शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

विज्ञान हमारे आसपास
कैसे निर्मित होता है धु्रवीय प्रकाश ?
डॉ. विजयकुमार उपाध्याय

    पृथ्वी के धु्रवीय क्षेत्रों में भूसतह से कुछ ऊंचाई पर स्थित वायुमण्डल में कभी-कभी आकर्षक रंगीन प्रकाश की छटा दिखाई देती है जिसे धु्रवीय प्रकाश अथवा मेरू ज्योति कहा जाता है । अंग्रेजी में इसे औरोरा कहते हैं । औरोर मूलत: लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है प्रभात । उत्तरी गोलार्द्ध में इसे औरोरा बोरियालिस तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में औररोरा ऑस्ट्रेलिस कहा जाता है ।
    धु्रवीय प्रकाश प्राय: हरे-पीले पर्दे की आकृतिमें दिखाई पड़ने वाली प्रकाश की एक पट्टी है । कभी-कभी यह प्रकाश गहरे लाल रंग के दहकते अंगारे के रूप मेंभी दिखाई पड़ता   है । यह प्रकाश उस प्रकाश से मिलता जुलता है जो विघुत डिस्चार्ज के कारण उत्पन्न होता है । 
     कभी-कभी तीव्र धु्रवीय प्रकाश के साथ-साथ वायुमण्डल में सनसनाहट तथा गड़गड़ाहट सुनाई पड़ती है । यह दृश्य प्राय: सूर्य की सतह पर सौर ज्वाला के उद्गार के ठीक एक दिन बाद दिखाई पड़ता है । सौर ज्वालाएं उस समय अधिक पैदा होती हैं जब सौर धब्बों की संख्या बढ़ जाती है । सौर धब्बों की अधिकतम संख्या प्रत्येक ११ वर्षो के अंतराल पर देखी जाती  है ।
    काफी प्राचीन काल से ही लोग धु्रवीय प्रकाश का अवलोकन करते तथा उसके संबंध मेंअटकलें लगाते हुए हैं । आदि मानव ने धु्रवीय प्रकाश के संबंध में अनेक कल्पनाएं की तथा कई कहानियां गढ़ी । कुछ लोगों की धारणा थी कि धु्रवीय प्रकाश स्वर्ग में खेला जाने वाला गेंद का खेल है । इस खेल में एक टीम अच्छी आत्माआें की तथा दूसरी टीम बुरी आत्मआें की रहती है । प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व अपने ग्रंथ मीटियोरोलॉजिका में बताया था कि कभी-कभी रात में जब आकाश साफ रहता है तो अंतरिक्ष में अनेक प्रकार के रंगीन प्रकाश दिखाई पड़ते हैं । इन रंगों के बारे में अरस्तू ने बताया था कि सूर्य की गर्मी के कारण शुष्क वाष्प भूसतह के ऊपर उठती है । भूसतह से काफी ऊपर उठने पर यह वाष्प सूर्य की गर्मी से प्रज्वलित हो उठती है । इसके कारण विभिन्न रंगों के प्रकाश पैदा होते हैं । वस्तुत: रंगीन प्रकाश से संबंधित जिस दृश्य की चर्चा अरस्तू ने की थी वह उत्तरी धु्रवीय प्रकाश की थी ।
    इसी प्रकार चीन में लगभग २६०० वर्ष ईसा पूर्व लिखे गए एक ग्रंथ में ध्रुवीय प्रकाश की चर्चा मिलती है । धु्रवीय प्रकाश की उत्पत्ति के संबंध मेंवैज्ञानिक व्याख्या दिए जाने के प्रयास काफी लम्बे अरसे से होते आए हैं । शुरू-शुरू में लोगों की धारणा थी कि धु्रवीय क्षेत्र में दिखाई पड़ने वाला रंग-बिरंगा प्रकाश उस क्षेत्र में मौजूद बर्फ तथा तुषार की सतह से परावर्तित होने वाला प्रकाश है । कुछ अन्य लोगों की धारणा थी कि धु्रवीय प्रकाश इन्द्रधनुष से मिलता-जुलता प्राकृतिक दृश्य है ।
    सन १६१६ में गैलीलियों ने उत्तरी धु्रवीय प्रकाश के लिए एक नया शब्द औरोरा बोरियालिस प्रयोग किया था जिसका अर्थ है उत्तरी प्रभात । १८वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगा लिया था कि धु्रवीय प्रकाश पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से संबंधित है । सन १७४१ में स्वीडन के एेंडर्स सेल्सियस तथा ओलोप हियोर्टर नामक दो वैज्ञानिकों ने धु्रवीय प्रकाश की घटना के दौरान चुम्बकीय सुई के बर्ताव के संबंध में कई अध्ययन किए थे तथा कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए थे ।
    हाल में किए गए वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि धु्रवीय प्रकाश की उत्पत्ति पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में उपस्थित उन परमाणुआें के दहकने से होती है जिन पर पृथ्वी के बाहर से आने वाले इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन कण टकराते हैं । बाहर से आने वाले इन इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन कणों को धु्रवीय प्रकाशीय कण कहा जाता है । वैज्ञानिकों का विचार है कि धु्रवीय प्रकाशीय कण सूर्य की सतह पर समय-समय पर उत्पन्न सौर ज्वाला से निकलते हैं तथा तीव्र गति से चल कर पृथ्वी तक पहुंच जाते हैं ।
    अब प्रश्न उठता है कि सूर्य से आने वाले कण तो पृथ्वी के सभी क्षेत्रों में पहुंचते है तो फिर उपरोक्त प्रकाश सिर्फ धु्रवीय क्षेत्र में ही क्यों दिखाई पड़ता है ? शोधों के आधार पर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि धु्रवीय प्रकाश के निर्माण में योगदान देने वाला एक प्रमुख घटक है पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र । सूर्य से आने वाले इलेक्ट्रान तथा प्रोटॉन कण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से आकर्षित होकर पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों की ओर मौजूद वायुमण्डल में पहुंच जाते हैं तथा धु्रवीय प्रकाश पैदा करते हैं ।
    सूर्य से चल कर पृथ्वी तक जो इलेक्ट्रॉन कण आते हैं वे काफी ऊर्जापूर्ण होते हैं । अध्ययनों से पता चला है कि इन इलेक्ट्रॉन कणों की ऊर्जा एक हजार से दस हजार इलेक्ट्रॉन वोल्ट के बीच रहती है । जब ये इलेक्ट्रॉन धु्रवों के ऊपर स्थित वायुमण्डल के तत्वों पर चोट करते हैं तो उन तत्वों का आयनीकरण ही जाता है ।
    इस आयनीकरण क्रिया में कुछ कम ऊर्जायुक्त इलेक्ट्रॉन भी उत्पन्न होते हैं जिन्हें द्वितीयक (सेंकडरी) इलेक्ट्रॉन कहा जाता है । ये कम ऊर्जायुक्त इलेक्ट्रॉन फिर अन्य अणुआें को आयनीकृत करते है । धु्रवीय प्रकाश का प्रमुख रंग हरा पीला इन्हीं कम ऊर्जायुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा ऑक्सीजन परमाणुआें के उत्तेजन के कारण उत्पन्न होता है ।    
    कभी-कभी किरणयुक्त ध्रुवीय प्रकाश टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाता है तथा पूरे आकाश में फैला हुआ दिखाई देता है । ये छोटे टुकड़े बादल के समान दिखाई पड़ते है । इन टुकड़ों को धु्रवीय प्रकाशीय चकत्ते कहा जाता है । ऐसा दृश्य  प्राय: आधी रात के बाद दिखाई देता है । कभी-कभी एक और विशिष्ट प्रकार का धु्रवीय प्रकाश दिखाई देता है ।
    धुव्रीय प्रकाश की एक सामान्य आकृति पर्दानुमा होती है जिसका रंग प्राय: हल्का हरा या हरा-पीला होता है । इस पर्देका निचला किनारा भूसतह से लगभग एक सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होता है । इस पर्दे का  ऊपरी सिरा अस्पष्ट रहता है जो भूसतह से लगभग एक हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होता है । जब इस पर्देको कुछ दूर से देखा जाता है तो यह क्षितिज से ऊपर उठे एक मेहराब (आर्च) के रूप में दिखाई देता है । यह पर्दा जब गतिहीन तथा बिल्कुल शांत दिखाई देता है तो इसकी चमक सब जगह एक समान दिखाई देती है तथा इसे सर्वत्र-सम कहा जाता है ।
    धुव्रीय क्षेत्रोंमें धु्रवीय प्रकाश लगभग रोज ही दिखाई पड़ता है । जैसे-जैसे हम धु्रवों से विषुवत रेखा की ओर बढ़ते है, वैसे-वैसे धु्रवीय प्रकाश दिखाई पड़ने की बारम्बारता क्रमश: घटती जाती है । हालांकि धु्रव क्षेत्रों में रात्रि के दौरान धु्रवीय प्रकाश प्राय: जगमगाता दिखाई देता है, परन्तु इतना तीव्र बहुत कम अवसरों पर रहता है कि इसे सुदूर अक्षांशीय क्षेत्रों से भी देखा जा सके ।
    धु्रवीय प्रकाश प्राय: पृथ्वी पर स्थित दो चुम्बकीय ध्रुव या भौगोलिक धु्रवों के निकटवर्ती क्षेत्रों में ही दिखाई देता है। पृथ्वी के चुम्बकीय धु्रव भौगोलिक धु्रवों से थोड़ा अलग स्थित है । उत्तरी चुम्बकीय धु्रव ७३.५ डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा १०० डिग्री पश्चिमी देशांतर पर पश्चिमोत्तर ग्रीनलैंड में एक स्थान पर स्थित है । दक्षिणी चुम्बकीय धु्रव ७१.५ डिग्री दक्षिणी अक्षांश तथा १५१ डिग्री पूर्वी देशांतर पर एंटार्कटिका में वोस्तोक के निकट स्थित है ।
    ध्रुवीय प्रकाश चुम्बकीय धु्रवों के चारों ओर लगभग २३ डिग्री के दायरे में दिखाई पड़ता है । उदाहरणार्थ उत्तरी धुव्रीय प्रकाश जिन क्षेत्रों में दिखाई देता है उनमें शामिल हैं स्कैंडिनेविया का उत्तरी छोर, आइसलैंड का दक्षिणी छोर, हड़सन की खाड़ी का दक्षिणी भाग, उत्तरी लेब्राडोर, मध्य अलास्का तथा साइबेरिया के समुद्री किनारे । उत्तरी धु्रवीय प्रकाश के दृष्टिगोचर होने वाले क्षेत्रों की दक्षिणी सीमा रेखा सैन फ्रांसिस्को, मेक्फिस तथा एटलांटा से होकर गुजरती है । 
    यह सीमा रेखा सौर ज्वालाआें में वृद्धि के दौरान कुछ और दक्षिण की ओर खिसक जाती है । कभी-कभी तो यह सीमा रेखा खिसक कर मेक्सिको सिटी तथा क्यूबा जैसे सुदूर दक्षिण में स्थित स्थानों तक पहुंच सकती है ।

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