मंगलवार, 16 मई 2017

वातावरण
बढ़ते ताप के संकट से उबरने के रास्ते
कुमार सिद्धार्थ
    देश के अनेक इलाकों में तापमान ४८ डिग्री सेल्सियस पार करने की खबरें आ रही है । दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में `पारे का प्रताप` दिनांे दिन बढ़ता ही जा रहा   है ।
    बढ़ते तापमान के `प्रचंड` को लेकर चिंताएं होना स्वाभाविक-सी बात है । कयास लगाए जा रहे है कि इस वर्ष गर्मी पिछले सालों की तुलना में कहीं अधिक होने की संभावना    है । यूं तो गर्मी का ट्रेलर मार्च के पहले-दूसरे सप्ताह में ही देखने को मिल गया था । 
    अमेरिका स्थित नासा का ताजा अध्ययन इस बात की ओर इशारा करता है कि वर्ष २०१७ का यह तीसरा जनवरी माह है, जो सबसे गरम रहा । दूसरा सबसे गरम जनवरी माह वर्ष २०१६ का था और पहली बार वर्ष २००७ का जनवरी माह । 
    इन मौसमी रिकार्ड के मुताबिक पहले वर्ष २०१५ सबसे गर्म साबित हुआ, फिर वर्ष २०१६ अगर मौसम में ऐसे ही बदलाव जारी रहे तो शायद वर्ष २०१७ अब तक का सबसे गर्म साल साबित हो जाए, और पारा पचास डिग्री सेल्सियस को छू लें। क्या समाज को अब ५० डिग्री सेल्सियस तापमान के अनुरूप अपनी जीवन शैली विकसित करनी पड़ेगी ? बढ़ते तापमान के पैटर्न को देखने से समझ में आ रहा है कि साल दर साल गरमी का `संताप` बढ़ने वाला है ।
    पीयू रिसर्च सेंटर (वॉशिंगटन स्थित यह रिसर्च सेंटर उन राजनैतिक, सामाजिक और भौगोलिक मुद्दों पर शोध तथा सर्वेक्षण करता है, जिनका अमेरिका या दुनिया से संबंध होता है और जो भविष्य में उपयोगी साबित हो सकते हैं) ने हाल ही में अपने सर्वेक्षण के निष्कर्षों को रखते हुए बताया कि धरती के बढ़ते तापमान को लेकर ६७ प्रतिशत भारतीय चिंतित हैं। चीन में यह महज ३० प्रतिशत है। प्रदूषण में अहम योगदान देने वाले तीन प्रमुख देशों अमेरिका, रूस और चीन में लोग अपेक्षाकृत कम चिंतित हैं । रूस और अमेरिका में यह प्रतिशत केवल ४४ फीसदी है ।
    निश्चित ही बढ़ता तापमान भारतीय समाज के लिए चिंताजनक है । दुर्भाग्य है कि एक तरफ गर्माती धरती के नाम पर गाल बजाए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ उसे बढ़ाने के सारे उपक्रम भी किए जा रहे हैं । भोगवादी प्रवृत्ति और चमक-दमक वाले विकास के पीछे भागते हुए इंसान ने विकास के नाम पर फ्लाईओवर, कंक्रीट के जंगल, बांध, जंगलों का सफाया करने जैसे कारनामे किये । इनके दुष्परिणामों की वजह से ऐसे गंभीर हालात में पहुंच गए हैं । भूमि, जल, हवा, ध्वनि जैसे प्रदूषणों को फैलाकर तापमान बढ़ाने में हम सब भागीदारी निभा रहे हैं । नतीजन साल-दर-साल देश के लोग बढ़ते गरम ताप से झुलसने को मजबूर हो रहे हैं । इसका ज्यादा खामियाजा देश की ८० प्रतिशत जनता भोगने को अभिशप्त है ।
    दुनिया स्तर पर होने वाली राजनीति उठा पटक को देखें तो पाएंगे कि दुनिया की १५ फीसदी जनसंख्या वाले देश दुनिया के ४० फीसदी प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करते हैं । अमेरिका में आज प्रति हजार ७६५ वाहन है, उसकी तुलना में भारत में यह १२ और बांग्लादेश में केवल दो वाहन हैं । इसी तरह अमेरिका में प्रति व्यक्ति  रोजाना बिजली की खपत १,४६० वॉट है, जबकि भारत में यह ५१ और बांग्लादेश में केवल १५ वॉट है जो आज की दुनिया का असली चित्र है ।

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