी अजगर और दुर्लभ कछुए पाए जाते हैं । हमारे पूर्वी घाट हाथियों और औषधीय वनस्पतियों के लिए मशहूर है । हमारे समुद्री तट बहुत लंबे है । हमारे यहां द्वीपों, समुद्री झीलों, चट्टानी तटों, खारे दलदलों और रेतीले इलाकों की विविधता है । 
जैव संरक्षण में हमारा रवैया बहुत लचर रहा है । पश्चिमी घाट के संरक्षण पर ताजा विवाद उदाहरण है । दुनिया के इन अलौकिक जंगलों की जैव-विविधता को बचाने के बारे मेंयदि हमने अपनी नीति को अब तक अंतिम रूप दे दिया होता, तो हम आज जैव विविधता को बना कर रख सकते थे । पश्चिमी घाट के पर्यावास संरक्षण के बारे मेंमाधव गाडगिल की सिफारिशों और उनकी समीक्षा करने के लिए गठित कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट से मामला सुलझने के बजाय और उलझ गया है । 

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