गुरुवार, 15 मार्च 2018

हमारा भूमण्डल
प्रदूषण के खिलाफ चीन की जंग
डॉ. ओ. पी जोशी
चीन द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए साल दर साल अपनाए गए उपायोंकी वजह से वहां की आबोहवा में सुधार हुआ जबकि भारत का प्रदूषण स्तर पिछले दशक में धीरे-धीरे बढ़कर अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है । चीन ने प्रदूषण से लड़ाई को सबसे जरुरी माना है और अपने यहां सभी विकास योजनाआें में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी है । यहां प्रदूषण के खिलाफ जंग काफी संवेदनशील मुद्दा बन चुका है ।
पांच छ: वर्ष पूर्व तक चीन में प्रदूषण की समस्या काफी गम्भीर थी, विशेषकर वायु प्रदूषण की । घनी धुंध के कारण सर्दियों में पूर्वी चीन के स्कूल कई दिनोंतब बंद किये जाते थे । कई शहरों में धुंध की अधिकता से सूर्य के दर्शन नहीं हो पाते थे जिस स्क्रीन पर लोगों को बताया जाता था । देश के ९० प्रतिशत शहरों की अबोहवा निर्धारित मानकों से ज्यादा थी एवं ७४ बड़े शहरों में से केवल०८ में वायु प्रदूषण निर्धारित स्तर से कम था ।
पूर्व स्वाथ्य मंत्री चेन झू ने २०१५ में कहा था कि यहां वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष लगभग ०५ लाख लोगों की मौत समय पूर्व हो जाती है । प्रदूषण रोकथाम की असफलता पर न्यायालय ने भी एक नागरिक लीगुई झीन की याचिका पर सरकार की काफी आलोचना की थी । अंतत: प्रदूषण की इस विकराल समस्या के समाधान हेतु सरकार ने लगभग १९ हजार करोड़ रुपये की योजनाएँ बनायी एवं उन पर अमल प्रारंभ किया ।
इन योजनाआें के तहत जो कार्य किये गये उनमें कारखानों का स्थानांतरण, बंद करना, उत्पादन कम करना, कोयले का कम उपयोग, बेकार वाहनों को सड़कों से हटाना एवं नये बिक्री पर रोक, एअर प्यूरीफायर तथा ताजी हवा के गलियारे की स्थापना आदि प्रमुख थे । चीन में औद्योगिक प्रदूषण सर्वाधिक होने से उसे नियंत्रण के ज्यादा प्रयास किये गये । सरकार ने दावा किया कि देश के प्रमुख शहरों में वर्ष २०२० तक प्रदूषण ६० प्रतिशत तक कम किया जावेगा एवं अन्य शहरों में भी स्थापित मानकों अनुसार रखनेके प्रयास किय जाएगें।
देश की राजधानी बीजिंग शहर सर्वाधिक प्रदूषित था । अत: वहाँ सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया । वर्ष २०१४ में शहर के आसपास के ३९२ कारखाने बंद किये गये जिनमें सीमेंट, कागज, कपड़ा व रसायनों के प्रमुख थे । स्टील तथा एल्युमिनियम के कारखानोंमें एक तिहाई उत्पादन कम करने के आदेश दिये गये । कारों के पार्ट्स बनाने वाली जर्मन की शेफलर कम्पनी भी सरकार की सख्ती से परेशान हो गयी । सिमप्लांट फूड प्रोसेसिंग कारखानोंपर उचित ढंग से प्रदूषण नियंत्रण नहीं करने पर लगभग चार करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया ।
बीजिंग में ही वर्ष २०१४ में बेकार पाँच लाख वाहनों को सड़क से हटाया गया एवं जनवरी २०१८ से ५५३ वाहनों के मार्ड्ल्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया । यहां प्रमुख बाजारोंमें छ: साल हवा के गलियारें (विंड-कोरिडोर) भी बनाये गये जहां आसपास से साफ हवा खिंचकर प्रवाहित की जावेगी । यहां के जोझियांग प्रांत मेंएक रसायन का कारखाना ज्यादा प्रदूषण फैलाने के कारण २००९ में ही बंद कर दिया गया था परंतु फिर भी इसके आसपास दुर्गंध फैल रही थी । फैल रही इस दुर्गंध को रोकने हेतु सारी इमारत को पोलिएस्टर फाइबर के कपड़े से ढंका गया जिस पर करोड़ों रुपया व्यय हुआ । शांक्शी प्रांत के झियान शहर में३३० फीट उंचा एअर-प्यूरीफायर लगाया गया । अर्थ साइंस संस्थान के वैज्ञनिक इसका पूरा कार्य देखकर निरीक्षण कर रहे है । टावर की क्षमता एक करोड़ घन मीटर हवा प्रतिदिन शुद्ध करने की है एवं आसपास के १० कि.मी. की हवा यह साफ कर सकता है । प्रारम्भिक परीक्षणोंमें पाया गया है कि टॉवर हवा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ स्माग को भी १५ से २० प्रतिशत तक कम करता है । टॉवर की सारी कार्य प्रणाली सौर उर्जा से नियंत्रित है । वर्ष २०१७ में चीन ने ५५ गीगावाट की सौर क्षमता विकसित की है ।
जुलाई २०१७ में २४ प्रकार के अवशिष्ट पदार्थो (वेस्ट प्रोडक्ट्स) के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया । इसका कारण यह था कि इन पदार्थोंा की रिसायकिल से जब कई वस्तुएँ बनायी जाती था तो प्रदूषण के साथ-साथ वहां के मजदूरोंके स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव होता था ।
औद्योगिक प्रदूषण की रोकथाम के साथ-साथ वन सम्पदा बढ़ाने के भी प्रयास किये गये । देश की शांत सीमाआें (जहां युद्ध की गतिविधियाँ नहीं होती है) पर कार्यरत ६० हजार सैनिक को वर्ष २०१८ में ८४ हजार वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में पौधे लगाकर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी प्रदान की गयी है । सैनिक भी इससे प्रसन्न है कि उन्हें बर्फीले क्षेत्रों से दूर जाकर एक नया कार्य करने का अवसर मिल रहा है । वर्तमान में चीन में २१ प्रतिशत वन क्षेत्र है जिसे २३ प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रयास है । गुआंगशी प्रांत के लुइझ शहर के पास वन नगर (फॉरेस्ट सिटी) बनाया जा रहा है । लगभग १७५ हेक्टर मेंबनाये जाने वाले इस नगर में ३०-३५ हजार लोग रह सकेगे । इस वन नगर में १०० प्रजाति के १० लाख पेड़ - पौधे लगाये जायेंगे जो लगभग १० हजार टन कार्बन डाय ऑक्साइड तथा ५० टन से ज्यादा धूल के कणों को कम करेंगे ।
पिछले वर्षोंा में चीन द्वारा किये गये प्रयासों के परिणाम भी अब सामने आने लगे है । वहां की सरकार ने बताया कि पिछले शीतकाल में बीजिंग में ५३ प्रतिशत वायु प्रदूषण में कमी का आकलन किया गया जिससे आसपास नीला आकाश दिखायी देने लगा । आसपास के २७ शहरों में भी वायु प्रदूषण ३५ प्रतिशत कम हुआ । चीन सरकार की इस रिपोर्ट को पर्यावरण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था ग्रीन-पीस ने भी अपना आकलन कर इसे सही बताया है । चीन द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के सारे प्रयासोंकी विशेषता यह रही कि उसने बेरोजगारी बढ़ने तथा जी.डी.पी. कम होने की चिंता छोड़कर केवल पर्यावरण सुधार पर ध्यान दिया ।
हमारे देश के भी ज्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर स्वरुप ले चुकी है अत: यहां भी चीन के समान प्रयास जरुरी है । शायद चीन से ही प्रेरणा लेकर हमारे देश में भी अभी-अभी १००० सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में प्रदूषण के विरुद्ध महा अभियान प्रारंभ करने की घोषणा की गयी है । इसके तहत आगामी ०३ एवं ०५ वर्षोंा में क्रमश: प्रदूषण ३५ एवं ५० प्रतिशत कम करने के प्रयास किये जायेंगे । 
ये प्रयास तीन स्तरों पर होगें । प्रथम प्रदूषण के खिलाफ कार्य रहे संगठनों में समन्वय बनाना । द्वितीय बच्चें एवं युवाआें में जागरुकता लाना एवं तृतीय-केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा बनाये दलों द्वारा प्रदूषण पर कानूनी निगरानी रखना । वैसे अभी १६ फरवरी को दिल्ली के विज्ञान-भवन में एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि देश पर्यावरण बचाने हेतु प्रतिबद्ध है एवं इसके लिए सरकार सारे जरुरी कदम उठायेगी ।             ***

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