शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

पर्यावरण समाचार
दिल्ली मेंजहरीलें धुंए का संकट
    दिल्ली में धुंध की खतरनाक स्थिति है । ऐसी समस्या देश के अधिकांश महानगरों के आसपास भी गहरा रही है । इससे निपटने के लिए समग्र समझ के साथ चौतरफा उपाय अपनाना जरूरी है ।
    इस समय हालत पिछले साल से बदतर है, जब दिल्ली उच्च् न्यायालय ने कहा था कि दिल्ली में रहना एक गैस चैंबर में रहने जैसा  है ।
    पिछले साल न्यायपालिका की फटकार के बाद केजरीवाल सरकार ऑड-ईवन का फार्मूला लेकर आई थी, लेकिन उस फौरी उपाय से दिल्ली के प्रदूषण स्तर पर खास फर्क नहीं पड़ा । केजरीवाल के मुताबिक ताजा स्मॉग का कारण पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही खूंट (फसल के अवशेष) है । बताया गया है कि वहां लाखों टन धान की खूंट जलाई जा रही है, जिसका धुंआ फैलते-फैलते इस पूरे इलाके पर छा गया है । इसी का असर है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर सामान्य से तकरीबन २० गुना ज्यादा हो गया है ।
    मुद्दा यह है कि क्या ये हालत सिर्फ खूंट जलाने से पैदा हुंई ? खूंट जलाने की रवायत पुरानी है । दिवाली की आतिशबाजी भी नई नहीं है । इसीलिए फिलहाल बनी हालत का सारा दोष इन्हीं फौरी वजहों पर नहीं डाला जा सकता । दरअसल, सारा दोष पंजाब और हरियाणा के माथे मढ़ देना दिल्ली सरकार के लिए एक आसान बहाना हो सकता है ।
    यह हकीकत है कि राजधानी मेंवाहनों की बढ़ती संख्या, कन्सट्रक्शन स्थलों पर सीमेंट, रेत जैसी सामग्रीयों को बेरोक खुले में रखने और कचरे को बिना उचित उपाय किए जलाने के जारी चलन ने विशाल और घनी आबादी वाले इस महानगर एवं इसके आसपास के पर्यावरण को बिगाड़ा है । जब वातावरण में लगातार ग्रीन हाउस गैसों की परत जम रही हो, तब दिवाली या खूंट जलने से आये धुंए से ऐसी गंभीर स्थिति का पैदा हो जाना लाजिमी है । इसलिए आवश्यकता समग्र समझ और चौतरफा उपायों की है । इस बारे में राष्ट्रीय नीति बनाने की जिम्मेदारी सभी की है । इसमें टालमटोल की गुंजाइश नहीं है

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