सोमवार, 19 अगस्त 2019

वातावरण
प्रदूषण को काबू करेगे, बिजली के वाहन 
कुमार सिद्धार्थ 

  दुनिया भर में वायु प्रदूषण के लिए वाहनों की बढ़ती संख्या भी जिम्मेदार है। फैलते बाजार और उसकी मार्फत कमाए जाते राजस्व ने सरकारों को इसे अनदेखा करने को उकसाया भी है, लेकिन बढ़ते तापक्रम और नतीजे में जलवायु परिवर्तन की मार के चलते अब परिवहन के विकल्पों पर भी बातें होने लगी हैं। 
देश के महानगरों और शहरों में जिस तेजी से वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है, उसमें सबसे ज्यादा योगदान वाहनों से होने वाले प्रदूषण का है। यह ऐसा मुद्दा है जिस पर वर्षों से चिंता जताई जा रही है, लेकिन इस दिशा में कुछ खास परिणाम देखने में नहीं आ रहे।  देश में दो पहिया और चार पहिया वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है और रोजाना लाखों नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं। फिलहाल देश भर में करोड़ों वाहन ऐसे हैं, जो पेट्रोल और डीजल से चल रहे हैं और इनसे निकलने वाला काला धुआं कार्बन उत्सर्जन का बड़ा कारण है। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन` की २०१८ की रिपोर्ट बताती है कि भारत के लगभग ११ प्रतिशत वाहन कार्बन उत्सर्जक हैं, जो वायु प्रदूषण का प्रमुख स्त्रोत   है ।  
पेरिस में हुए 'जलवायु परिवर्तन समझौते` के प्रति प्रतिबद्धता के चलते अब बिजली से चलने वाले वाहनों के विस्तार को लेकर गंभीरता से काम शुरू हुआ है । इस दिशा में भारत सरकार ने साल २०३० तक बिजली से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देने के लिए एक वृहद योजना तैयार की है। ये वाहन बैटरी से चलेंगे और बैटरी बिजली से चार्ज होगी । माना जाता है कि बिजली से चलने वाले वाहनों की देखभाल व मरम्मत का खर्च भी कम आता है । 
सरकार की इस पहल से अब इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर निर्माता कम्पनियां भी गंभीर हो चुकी हैं। उम्मीद की जा रही है कि पूूरे देश में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ने से बिजली क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा और जहरीली गैसों के उत्सर्जन में ४० से ५० प्रतिशत की कमी आएगी । इससे देश में कार्बन उत्सर्जन के  लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी ।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केन्द्रीय कैबिनेट ने 'नीति आयोग` की अगुवाई में विद्युत गतिशीलता के मिशन को मंजूरी दी  है । ध्यान रहे कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को सार्वजनिक परिवहन से जोड़ने के लिए केन्द्र सरकार की हाइब्रिड (बिजली और जैविक दोनों) और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने और उनके निर्माण की नीति 'फास्टर एडॉप्शन एण्ड मैन्यु-फैक्चरिंग इलेक्ट्रोनिक व्हीकल्स` (एफएएमई) जिसे २०१५ में लॉन्च किया गया था, का पुनरीक्षण किया जा  रहा है। इसके तहत 'नीति आयोग` ने बिजली से चलने वाले वाहनों की जरूरत, उनके निर्माण और इससे संबंधित जरूरी नीतियां बनाने की शुरूआत की है।
दरअसल, ऑटोमोबाइल के लिए भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। भारत में इस वक्त लगभग ०.४ मिलियन इलेक्ट्रिक दो-पहिया वाहन और ०.१ मिलियन ई-रिक्शा हैं। कारें तो केवल हजारों की संख्या में ही सड़कों पर दौड़ रही हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक 'सोसाइटी ऑफ मैन्युफैक्चर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हिकल` (एसएमईवी) के अनुसार, भारत ने २०१७ में बेचे जाने वाले 'आंतरिक दहन` (आईसी) इंजन वाले वाहनों में से एक लाख से भी कम बिजली से चलने वाले वाहनों को बेचा । इनमें से ९३ प्रतिशत से अधिक इलेक्ट्रिक तीन-पहिया वाहन और ६ प्रतिशत दोपहिया वाहन थे। इलेक्ट्रिक गाड़ियों में दो पहिया वाहन ही अग्रणी है ।
भारत भले ही इलेक्ट्रिक कारों में दूसरे देशों से पीछे हो, लेकिन बैटरी से चलने वाली ई-रिक्शा की बदौलत उसने चीन को पीछे छोड दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मौजूदा समय में भारत में करीब १५ लाख ई-रिक्शा चल रहे हैं, जो चीन में साल २०११ से अब तक बेची गईं इलेक्ट्रिक कारों की संख्या से ज्यादा हैं। एटी कर्नी नाम की एक कंसल्टिंग फर्म की रिपोर्ट में बताया गया है कि हर महीने भारत में करीब ११,००० नए ई-रिक्शा सड़कों पर उतारे जा रहे हैं। भारत में अभी इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चार्ज करने के लिए कुल ४२५ पॉइंट  बनाए गए हैं। सरकार २०२२ तक इन प्वाइंट्स को २,८०० करने वाली है ।
कुछ दिनों पहले भारत सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण और उनके तेजी से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये 'फेम इंडिया` योजना के दूसरे चरण को मंजूरी दी है। कुल १० हजार करोड़ रुपए लागत वाली यह योजना १ अप्रैल, २०१९ से तीन वर्षों के लिये शुरू की गई जो मौजूदा योजना 'फेम इंडिया वन` का विस्तारित संस्करण है। 
इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में इलेक्ट्रिक और हाईब्रिड वाहनों के तेजी से इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। इसके लिये लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद में शुरुआती स्तर पर सब्सिडी देने तथा ऐसे वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत संरचना विकसित करना है। यह योजना पर्यावरण प्रदूषण और इंर्धन सुरक्षा जैसी समस्याओं का समाधान करेगी । 
गौरतलब है कि देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से बिजली की मांग भी बढ़ रही है। नॉर्वे और चीन जैसे देशों ने बड़े पैमाने पर बिजली से चलने वाले वाहनों का निर्माण शुरू किया है। जनवरी २०११ से दिसंबर २०१७ के बीच चीन में बिजली से चलने वाले  १७ लाख २८ हजार ४४७ वाहन सड़कों पर उतारे गए । उद्योग मंडल 'एसोचौम` और 'अन्सर्ट्स एंड यंग` (ईएण्डवाई) के संयुक्त  अध्ययन में कहा गया है कि साल २०३० तक इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से बिजली की मांग ६९.६ अरब यूनिट पहुंचने का अनुमान है।
आलोचकों का तर्क है कि भारत में ९० प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले से होता है। ऐसे में इलेक्ट्रिक कारों से प्रदूषण कम करने की बात बेईमानी लगती है। नॉर्वे के विज्ञान और प्रौघोगिकी विश्वविद्यालय की ओर से कराए गए एक शोध के मुताबिक बिजली से चलने वाले वाहन पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से कहीं ज्यादा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि यदि बिजली उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल होता है तो इससे निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसें डीजल और पेट्रोल वाहनों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं। 
यही नहीं, जिन फैक्ट्रियों में बिजली से चलने वाली कारें बनती हैं वहां भी तुलनात्मक रूप में ज्यादा विषैली गैसें निकलती हैं। हालांकि शोध-कर्ताओं का कहना है कि इन खामियों के बावजूद कई मायनों में ये कारें फिर भी बेहतर हैं। रिपोर्ट में ये कहा गया है कि ये कारें उन देशों के लिए फायदेमंद हैं जहां बिजली का उत्पादन अन्य स्त्रोतों से होता है ।
अपने देश में ऊर्जा अभाव के  चलते इलेक्ट्रिक वाहनों का सपना चुनौतीपूर्ण ही लगता है। इलेक्ट्रिक वाहन चलाने के लिए पर्याप्त बिजली मिल सके, अभी इस पर काम किया जाना है। वहीं उसके लिए बुनियादी सुविधाओं, संसाधनों और बजट का प्रावधान किया जाना है। वाहन निर्माता कंपनियों का कहना है कि अगर सरकार बैटरी निर्माण और चार्जिंग स्टेशनों की समस्या का समाधान कर दे तो बड़ी तादाद में बिजली-चलित वाहन बाजार में उतारे जा सकते हैं । 
जाहिर है बुनियादी सुविधाओं का इंतजाम सरकार को करना है और इसके लिए ठोस दीर्घावधि नीति की जरूरत है। देखना होगा कि आने वाले समय में बिजली आधारित वाहनों के उपयोग और उससे उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयासों की पहल कितनी कारगर साबित होगी  ?

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