शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

सम्पादकीय
अभूतपूर्व खतरे के दौर मेंजन्तु प्रजातियां 
 विश्व मेंं रीढ़धारी जीवोंकी संख्या में वर्ष १९७० और २०१४ के बीच के ४४ वर्षों में ६० प्रतिशत की कमी हो गई। यह जानकारी देते हुए हाल ही में जारी लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट (२०१८) में बताया गया है कि कई शताब्दी पहले की दुनिया से तुलना करें तो विभिन्न जीवों की प्रजातियों के लुप्त् होने की दर १०० से १००० गुना बढ़ गई है।
हारवर्ड के जीव वैज्ञानिक एडवर्ड विल्सन ने कुछ समय पहले विभिन्न अध्ययनों के निचोड़ के आधार पर बताया था कि मनुष्य के आगमन से पहले की स्थिति से तुलना करें तो विश्व में जमीन पर रहने वाले जीवों के लुप्त् होने की गति १०० गुना बढ़ गई है। इस तरह अनेक वैज्ञानिकों के अलग-अलग अध्ययनों का परिणाम यही है कि विभिन्न प्रजातियों के लुप्त् होने की गति बहुत बढ़ गई है और यह काफी हद तक मानव-निर्मित कारणों से हुआ है।
जीवन का आधार खिसकने की चेतावनी देने वाले अनुसंधान केंद्रों में स्टाकहोम रेसिलिएंस सेंटर का नाम बहुत चर्चित है। यहां के निदेशक जोहन रॉकस्ट्रॉम की टीम ने एक अनुसंधान पत्र लिखा है जिसमें धरती के लिए सुरक्षित सीमा रेखाएं निर्धारित करने का प्रयास किया गया है। इसके अनुसार धरती की २५ प्रतिशत प्रजातियों पर लुप्त् होने का संकट है। कुछ वर्ष पहले तक अधिकतर प्रजातियां केवल समुद्रों के बीच के टापुओं पर लुप्त् हो रही थीं, पर बीस-तीस वर्ष पहले से मुख्य भूमि पर बहुत प्रजातियां लुप्त् हो रही हैं। डॉ. गैरार्डो सेबेलोस, डॉ. पॉल एहलरिच व अन्य शीर्ष वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि यदि १०० वर्ष में प्रति १०,००० प्रजातियों में से दो प्रजातियां लुप्त् हो जाएं तो इसे सामान्य स्थिति माना जा सकता है। पर यदि वर्ष १९०० के बाद की वास्तविक स्थिति को देखें तो इस दौरान सामान्य स्थिति की अपेक्षा रीढ़धारी प्रजातियों के लुप्त् होने की गति १०० गुना तक बढ़ गई। 
अध्ययन में बताया गया है कि यह अनुमान वास्तविकता से कम ही हो सकता है। दूसरे शब्दो में, वास्तविक स्थिति इससे भी अधिक गंभीर हो सकती है। 

कोई टिप्पणी नहीं: