शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

हमारा भूमण्डल
अमेरिकी किसानों ने नकारी जी.एम. फसलें
भारत डोगरा

    अमेरिका में जी. एम फसलों के आगमन के दो दशक पश्चात यह तथ्य सामने आया है कि वहां के  किसान इन फसलों से तंग आ गए  हैं । वहीं दूसरी ओर भारत में इसे लेकर सकारात्मक माहौल बनाया जा रहा है ।
    हाल के वर्षों में जीएम (जेनेटिकली मोडीफाईड या आनुवांशिक रूप से संवर्धित) फसलों के प्रतिकूल असर या विरोध के बारे में विश्व के अनेक देशों से समाचार मिलते रहे हैं । पर जी.एम फसलों के समर्थक यह कह रहे हैं कि आप संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों को देखिए, वहां तो जीएम फसलों का बहुत प्रसार हो रहा है ।
     अब तो अमेरिका से भी ऐसे समाचार मिलने लगे हैं जिससे पता चलता है कि वहां के किसानों का भी जीएम फसलों से मोहभंग होने लगा है । इस संदर्भ में वाल स्ट्रीट जर्नल में १४ सितंबर २०१६ को प्रकाशित लेख है -'बीहाइंर्ड द जीएमओ डील -डाऊट्स अबाऊट द जीएम रिवाल्यूशन` (जी. एम सौदे के    पीछे : जी. एम क्रांति को लेकर संशय) बहुत महत्वपूर्ण है । इस लेख में वर्ष १९९६ में आरंभ हुई जीएम फसलों के अमेरिका में दो दशकों के  अनुभव का मूल्यांकन किया गया   है । लेखक जेम्स वुंजे ने जीएम फसलों के समर्थकों और आलोचकों दोनों का पक्ष इस लेख में दिया है । उनका निष्कर्ष यह है कि बढ़ती संख्या में अमेरिकी किसान सोयाबीन, मक्का, कपास आदि की जीएम फसलों से विमुख हो रहे हैं ।
    इस चर्चित मूल्यांकन में बताया गया है कि जीएम फसलों के आगमन के लगभग एक दशक के  बाद यानि वर्ष २००६ के आसपास जीएम फसलों में खरपतवार की मात्रा बहुत बढ़ गई और इस खरपतवार को दवाओं के छिड़काव से रोकना भी कठिन जो हो गया । इसके अतिरिक्त जीएम बीज जो कुछ ही कंपनियां बेच रही थीं की कीमतें बहुत तेजी से बढ़ रहीं थीं, जबकि फसल की उत्पादकता में विशेष वृद्धि नहीं हो पा रही थी । इन कारणों से अमेरिकी किसानों ने जीएम बीजों को त्यागना आरंभ कर दिया है ।
    जहां एक ओर अमेरिकी किसानों का जीएम फसलों से मोहभंग हो रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका व विश्व की सबसे बड़ी जीएम बीज कंपनी मॉन्सेंटो को जर्मनी की विशालकाय रसायन कंपनी बेयर ने हाल ही में ५ अरब डालर के सौदे में खरीद लिया है । विचारणीय है कहीं इन दोनों समाचारों में कोई नजदीकी संबंध तो नहीं है ?
    जरूरी बात है यह कि जब किसानों के बीच आधार कमजोर होगा, तो कोई भी कृषि व्यापार कंपनी अपनी इस कमजोर होती स्थिति में कोई न कोई विकल्प खोजने का प्रयास करेगी। अत: मॉन्सेंटो ने अपने कमजोर होते आधार के बीच बेयर द्वारा बिक्री का सौदा मंजूर कर लिया । जबकि कुछ समय पहले तक वह स्वयं ही एक अन्य बड़ी बीज कंपनी एजंेटा को खरीदने की इच्छुक थी ।
    दूसरी ध्यान देने की बात यह है कि बेयर एक बहुत बड़ी रसायन कंपनी है व मॉन्सेंटो एक बहुत बड़ी बीज कंपनी । इससे पता चलता है कि किस तरह बीज और कृषि रसायन क्षेत्र एक दूसरे के अधिक नजदीक आते जा रहे हैं । इसी तरह चाईना नेशनल केमिकल कारपोरेशन नामक चीन की विख्यात रसायन कंपनी ने बीज की एक अन्य बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी सिजंेटा एजी को ४३ अरब डालर के सौदे में खरीद लिया है । इस तरह के बड़े विलयों से बीज व कृषि रसायनों की एकीकृत विशाल कंपनियां सामने आएंगी जो अपने अपार संसाधनों के आधार पर विश्व में कृषि व खाद्य क्षेत्र पर नियंत्रण हटाने का प्रयास करेंगी ।
    इनमें जीएम बीजों वाली फसलों को प्रमुखता देने वाली कंपनियां शामिल हैं । जीएम तकनीक अपनाने से उन्हें कृषि व खाद्य क्षेत्र में नियंत्रण बढ़ाने में सफलता मिलती है। अत: जीएम खाद्य फसलों को स्वीकृति दिलवाने के प्रयास और तेज होंगे ।
    इस स्थिति में अब यह और जरूरी हो गया है कि खेती-किसानी की रक्षा के लिए, किसानों की हकदारी के लिए और पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयासों को और मजबूत किया जाए । ताकि वैश्विक कृषि व खाद्य क्षेत्र को विशालकाय कंपनियों के वर्चस्व से बचाया जा सके  ।

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