सोमवार, 17 सितंबर 2018

जन जीवन
घर का कचरा बगीचे में क्यों नहीं ?
डॉ. किशोर पंवार
सुरसा की तरह विकराल होती शहरी कचरे की समस्या का कोई हल ढूंढने की आवश्यकता है । 
इस मानव जनित उपभो-क्तावादी संकट से पार पाने के लिये नागरिकों को समन्वित प्रयास करना होंगे । कई छोटे-छोटे उपाय अपनाना होगें । इनमें कचरे के संग्रीगेशन से लेकर अपने घरों में कम्पोस्ट खाद बनाने के तरीके अपनाने होगें । 
आजकल चारों ओर साफ- सफाई का बोलबाला है । देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है । शहर और गांव सभी साफ हो रहे हैं । स्वच्छता अभियान में नगरीय प्रशासन और नागरिकों की महती भूमिका है । स्वच्छता सर्वेक्षण में इन्दौर शहर पूरे देश में सर्वप्रथम आया  है । इसे साफ-सुथरा रखने में नगर निगम के प्रशासनिक अधिकारियों, सफाई-कर्मियों, कुछ  स्वयंसेवी संस्थाआें और नागरिकों ने महत्वपूर्ण कार्य किये है । सभी के मिले जुले प्रयासों का नतीजा है स्वच्छ इन्दौर । पर अभी इन्दौर स्वस्थ नहीं है । इसे आगे भी नम्बर वन रखना एक चुनौती है । 
इसका नंबर वन होना भी इस बात का उदाहरण है कि यदि ईमानदारी से जन प्रतिनिधि, जन सेवक और आमजन कुछ करने का  ठान ले तो कुछ भी मुश्किल नहीं है । स्वच्छ इन्दौर का मतलब है मन्युनसिपल सालिड वेस्ट को शहर से उठाकर उसका उचित निपटान करना । यह सच है कि अब शहर की सड़कें साफ हैं । उनके किनारे कचरों के ढेर नहीं है । सड़कों पर धूल का गुबार भी गायब है । पर इसका मतलब यह नहीं है कि शहर में कचरा पैदा होना बंद हो गया है । कचरा तो उतना ही पैदा हो रहा है, जितना पहले होता था । पर अब उठता भी उतना है जितना पैदा होता है - लगभग ११००० मिट्रिक टन । 
पर यह कचरा जाता कहां है आपने कभी सोचा है ? ये सारा कचरा शहर से दूर ट्रेचिंग ग्राउंड पर सैकड़ों ट्रकों से ले जाया जाता है । इन्दौर शहर का कचरा देवगुराड़िया नामक पवित्र स्थान पर बने ट्रेचिंग ग्राउंड पर डाला जा रहा है । शहर के कचरे को पास के गांवों में बने कचरा भरण/संग्रहण स्थल पर डाला जा रहा है । 
परन्तु  क्या यह व्यवस्था ठीक है ? इस केन्द्रीकृत कचरा संग्रहण व्यवस्था की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है । लैडफिल पर बदबू, धुंआ और ढेर सारी हानिकारक गैसें निकलती  है । इससे आस-पास रहने वालों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है । लैंडफिल के आसपास रहने वाले लोग अक्सर इसे यहां से हटाने के लिए आंदोलन करते रहते है । 
इन लैंडफिल से ४५ से ६० प्रतिशत मीथेन गैस निकलती है । यह एक हानिकारक ज्वलनशील गैस है । हालांकि इसका संग्रहण कर इसे ईधन के रूप में प्रयोग लाया जा सकता है । अपने देश में तो नहीं पर विदेशों में कई जगह ऐसा हो रहा है । इससे बिजली बनाने और घरों को गर्म रखने में भी इसका उपयोग होता है । 
दूसरी गैस कार्बन डाई आक्साइड भी ४०-६० प्रतिशत निकलती है । इसके अलावा २-५ प्रतिशत नाइट्रोजन भी निकलती है । यदा कदा इन लैंडफिलों में लगने वाली आग से इन गैसों की मात्रा और बढ़ जाती है । इनके अतिरिक्त इन लैंडफिल स्थानांें से बेन्जीन, डायक्लोरो-इथेन, कार्बनिक सल्फाईड, विनाइल, क्लोराइड और नाइलीन जैसे कई हानिकारक कार्बनिक पदार्थ निकलते रहते है । 
मुम्बई जैसे शहर के ठोस कचरे को ठिकाने लगाने वाले भरण स्थल ३०-४० कि.मी. दूर है, इनकी परिवहन कीमत १६ लाख रूपये प्रतिदिन है । कचरा भरण स्थलों के व्यवस्था, किराये व अन्य  खर्च जोड़कर यह कीमत १२६ करोड़ रूपये प्रति वर्ष आती है । 
इस म्यूनिसिपल वेस्ट को जलाना भी कोई उचित उपाय नहीं है । इस शहरी कचरे में ४०-६० प्रतिशत तक ज्वलनशील पदार्थ होते हैं । इन्हें जलाने के लिए लगाये गये बड़े-बड़े संयंत्र इन्सीनरेटर्स कहलाते है । ये महंगे भी है और  इनसे निकलने वाली हानिकारक गैसों के खिलाफ स्थानीय लोग भी आवाज उठाते है । नई दिल्ली स्थित इन्सीनरेटर्स के साथ ऐसा ही हो रहा है । पीसीबी के अनुसार इससे खतरनाक डायक्सीन गैस निकलती है । शहरी ठोस कचरे के निस्तारण की केन्द्रीकृत व्यवस्था के कारण हालात यह हो गये है कि देश के महानगरों के सभी लैंडफिल अपनी क्षमता खो चुके हैं । दिल्ली की लैंडफिल स्थल उबर रहा है । हाईकोर्ट ने नये लैंडफिल स्थल खोजन के लिये निर्देश दिये हैं । गाजीपुर कचरा भरण स्थल के कचरे के पहाड़ के भरभराकर गिरने से हाल ही में कुछ मौतें भी हो चुकी है । 
सुरसा की तरह विकारल होती इस समस्या का कोई हल भी है क्या ? हल तो है पर कोई एक नहीं । इस मानवजनित उपभोक्तवादी संकट से पारपाने के लिये समन्वित प्रयास करना होंगे । कई छोटे-छोटे उपाय अपनाना होगे । सबसे पहला उपाय है कचरे के स्त्रोत पर ही सेग्रीगेशन (पृथक्करण) करने की । इसकी शुरूआत हो चुकी है । इन्दौर शहर इसका गवाह है। नागरिक अब सूखा कचरा अलग और गीला कचरा अलग रखते हैं । कचरे की छंटाई एक बड़ा मुद्दा है । यह एक तरह का विकेन्द्रीकरण है । केन्द्रीय प्रदूषण निवाकरण मण्डल नईदिल्ली और नीरी नागपुर की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में मरूुसिनल वेस्ट कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में ०.२ किलो प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है और अधिक जनसंख्या घनत्व वाले शहरी क्षेत्रों में ०.६ किलो प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है । नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि शहरी क्षेत्रों में म्यूनिसीपल वेस्ट लगभग २ लाख टन प्रतिदिन है । 
खुशी की बात यह है कि हम म्यूनिसीपल वेस्ट का लगभग ५०-६० प्रतिशत हिस्सा जैव अपघटनशील है । यानि इसका कम्पोस्ट बनाया जा सकता है । कचरा संग्रहण के विकेन्द्रीकरण की दिशा में इन्दौर नगर पालिका निगम ने एक और बड़ा और सराहनीय कदम उठाया है । इसने अपने आधिपत्य के लगभग ५०० से अधिक बगीचों में दो-दो कम्पोस्ट पिट बना दिये हैं । 
यानि अब इन बगीचों के कचरे को लैंडफिल स्थल तक परिवहन नहीं करना पड़ेगा । इससे एक तो वहां सैकड़ों टन कचरा कम पहुंचेगा । दूसरा इससे परिवहन का खर्च बचेगा । गड़ियों के फेरे कम लगने से शहर में वायु प्रदूषण कम होगा क्योंकि कचरा गाड़ियां डीजल चलित है । 
बगीचों की साफ-सफाई और कटाई-छंटाई एक रूटीन का कार्य है । अत: बगीचों से ढेर सारा बायोमास प्रति सप्तह निकलता ही है । बगीचे का यह बायोमास प्रति सप्तह निकलता ही है । बगीचे का यह बायोमास तो १०० प्रतिशत जैव अपघटनशील है । इस कचरे से जो कम्पोस्ट बनेगा वह वहीं काम आ जायेगा । यानि बगीचे का कचरा बगीचे में । कचरे के ढेर में नहीं । 
कचरे की इस समस्या से निपटने का दूसरा उपाय है कि नगर निगम जो कार्य बाग-बगीचे में कर रहा है, वह हम अपने-अपने घरों में करें । यदि शहर का हर नागरिक ऐसा करता है तो प्रतिदिन ११०० टन कचरा, जो कचरा भराव स्थल पर जाता है घर ही कम्पोस्ट बन सकता है । अगर शहर की आधी आबादी भी यह ठान ले तो समस्या का ५० प्रतिशत निदान तो हो ही जायेगा । इन्दौर के खजराना गणेश मन्दिर में किया जा रहा कार्य अनुकरणीय है । इस मंदिर में निकलने वाले हार-फूल- इत्यादि से वहीं मन्दिर में कम्पोस्ट बनाई जा रही है और गणेशजी के प्रसाद की रूप में बेची जा रही है । 
घर से निकलने वाली चाय-पत्ती सब्जियों के छिलके, फल- फूल, हार पूजन सामग्री रोज खिरने वाली हरी-पीली-सुखी पत्तियों से कार्बनिक पदार्थ निकलते है, जिनका आसानी से कम्पोस्टिग किया जा सकता है । कम्पोस्टिंग के तरीके जानने के लिये नेट पर जरा यू ट्यूब पर सर्च कर लें । ढेरों विडियो आपको मिल जायेगें - घर पर कम्पोस्ट बनाने के संदर्भ में । घरेलू कचरे को सही तरीके से जल्दी सड़ाने-गलाने हेतु बाजार में तरह-तरह के किट उपलब्ध है, इनकी कीमत मात्र ७००-८०० रूपये लेकर २००० रूपये तक है । इस किट में आपकी दो बढ़िया प्लास्टिक की सुन्दर बाल्टियां और कम्पोस्टिंग के लिये कम्पोस्टर के पैकेट मिलेंगे । घर का कचरा इन बाल्टियों में डालकर राज दो चम्मच कम्पोस्टिंग पावडर इस पर छिड़कना   है । महीने भर में बढ़िया कम्पोस्ट आपके घर में भी तैयार । 
बाजार से नहीं खरीदना चाहे तो खुद घर पर ही कम्पोस्ंटिग बाल्टी बना सकते है । एक पुरानी पेंट की खाली बाल्टी या पुराने अनुपयोग मटके में ड्रिल मशीन से ढेर सारे छिद्र कर लें । छिद्र इसलिए कि घरेलू कचरे को खाने वाले जीव फफूंद व बैक्टीरिया, वायु जीवी होते हैं । उन्हें भी जीने के लिये ताजी हवा चाहिये । इस बाल्टी या मटके में रोज अपना कचरा डाले । थोड़ा सा पुराना गोबर की सड़ी खाद या छाछ भी डाली जा सकती है । इनमें उपस्थित सूक्ष्म जीव कचरे को खाकर आपको बढ़िया पौष्टिक खाद में बदल देंगे । मैने तो अपने घर पर यह काम शुरू कर दिया    है ।                                             

कोई टिप्पणी नहीं: