शनिवार, 18 जून 2016

प्रसंगवश
बन गई कृत्रिम आंख
नरेन्द्र देवागंन 
कई लोग प्राय: रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा नाम आनुवंशिक रोग से अथवा वृद्धावस्थ में होने वाले मांसपेशीय विकार से अंधे हो जाते हैं । दरअसल जब प्रकाश पुतली में प्रवेश करता है तब आंख का लेंस इसे फोकस करता है । इसके बाद यह मध्य भाग में स्थित विट्रियस ह्यूमर नामक जेली से होता हुआ रेटिना तक पहुंचता है । 
ऐसा माना जाता है कि मस्तिष्क तक विद्युत आवेग पहुंचाने वाली छड़ व शंकु कोशिकाआें में खराबी होने के कारण अंधापन होता है । इस दिशा में मैसाचुसेट्स के अनुसंधानकर्ता ने सराहनीय कार्य किया है । उन्होंने एक ऐसी माइक्रोचिप बनाई है जो छड़ व शंकु कोशिकाआेंके बदले तंत्रिकाआें को स्वयं उद्दीप्त् करेगी । मार्च १९९६ में अंधे खरगोशों पर प्रयोग में जब इस माइक्रोचिप को उद्दीप्त् किया गया तो देखा गया कि गैंगलियॉन कोशिकाआें को संकेत मिलते हैं । लेकिन वैज्ञानिकों ने मनुष्य में इसके इस्तेमाल पर शंका व्यक्त की थी । 
अलबत्ता, मैसाचुसेट्स के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के फलस्वरूप, अब मनुष्योंके लिए विजन चिप उपलब्ध है । इसमें एक सौर पैनल लगा हुआ है जिसका सम्बन्ध माइक्रो इलेक्ट्रोड्स से है । रेटिना की सतह पर स्थित गैंगलियॉन कोशिकाआें को माइक्रोइलेक्ट्रोड्स के संपर्क में लाते ही ये कोशिकाएं उद्दीप्त् हो जाती है । 
उल्लेखनीय है कि माइक्रो इलेक्ट्रोड जिन कोशिकाआेंको छूते हैं, सिर्फ वे ही उद्दीप्त् होती है । उद्दीप्त् कोशिकाएं प्रकाश-तंत्रिका द्वारा सारे संकेत मस्तिष्क तक पहुंचाती है । सर्वप्रथम बनी चिप में मात्र २० माइक्रो इलेक्ट्रोड लगे हैं। इन्हें अब १०० तक आसानी से बढ़ाया जा सकता है ।
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा से पीड़ित एक अंधे रोगी की आंख में विजन चिप के सिर्फ एक इलेक्ट्रोड को डालने के पश्चात् उसके दिमाग में स्पष्ट चित्र बनता पाया गया । उसने रंग के साथ-साथ चित्र की आकृति को बारीकी से परखा । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि अधिक इलेक्ट्रोड लगाने पर और भी अच्छे परिणाम मिलेंगे । इस दिशा में शोध जारी है । इस तरह का उपचार जन्म के बाद अंधे होने वाले व्यक्तियों के लिये ही संभव है ।

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