सोमवार, 19 जून 2017

पुरातत्व
पिरामिडों का रहस्य खोजने की नई तकनीक
शर्मिला पाल

मिस्त्र के पिरामिडों का रहस्य जानने की कोशिश नए सिरे से हो रही है । इस अभियान में मिस्त्र के अलावा फ्रांस, कनाड़ा और जापान के विशेषज्ञ मिल-जुलकर काम कर रहे हैं । मुख्य उद्देश्य है पिरामिडों की तकनीक और उनके अंदर का रहस्य जानना । 
प्राचीन मिस्त्रवासियों की धारणा थी कि उनका राजा किसी देता का वंशज है, अत: ये उसी रूप मे उसे पूजना चाहते थे । मृत्यु के बाद राजा दूसरी दुनिया में अन्य देवताआें से जा मिलता है । राजा का मकबरा इस धारण के अनुसार बनाया जाता था और इन्हीं मकबरों का नाम पिरामिड है । दरअसल, प्राचीन मिस्त्र में राजा अपने जीवन काल में ही एक विशाल एवं भव्य मकबरे का निर्माण करवाता था ताकि उसे मृत्यु के बाद उसमें दफनाया जा सके । यह मकबरा त्रिभुजाकार होता था । ये पिरामिड चट्टान काट कर बनाए जाते थे । 
इन पिरामिडों में केवल राजा ही नहीं बल्कि रानियों के शव भी दफनाए जाते थे । यही नहीं शव के साथ अनेक कीमती वस्तुएं भी दफन की जाती थी । चोर-लुटेरे इन कीमती वस्तुआें को चुराकर न ले जा सकें इसलिए पिरामिड की संरचना बड़े जटिल रखी जाती थी । प्राय: शव को दफनाने का कक्ष पिरामिड के केन्द्र में होता था । 
पिरामिड बनाना आसान नहीं था । मिस्त्रवासियों को इस कला में दक्ष होने में काफी समय लगा । विशाल योजना बना कर नील नदी को पार कर बड़े-बड़े पत्थर लाने पड़ते थे । पिरामिड बनाने में काफी मजदूरों की आवश्यकता होती थी । पत्थर काटने वाले कारगीर भी अपने फन में माहिर होते थे । ऐसी मान्यता है कि पिरामिड ईसा पूर्व २६९० और २५६० के बीच बनाए गए । सब से प्राचीन पिरामिड सक्कारा में स्थित जोसीर का सीढ़ीदार पिरामिड है । इसे लगभग २६५० ई.पू. में बनाया गया था । इसकी प्रारंभिक ऊंचाई ६२ मीटर थी । वैसे काहिरा में गीजा के दूसरी शताब्दी ई.पू. के पिरामिड संसार के सात आश्चर्यो में शामिल है । 
वर्तमान में मिस्त्र में अनेक पिरामिड मौजूद हैं । इनमें सबसे बडा पिरामिड राजा चिओप्स का है । राजा चिओप्स के पिरामिड के निर्माण में २३ लाख पत्थर के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ था । इसे बनाने में एक लाख मजदूरों ने लगातार काम किया था । इसे पूरा होने में करीब ३० वर्ष का समय लगा । इसके आधार के किनारे २२६ मीटर हैं तथा इसका क्षेत्रफल १३ एकड़ है । 
मिस्त्र के पिरामिडों का रहस्य जानने के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जा रहा है । इस दौरान यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि इन पिरामिडों को किस तकनीक से बनाया गया है और इनके अंदर ऐसे चैंबर तो नहीं हैं, जिन्हें अब तक खोला नहीं जा सका है । इसके लिए इन्फ्रारेड तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा । यह तकनीक किसी वस्तु से निकलने वाले इन्फ्रारेड विकिरण की मदद से उसके आकार वगैरह की पहचान करती है । फिर उसके जरिए छिपी हुई वस्तु का पता चलना आसान हो जाता है । 
३डी लेजर स्कैन तकनीक में किसी वस्तु के अंदरूनी हिस्से के आकलन में मदद मिलेगी । इससे स्कैनिंग के बाद उसकी ३डी इमेज बनाई जाएगी । कॉस्मिक डिटेक्टर तकनीक के जरिए भवनों के अंदर गए बिना भी उनके अंदर रखी वस्तुआें का पता चल जाता है और उस वस्तु को नुकसान भी नहीं पहुंचता । विचार यह है कि पिरामिड की बनावट की अंदरूनी जानकारी जुटा कर ३डी इमेज बनाई जाए । मिस्त्र के गीजा पिरामिड पर किए जा रहे एक थर्मल स्कैन प्रोजेक्ट में रहस्यमयी हॉट स्पॉट्स नजर आए   है । 
स्कैन पिरामिड नाम से चलाए जा रहे इस प्रोजेक्ट मेंपिरामिड का थर्मल स्कैन किया गया । सूर्योदय व सूर्यास्त के समय जब तापमान में बदलाव आता है तो उस समय इन स्कैनर्स के जरिए ये हॉट स्पॉट स्पष्ट नजर आए । वैज्ञानिकों का मानना है कि इन पिरामिडों में, खास तौर पर सबसे बड़े खुफू पिरामिड में, कई कब्रें व गलियारे मौजूद हैं, जिनके बारे में अभी दुनिया के लोग नहीं    जानते । मिस्त्र, जापान, कनाडा और फ्रांस के वैज्ञानिक और आर्किटेक्ट इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं । 
एक समय था जब यहां लोगों की इतनी भीड़ होती थी कि पिरामिडों की तस्वीर लेना भी दूभर होता था । २०१० में जहां यहां डेढ करोड़ तक पर्यटक आते थे, अब उनकी संख्या ८० से ८५ लाख रह गई है । आज आईएस के बढ़ते खौफ के चलते पर्यटक हजारोंसाल पुरानी इन अद्भूत कलाकृतियों को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं । आंतकी घटनाआें के चलते पर्यटक अपनी जान जाखिम में नहीं डालना चाहते । पर्यटन व्यवसाय को हुए बड़े नुकसान का खमियाजा स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है । 
मिस्त्र में कुछ समय से पिरामिडो पर चल रहे शोध में वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी है । वैज्ञानिकों और मिस्त्र सरकार के अधिकारियों का दावा है कि वैली ऑफ किंग्स में तूतनखामन की ममी के नीचे और भी कमरे हैं, जिनमें ऐसे राज हैं जिनके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है । पुरातत्ववेत्ता निकोलस रीव्स के अनुसार तूतनखामन की ममी को एक बाहरी चैंबर में रखा गया है, जिसके नीचे और कमरे या गलियारे हो सकते हैं, जिनमें सामान व ममीज भी हो सकती है । रीव्स का कहना है कि तूतनखामन की कब्र को असल में रानी नेफरतीती के लिए बनाया गया था । विशेषज्ञों के अनुसार तूतनखामन की कब्र के नीचे ही किसी अन्य कमरे में नेफरतीती की भी कब्र हो सकती है । ऐसा माना जाता है कि लगभग तीन से साढ़े तीन हजार साल पहले तूतनखामन की मौत हुई उस समय उसकी उम्र १९ साल के आसपास थी । 

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