शनिवार, 18 जून 2016

पर्यावरण परिक्रमा
२०५० तक भारत मेंहो सकता है जलसंकट
भारत में जिस तेजी के साथ जलस्तर कम हो रहा है उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि भारत में २०५० तक पीने का पानी भी बाहर के देशों से आयात करना पड़ेगा । केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि साल २०५० तक आज के मुकाबले जमीन के भीतर सिर्फ २२ फीसदी पानी रह जाएगा । पानी की उपलब्धता को लेकर किए सर्वेकी रिपोर्ट के मुताबिक २०५० तक प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता ३१२० लीटर हो जाएगी जिससे भारी जलसंकट खड़ा हो जाएगा । २००१ के डाटा के मुताबिक जमीन के भीतर प्रति व्यक्ति ५१२० लीटर पानी बचा है जो कि साल १९५१ में १४१८० लीटर हुआ करता था । यानी की २००१ में १९५१ के मुकाबले आधा पानी रह गया है । अनुमान लगाया जा रहा है कि साल २०२५ तक पानी की उपलब्धता २५ फीसदी ही रह जाएगी । 
विशेषज्ञों का कहना है कि पानी को बचाने के लिए जल संरक्षण करने की जरूरत है और इसके लिए बारिश के पानी को तालाबों, नहरों कुआेंमें संचित करना जरूरी है और साथ ही साथ लोगों को जल संरक्षण के लिए शिक्षित करने और उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है । 
बोर्ड ने भूमिगत जल को रिचार्ज करने की एक कृत्रिम योजना भी बनाई है । इससे तेजी से होने वाले विकास और भूमिगत जल के स्त्रोतों का अलग-अलग चीजों में दोहन किए जाने से हालांकि सिंचाई युक्त खेती, आर्थिक विकास और शहरी भारत के जीवन स्तर मे काफी सुधार आया है । 
देश के ग्रामीण इलाकोंमें रहने वाले लोगों की ८५ फीसदी से ज्यादा घरेलु जरूरतों के लिए भूमिगत जल ही एक मात्र स्त्रोत है । शहरी इलाकों में ५० फीसदी पानी की जरूरत भूमिगत जल से पूरी होती    है । देश में होने वाली कुल कृषि भूमि में ५० फीसदी सिंचाई का माध्यम भी भूमिगत जल ही है । 

गुलामी के शिंकजे में १.८३ करोड़ भारतीय 
दुनिया भर में आज अनुमानित ४ करोड़ ५८ लाख पुरूष, महिला और बच्च्े आधुनिक दासता में फंसे है जो पहले के अनुमान से २८ प्रतिशत अधिक है । उन्हें मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी, कर्ज देकर दास बनाने, जबरन या दासोचित विवाह या वाणिज्यिक यौन शौषण के जरिए दास बनाए गए है । २०१६ के वैश्विक दासता सूचकांक से यह चौंकाने वाली बात सामने आई है । 
इस बारे में प्रमुख शोध रिपोर्ट पिछलें दिनों वॉक फ्री फाउडेशन ने प्रकाशित की है । कुल संख्या के लिहाज से देखे तो, भारत में सबसे अधिक १ करोड़ ८३ लाख ५० हजार लोग दासता के चंगुल मेंफंसे है । इसके बाद ३३ लाख ९० हजार के साथ चीन का स्थान है । २१ लाख ३० हजार के साथ पाकिस्तान तीसरे, १५ लाख ३० हजार के साथ बांग्लादेश चौथे और १२ लाख ३० हजार दासों के साथ उज्बेकिस्तान पांचवे स्थान पर है । 
इन पांच देशों में, कुल मिलाकर दुनिया के करीब ५८ प्रतिशत यानी २ करोड़ ६६ लाख दास है । यह दासता और दास्ता के चुंगल में फंसे शब्दों के रूप में उपयोग किए गए हैं, तथा इन्हें पारंपरिक दासता के रूप में नहीं समझना चाहिए जिसमें लोगों को कानूनी संपत्ति के रूप में बंधुआ रखा जाता था, जो दुनिया भर में हर देश में खत्म हो चुकी है । 
मौजूदा संघर्ष और सरकारी कामकाज में अत्यधिक व्यवधान के कारण अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सोलिया, सीरिया और यमन के लिए रेटिंग । वैश्विक दासता सूचकांक २०१६ के अनुसार २०१४ की तुलना में २८ प्रतिशत अधिक लोग दासता के चंगुल में फंसे है । अधिक डाटा संग्रह और शोध की नई विधि के कारण यह महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है । 
वर्ष २०१६ के वैश्विक दासता सूचकांक के लिए सर्वेक्षण शोध में २५ देशों में ५३ भाषाआें में ४२,००० अधिक साक्षात्कार लिए गए जिनमें भारत में १५ राज्य-स्तरीय सर्वेक्षण शामिल है । यह ४४ प्रतिशत वैश्विक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं । वैश्विक दासता सूचकांक में आधुनिक दासता से निपटने के लिए सरकारी कार्यवाही और प्रयासों पर नजर डाली गई है । आंकलन में शामिल १६१ देशों में से १२४ देशों में संयुक्त राष्ट्र के मानव तस्करी प्रोटोकॉल के अनुरूप मानव तस्करी को अपराधों में शामिल किया है तथा ९६ देशों ने सरकारी प्रयासों में समन्वय के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना विकसित की   है । कुल मिलाकर देखे तो भारत में दासों की संख्या सबसे अधिक है लेकिन इस समस्या से निपटने के उपाय शुरू करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है । इसे मानव तस्करी, बाल देह व्यापार और जबरन विवाह को अपराधों में शामिल किया है । 
हर किसान परिवार पर ५० हजार का कर्ज 
भारत को हमेशा से ही कृषि प्रधान देश माना गया है, मगर अब आलम यह है कि हमारी यह प्रधानता ही कमी बनती जा रही है । भारत में कृषि उत्पादकता और कृषकोंकी स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है । देश के हर किसान पर औसतन करीब ५० हजार रूपये का कर्ज है । कृषि अभी भी भारतीयों की आजीविका का आधार है । 
साल २०११ की जनगणना के मुताबिक लगभग ५६ फीसदी कामकाजी लोग देश मेंअभी भी खेती किसानी में लगे हैं । दुर्भाग्य की बात यह है कि कृषि उत्पादकता कम है, सिंचाई की सुविधाएं खराब है और भंडारण व बिक्री का ढांचा बिखरा   है । 
सिंचाई व्यवस्था को बेहतर करने के लिए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरूआत की है, जिसका लक्ष्य नए जल संसाधनों का निर्माण, जलाशयों का नवीनीकरण, भूजल विकास आदि है । हालांकि, साल २०१५-१६ के लिए पूंजी उपयोग का हाल निराशाजनक रहा । 
स्पेश सूट रोकेगा ब्लीडिंग, बचेगी मां की जान
नासा की खोज से प्रेरित होकर वैज्ञानिकों ने अनूठा सूट बनाया है ।इसे मिरेकल सूट कहा जा रहा    है । यह अंतरिक्ष में पहने जाने वाले स्पेस सूट की तरह है । इसको पहनने से महिला को प्रसव के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग नहीं होती है । मां की जान जाने का खतरा भी कम हो जाता है। सूट का कई दशों में ट्रायल कामयाब रहा है । पांच हजार रूपए के इस सूट  को एक बार पहनने पर महज ७० रूपये चुकानें होगे । एक स्पेस सूट को ७० बार इस्तेमाल किया जा सकता है । 
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूओ) ने भी इसे महिलाआें को पहनाने की सलाह दी है । दुनिया में हर साल करीब साढ़े तीन लाख महिलाआें को बच्च्े के जन्में के दौरान जान गंवानी पड़ती है । भारत में एक लाख से करीब १७४ महिलाआें की मौत होती है । नासा के एम्स रिसर्च सेन्टर ने स्पेस सूट के जरिए महिला के शरीर के निचले हिस्से पर दबाव बनाने का सुझाव दिया था । यह हवा भरे ब्लैडर की मदद से पैरों में रक्त के जमाव को रोकता है । एम्स के हाल ही में किए शोध के मुताबिक कम दबाव डालकर भी खून को दिल और मस्तिष्क तक भेजा जा सकेगा। इससे प्रसव में ब्लीडिंग को रोका जा सकता है । अंतरिक्ष यात्रियों के लिए नासा ऐसे ही स्पेस सूट का इस्तेमाल करता है । नासा के मुताबिक इस सूट से पाकिस्तान मेंअत्यधिक ब्लीडिंग से पीड़ित १४ महिलाआें में से १३ को बचाया जा चुका है । दरअसल, इसका आइडिया नासा को १९५९ में आया था, जब एक महिला ने एम्स रिसर्च सेंटर में फोन करके सहायता मांगी थी । महिला को लगातार काफी ब्लीडिंग हो रही थी । नौ बार सर्जरी के बाद भी ब्लीडिंग रूक नही रही  थी ।  इसके बाद एम्स के डॉक्टरों ने उसे स्पेस सूट पहनाया था । इससे ब्लीडिंग रोकने में मदद मिली थी । 
सन् १९९० में सबसे पहले कैलिफोर्निया की जोएक्स कार्पोरेशन ने महिलाआें के लिए स्पेस सूट बनाया । एम्स की रिसर्च में शामिल व सेफ मदरहुड की संस्थापक स्वेलन मिलर कई देशों में मातृ-मृत्युदर को कम करने के लिए अभियान चला रही है । उनकी कंपनी ही इस सूट को तैयार कर रही है । वे कहती है - स्पेस सूट के परिणाम काफी सकारात्मक रहे   है । इसे बनाने का उद्देश्य मां और नवजात बच्च्े की मौत को रोकना है । करीब २० देशोंमें इसका प्रयोग किया जा रहा है । 
दुनियाभर में घटा जी.एम. फसलों का क्षेत्र
केवलदेश में ही फसलों पर मार नहीं पड़ रही है, एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में जैनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसल का क्षेत्र घट गया है । ऐसा पहली बार हुआ  है । एक गैर सरकारी संगठन ने रिपोर्ट जारी कर जानकारी दी है कि २०१५ में बॉयोटेक बीजों की बुआई कम की गई । इसका मुख्य कारण रहा उपयोगी वस्तुआें की दरों में भारी कमी । जीएम फसलों के लिए २०१५ में केवल १७९.७ मिलियन हेक्टेयर में खेती की गई, जो कि २०१४ की तुलना में एक प्रतिशत कम था । २०१४ में १८१.५ मि.हे. में जी.एम. फसलों की खेती की गई थी । 

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