सोमवार, 19 जून 2017

सामाजिक पर्यावरण
हमारे भोजन पर नियंत्रण के प्रयास
थेरेसा क्रिनीनगर
दुनिया भर में भोजन उद्योग में न केवल छोटे अपितु बड़े-       बड़े उद्योगपतियों की संख्या घट रही है । इनके स्थान पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियां तथा बड़े-बड़े़ निगम (मेगा कार्पोरेशन) बाजार में खाद्य पदार्थांे के उत्पादन से बिक्री तक अपना आधिपत्य जमा रहे है । बड़े-बड़े निगमों को हम राजघराने भी मान सकते हैं ।  
कारर्पोरेट एटलस-२०१७ की  रिपार्ट यह दर्शाती है कि दुनियाभर में खाद्य उद्योगों का हो रहा विकास किस प्रकार सामान्य जनता को प्रभावित कर रहा है। उभरते एवं तेजी से फैलते  बाजार ने विकासशील देशों को  खाद्य-व्यवस्था की कमजोर कड़ी  माने जाने वाले कृषक तथा खेतीहर मजदूर सबसे ज्यादा परेशान होकर राजघरानों की दया पर निर्भर होते  जा रहे हंै। जनवरी के मध्य में  हेनरीच वॉल फाउण्डेशन, रोसा लक्सेमबर्ग फाउण्डेशन तथा फ्रेण्ड्स ऑफ अर्थ जर्मनी, जर्मनवॉच, ऑक्सफैम द्वारा यह रिपोर्ट जारी की गयी है ।
आपूर्ति श्रृखंला के साथ कंपनियों का विस्तार हो रहा है । वर्ष २०१५ के आसपास खाद्य तथा कृषि उद्योग में १२ बड़े विलयन हुए । परंतु इनमें से आज केवल सात ही  वैश्विक स्तर पर बीजों तथा कीटनाशकों के उत्पादन को नियंत्रित कर रहे हैंऔर संभवत: २०१७ तक ये सात से घटकर चार ही रह   जाएंगें । जर्मनी की बेयर अमेरिका में मानसेंटो को खरीदना चाह रही है, ताकि वह दुनिया की सबसे बड़ी कृषि रसायन बेचने वाली कंपनी बन   सके । 
अमेरिका की ड्यूपांट तथा डाऊ केमिकल भी एक होने के लिए प्रयासरत है । स्वीस आधारित बहुराष्ट्रीय कम्पनी सिजेंटा को केमचाइना अधिकृत करना चाह   रही है । एटलस के अनुसार ये    तीनों कम्पनी बीजों तथा कृषि रसायनों के ६० प्रतिशत बाजार पर कब्जा करेगी और लगभग सभी आनुवांशिक रूप से संशोधित पौधों का उपयोग करेंगे ।  
इस प्रकार बाजार की ज्यादातर शक्ति कुछ कम्पनियों के हाथों में केंद्रित होगी, जिन पर उपभोक्ताओं की अधिक निर्भरता होगी । ये अपने अनुसार बीजों तथा कीटनाशकों की कीमतें निर्धारित करेगी । इस प्रकार कृषि में आनुवांशिकी अभियांत्रिकी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) के साथ-साथ डिजिटलीकरण भी बढेग़ा । कृषि आधारित उद्यम या उद्योग कम्प्यूटर प्रणाली से जुड़कर सम्पूर्ण कृषि व्यवस्था का संचालन करेंगे, जो छोटे व बड़े किसानों की पहुंच से दूर   होगी ।
गेहूँ, मक्का, सोयाबीन आदि फसलों की कटाई के बाद इनसे क्या चीजंे बनेगी, कितनी बनेगी, कैसे बनेगी, कैसे बेची जाएगी, कहाँ बेची जाएगी एवं किस कीमत पर बेची जाएगी आदि का निर्धारण चार प्रमुख कम्पनियां करेगी । इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते है कि फसल कटाई के बाद इन कम्पनियां का खेल प्रारम्भ होगा, जो कृषि की ज्यादातर वस्तुओं के आयात-निर्यात को नियंत्रित करती है । ये कम्पनियां है: आर्चर डेनियलन मिडलैंड, बंज, कारगिल तथा डे्रफूस । इनमें से पहली तीन अमेरिका से संबंधित है तथा एक नीदरलैंड से । 
कारर्पोरेट एटलस का अनुमान है कि दुनिया के कृषि के बाजार में इनके शेयर ७० प्रतिशत से ज्यादा है एवं इसीलिए ये काफी शक्तिशाली है । एटलस के मुताबिक इन चार कंपनियों ने बड़े खाद्य कंपनियों यूनीलिवर, नेस्ले, हैन्ज, मार्स, केलांग्स तथा टीचोबो आदि को सस्ता सामान या वस्तुएं उपलब्ध करायेेगी ।
सुपर मार्केट तक चीजंे पहुंचाने की श्रृंखला में इनकी प्रमुख भूमिका होती है । जर्मनी में इस प्रकार की श्रृंखला ने खाद्य पदार्थों  की बिक्री के खुदरा व्यापार पर     ८५ प्रतिशत कब्जा कर लिया है । वस्तुओं को प्रदाय करने वाली इस श्रृंखलाओं का दबाव श्रृंखला की अंतिम कड़ी वाले कृषक पर बढ़ता जा रहा है । 
जिसका प्रभाव यह हो रहा है कि उसे कम कीमत पर ज्यादा मेहनत करना पड़ रही है। सुपर मार्केट की यह श्रृंखला मध्यम आय वाले देशों में भी फैल रही है जैसे भारत, इंडोनोशिया तथा नाइजेरिया आदि । इस श्रृंखला से कृषि व्यवस्थाओं में कष्टकारी परिवर्तन होंगे उससे परम्परागत कृषि का व्यापार करने वाली दुकानें एवं बाजारों को काफी हानि होगी एवं धीरे-धीरे वे समाप्त हो जाएंगे ।
इस सारे परिवर्तनों के पीछे खाद्य उद्योग से जुड़ी सारी छोटी-बड़ी कम्पनियों यह दावा करती है कि बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने हेतु  यह सब कुछ करना जरूरी है ताकि उत्पादन बढ़े । परंतु कारर्पोरेट एटलस-२०१७ का दावा है कि कृषि भूमि से अनाज उत्पादन में कोई  वृद्धि नहीं हो रही है क्योंकि हजारों हेक्टर कृषि भूमि पर पशु-चारे की फसल या जैव ईंधन देने वाले पौधे लगाये जा रहे है। दुनिया के लगभग ८०० मिलीयन लोगों में कुपोषण का कारण भोजन की कमी नहीं अपितु उसका असमान वितरण बताया जा रहा है । 
जिन एजेंसियों में यह कारपोरेट -१७ एटलस जारी किया है वे यह चाहती है कि विभिन्न देशों (विशेषकर विकासशील) को सरकारंे अपनी जिम्मेदारी समझकर देश हित में कार्य करंे । व्यापरिक फसलों के बजाए वे फसलें पैदा की जाए जो पेट भरने के साथ-साथ पशुओं तथा कृषि भूमि के लिए भी उपयोगी हो । 
जर्मनी में अभी-अभी एंटी ट्रस्ट कानून इस प्रकार सुधारा गया है कि इन बडे  कारर्पेरेट्स या कम्पनियोें के प्रभाव से उत्पादक तथा उपभोक्ता को बचाया जा सके । इसके अलावा एजेंसियां पर्यावरण के अनुकूल कृषि के पक्ष में हैं, जो किसानों और उपभोक्ताओं के लाभ के लिए पैदावार में सुधार करने का एकमात्र तरीका मानते हैं । 

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