बुधवार, 18 सितंबर 2019

वातावरण
हवाई यातायात से बिगड़ता पर्यावरण
डॉ. ओ.पी. जोशी
एक जमाने में अमीरों के मंहगे परिवहन का सुविधाजनक साधन माना जाने वाला हवाई यातायात अब अनेक शहरों, व्यक्तियों के लिए आम बात हो गया  है ।  
बढ़ते हवाई यातायात में विभिन्न प्रकार के वायुयानों के उत्सर्जन से वायुमंडल में विभिन्न ऊंचाईयों पर एवं हवाई अड्डों के आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरण बिगड़ रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिकोंको डर है कि इस बढ़ते हवाई यातायात से आकाश में भी जाम की स्थिति पैदा न हो जाए ! अंतरराष्ट्रीय तथा घरेलू एयर लाइंस से जुड़ी कंपनियां अपने-अपने विमानों की संख्या लगातार बढ़ा रही हैं एवं निजी कंपनियां छोटे-छोटे शहरों में भी वायु सेवा देने हेतु प्रयासरत हैं। सरकार ने 'उड़ान` योजना प्रारंभ की है जिसके तहत उन क्षेत्रों को जोड़ा जायेगा जहां हवाई सम्पर्क कम या नहीं हैं। इसके साथ ही सुरक्षा हेतु एवं बढ़ते आतंकवाद के विरूद्ध विभिन्न देशों की वायु सेनाएं भी अपनी गतिविधियां बढ़ा रही हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारतीय आकाश में वायुयानों की गतिविधियां १५ प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रही हैं। हमारे देश में आजादी के बाद से अब तक हवाई यात्राओं में लगभग ४० प्रतिशत की वृद्धि हुई है । विमानों के उड़ने, उतरने एवं अपने गंतव्य स्थान तक का सफर तय करने के दौरान उत्सर्जन से वायु मंडल के विभिन्न स्तर तथा हवाई अड्डों के आसपास के क्षेत्र प्रदूषित होते पाये गये हैं। 
विमानों के इंजन की स्थिति तथा ईंधन (एयर टर्बाइन फ्यूल) की दहन-स्थिति के अनुसार, जो पदार्थ उत्सर्जित होते हैं, उनमें कार्बन डाय एवं मोनो-ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन्स, सल्फर डाय-ऑक्साइड, नाइट्रोजनऑक्साइडस, जलवाष्प, सीसा (लेड) तथा कार्बन के कण प्रमुख होते हैं। कार्बन मोनो-ऑक्साइड ऑक्सीजन के सम्पर्क  से कार्बन डाय-ऑक्साइड में बदल जाती है जो एक प्रमुख 'ग्रीन-हाऊस गैस` है। 'लिपास्टो` नामक एक संस्था ने कुछ वर्ष पूर्व प्रारम्भिक तौर पर प्रति हवाई यात्री द्वारा पैदा कार्बन डाय-ऑक्साइड की गणना की थी ।
इस गणना के अनुसार घरेलू, कम दूरी की उड़ानों (लगभग ४६० किलोमीटर से कम) में २५७ ग्राम कार्बन डाय-ऑक्साइड प्रति यात्री उत्सर्जित होती है। बहुत लम्बी दूरी की अंर्तराष्ट्रीय उड़ानों में यह मात्रा घटकर ११५ ग्राम हो जाती है। यूरोपीय संघ में बढ़ते हवाई यातायात से १९९० से २००६ के मध्य प्रमुख 'ग्रीन-हाऊस गैस` कार्बन डाय-ऑक्साइड का उत्सर्जन ८० से ८५ प्रतिशत तक बढ़ा था। वर्ष २०१३ में जारी एक सरकारी रिपोर्ट के  अनुसार भारत में हवाई सफर से प्रतिवर्ष लगभग दस लाख टन कार्बन डाय-ऑक्साइड पैदा होती है। वायुमंडल में बहुत ऊंचाई पर ठण्डे वातावरण में विमानों से निकली गर्म गैसों पर वहां उपस्थित जलवाष्प एकत्रित होकर (संघनित होकर) धुंए की एक बादल जैसी लकीर खींचती  है जो हमें जमीन से भी दिखायी देती  है । 
सेटेलाईट से प्राप्त् चित्र दर्शाते हैं कि भारी हवाई यातायात के क्षेत्रों में ये बादल जैसी लकीरें तेजी से काफी अधिक संख्या में निर्मित होकर लम्बे समय तकबनी रहती हैं। ये लकीरें दिन के समय सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा या गर्मी को परावर्तित कर देती हैं, परंतु रात्रि के समय पृथ्वी (भूतल) से पैदा गर्मी को रोककर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में सहायता देती है। इंग्लैण्ड के कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार ब्रिटेन के वार्षिक हवाई यातायात में रात्रि-कालीन उड़ानें केवल २२ प्रतिशत हैं, परंतु बादल जैसी लकीरों से पैदा गर्मी का योगदान ६० से ८० प्रतिशत तक होता है।
बढ़ते हवाई यातायात से हवाई अड्डों पर तथा इसके  आसपास के क्षेत्रों में वायु एवं शोर प्रदूषण बढ़ जाता है। वायुयानों के उतरते तथा उड़ते समय प्रदूषित गैसों का उत्सर्जन चार गुना बढ़ जाता है। जेटयान से उत्सर्जित गैसों में बेंजापायरोन की उपस्थिति भी देखी गयी है जो कैंसर को जन्म देता है। घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय विमान तलों पर ज्यादा यातायात या मौसम की खराबी के कारण कई विमानों को उतरने की अनुमति नहीं दी जाती तो उन्हें इंतजार में आकाश में चक्कर लगाना पड़ते हैं जिससे विमान तल तथा आसपास की वायु की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। विमान तल पर यात्रियों को लेने एवं छोड़ने आये वाहनों से भी इस क्षेत्र में वायु एवं शोर प्रदूषण बढ़ जाता है। एयर टै्रफिक के समय कुछ देर के लिए शोर प्रदूषण का स्तर १०० डेसीबल तक पहुंच जाता है।
वैसे यह सुखद है कि हवाई यातायात से पैदा वायु प्रदूषण एवं  शोर प्रदूषण पर ध्यान देकर अब रोकथाम के प्रयास प्रारंभ किये गये हैं। देश के 'नागर विमानन महानिदेशालय` (डीजीसीए) ने  भारतीय विमानतलों पर विमानों के उड़ने एवं उतरने के समय पैदा शोर में कमी लाने के लिए सिविल एविएशन नियमों में अक्टूबर २०१७ से संशोधन किया है। यह संशोधन 'अंतर्राष्ट्रीय सिविल एविएशन आर्गेनाइजेशन` तथा 'एविएशन एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी` के सुझावों पर आधारित है। इसके साथ ही जनवरी २०१९ से भारतीय विमान सेवा कम्पनियों की अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के दौरान कार्बन डाय-ऑक्साइड के उत्सर्जन का रिकार्ड देने हेतु कहा है। '
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण` (एनजीटी) ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय को वर्ष २०१७ में दिल्ली के 'इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे` पर शोर प्रदूषण कम करने का आदेश दिया था। आदेश के पालन में हवाई अड्डे के रनवे २९/११ पर शोर अवरोधक दीवार बनायी गई है जो लगभग एक किमी लम्बी तथा ५ फीट ऊंची है। इस दीवार को 'आयआयटी-दिल्ली` ने डिजाईन किया है। 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित पर्यावरण के सम्मेलनों में इस समस्या पर विचार-विमर्श कर  हवाई यातायात के संदर्भ में पर्यावरण हितैषी नीतियां बनाकर उन पर  अमल करने के प्रयासों पर जोर दिया जाना चाहिये। ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े 'क्योटो-प्रोटोकोल` में भी इसे जगह दी जानी चाहिये।     

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