शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

सामयिक
कैसे लौटाएं, सूखती नदियों का प्रवाह
कृष्ण गोपाल व्यास

पिछले कुछ सालों में एक-एक कर हमारी नदियां सूखती जा रही हैं, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाने वाले विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे संस्थान इस बदहाली से लगभग बेजार हैं । 
मध्यभारत की 'जीवन रेखा` मानी जाने वाली नर्मदा को ही देखें तो अव्वल तो उस पर ताने गए बड़े बांधों ने उसे महज आठ-दस तालाबों में तब्दील कर दिया है और दूसरे, बेरहमी से उलीची जा रही रेत ने उसके भू-गर्भीय जलस्त्रोतोंको नकारा कर दिया है । किनारे के रहवासी और सरोकार रखने वाले जानते हैं कि इन कारनामों से धीरे-धीरे नर्मदा खत्म होती जा रही हैं । ऐसे में सवाल है कि नदियों की अविरलता बनाए रखने और उसे वापस लौटा पाने के उपाय क्या हैंं ? 
सूखती नदियों के प्रवाह को वापस लौटाना संभव है। कुदरत ने हमें पर्याप्त पानी की सौगात दी है। यह काम समय लेगा पर नदियों को समग्रता में समझ कर निर्विवादित रूप से किया जा सकता है । उसके लिए बहुआयामी तौर-तरीकों को अपनाना होगा । सार्थक तथा संजीदा प्रयास करना होगा और प्रवाह को टिकाऊ  बनाए रखने के लिए नदी के पानी के बन्दोबस्त (जल प्रबन्ध) में समाज की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी । यदि हमारी मौजूदा पीढ़ी ने नदियों के घटते प्रवाह की अनदेखी की तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें नदियों के विनाश और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाने वाले बेहद गैर-जिम्मेदार, लालची पूर्वजों के तौर पर याद करेंगी । जिम्मेदार पूर्वज कहलाने के लिए हमें, तत्काल प्रभाव से नदियों की बदहाली को रोकना चाहिए । नदी जल की उपलब्धता ही विकास की बुनियाद है इसलिए कहा जा सकता है कि अब यह मामला सुरक्षित तथा टिकाऊ विकास से जुड़ा है । 
वास्तव में नदी प्रकृति द्वारा निर्धारित मार्ग पर प्रति पल समृद्ध होकर बहती पानी की अविरल धारा है । उसमें प्रवाहित पानी का प्रमुख स्त्रोत वर्षा जल है । जहाँ उत्तर भारत की नदियों (यथा-गंगा, यमुना, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र इत्यादि) को वर्षा और बर्फ के पिघलने से पानी मिलता है, वहीं दक्षिण भारत की नदियाँ (यथा-कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, नर्मदा इत्यादि) वर्षा आश्रित नदियाँ हैं । बरसात के सहयोग के बिना नदियों का अस्तित्व संभव नहीं है ।
नदी का अपना परिवार (नदी-तंत्र) होता है । अपना इलाका (कछार) होता है। बरसात में कछार पर बरसा पानी, छोटी-छोटी नदियों के मार्फत बड़ी नदी को मिलता है । वह उस पानी को समेट कर आगे बढ़ती है। सहायक नदियों से मिला पानी उसके प्रवाह को बढ़ाता है। प्रवाह वृद्धि उसे अविरल तथा स्वस्थ रखती है। वैज्ञानिकोंके अनुसार वह पृथ्वी पर संचालित प्राकृतिक जलचक्र का अभिन्न अंग है। उसकी अविरलता कछार की गंदगी को हटाती है, कछार को रहने योग्य बनाती है। कहा जा सकता है कि धरती पर जीवन की निरन्तरता के लिए नदियाँ बेहद आवश्यक हैं ।
प्रत्येक नदी में बरसात के  मौसम में बरसाती पानी प्रवाहित होता है। वर्षा ऋतु बीतने के बाद नदियों में धरती की उथली परतों से मुक्त हुआ भूजल प्रवाहित होता है। अर्थात भूजल का योगदान ही गैर-मानसूनी प्रवाह को जिन्दा रखता है । भूजल के योगदान के खत्म होते ही नदी सूख जाती है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह की बहाली के लिए भूजल की आपूर्ति अनिवार्य है । यह आपूर्ति दो ही स्थितियों में संभव होती है-सूखती नदी को कृत्रिम तरीके से पानी मिल जाए या फिर बरसात का मौसम वापस लौट आए । नदियों के प्रवाह की बहाली के ये ही दो रास्ते हैं ।
आधुनिक युग में अनेक कारणों से भारतीय नदियों की सेहत पर बहुत सारे खतरे मंडरा रहे हैं । पहला खतरा है-बरसात के बाद के प्रवाह और भूजल के अविवेकी दोहन के कारण जल की मात्रा कम होना और दूसरा खतरा है-नदियों के पानी में गंदगी, प्रदूषण की मात्रा का लगातार बढ़ना । तीसरा अप्रत्यक्ष खतरा नदियों के सुरक्षा कवच को क्षतिग्रस्त कर रहा है । यह खतरा है- नदियों की रेत का अवैज्ञानिक तरीकों से असीमित खनन । यह तीसरा खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है । तीनों खतरे मिलकर नदी की कुदरती पहचान और उसकी अस्मिता को खत्म कर रहे हैं । इन्हीं कारणों से नदी की अविरलता घट रही है। उसमें प्रदूषण बढ़ रहा है। उसकी जैवविविधता घट रही है । उसके पानी में स्वत: ही शुद्ध होने का कुदरती गुण नष्ट हो रहा है । नदियां अपनी कुदरती जिम्मेदारियों को पूरा करने में असहाय लग रही हैं ।
मौजूदा हालातों को देखते हुए कुछ लोगों को लगता है कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से छोड़े जाने वाले परिशोधित पानी या 'नदी-जोड़ परियोजना` की मदद से नदियों के प्रवाह को बढ़ाया जा सकता है । यह संभव नहीं है क्योंकि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का उद्देश्य नदी में मिलने वाले नाले के पानी की गंदगी को शोधित, साफ करना है, वहीं 'नदी-जोड़ परियोजना` का उद्देश्य बरसाती पानी को कृत्रिम तरीकों से बनाए गए जलाशयों में जमा करना है। इनमें से किसी भी योजना का उद्देश्य नदी के प्रवाह की बहाली नहीं है । इसके अतिरिक्त  यदि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के समूचे उपचारित पानी को नदी में डाल भी दिया जाए तो भी नदी की अस्मिता बहाल नहीं होगी, प्रवाह बहाली नहीं होगी । इन उपायों से नदी पुनर्जीवित नहीं होगी । 
ऐसे में भी आशा की किरण मौजूद है। भारत पर बरसने वाले पानी की मात्रा के आँकड़ों को देखें तो लगता है कि देश की अधिकांश नदियों में प्रवाह बहाली संभव है । हम मौजूदा मांग के साथ तालमेल बिठाकर नदियों की प्रवाह बहाली कर सकते हैं । राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों, खड़े तथा तीखे ढ़ाल वाले पहाडी भूभागों को छोड़कर बाकी सब जगह नदियों की बहाली संभव है । आवश्यकता समस्या के निदान के तरीकों को समझने और जरूरी नजरिए को अपनाने की है, उसे क्रियान्वित करने वाले सक्षम अमले की है, सही विभाग बनाने और इरादे की है । 
आवश्यकता देश के सभी नदी-तंत्रों पर काम करने की है । उल्लेखनीय है कि नदी-तंत्र का तानाबाना वृक्ष की तरह होता है । नदी-तंत्र की सहायक नदियाँ वृक्ष की जड़ों की तरह होती हैं । वे कछार के पानी को समेट कर मुख्य नदी को सौंपती हैं । यह काम जड़ों द्वारा तने और डालियों तथा पत्तों को पानी मुहैया कराने जैसा होता है । जिस प्रकार जड़ों द्वारा जलापूर्ति के बन्द हो जाने से वृक्ष सूख जाता है ठ ीक उसी प्रकार सहायक नदियों के योगदान के समाप्त होते ही पहले वे खुद सूखती हैं और फिर मुख्य नदी में प्रवाह कम होता जाता है । धीरे-धीरे मुख्य नदी पूरी तरह सूख जाती है ।

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