रविवार, 17 जुलाई 2016

पर्यावरण परिक्रमा
खतरे में है हिमालय के ५१ घास मैदान
कुदरत की अनमोल देन बुग्याल (उच्च् हिमालयी क्षेत्र मेंघास के मैदान ) पर खतरा मंडरा रहा है । केंद्र सरकार के निर्देश पर हुए वन विभाग के ताजा सर्वेक्षण में खुलासा हुआ कि टिहरी जिले के ५१बुग्यालों में भू-धंसाव हो रहा है । इसके चलते वनस्पति और बुग्यालों की घास नष्ट हो रही है । विभाग ने रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय को भेज दी है । केंद्र सरकार ने अप्रैल माह में प्रदेश के वन मुख्यालय को पत्र भेजकर हिमालयी क्षेत्र में बुग्यालों के सरंक्षण के प्रयास और इसकी रिपोर्ट बनाने के निर्देश दिए थे ।  इसके बाद टिहरी वन प्रभाग ने भिलंगना ब्लॉक के पिंसवाड़, घुत्तु, गंगी और गेंवाली गांवों की हिमालयी पहाड़ियों में बुग्यालों का सर्वेक्षण किया । जून में सर्वेक्षण के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें खुलासा हुआ कि जिले के हिमालयी क्षेत्र के ११,३९९.६० हेक्टेयर में फैले ५१ छोटे-बड़े बुग्यालों में से अधिकतर भू-धंसाव की चपेट में हैं । वन गुर्जर और ग्रामीण मवेशियों के लिए इन बुग्यालों में जाते हैे , जिस कारण पशुआें के खुरों से बुग्यालों में पाई जाने वाली घास और औषधीय पौधे नष्ट हो रहे हैं । भिलंगना रेंज के उप प्रभागीय वनाधिकारी हेमशंकर मैंदोला ने बताया कि घास और जड़ी-बूटी मानवीय गतिविधियों से नष्ट हो रही हैं । इसे रोकने के प्रयास किए जारहे हैं । 
टिहरी के प्रभागीय वनाधिकारी आरपी मिश्रा ने बताया कि बुग्यालों का संरक्षण हमारी प्राथमिकता है । जिन क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान हो रहा है, वहां घर और जड़ी-बूटियों की सुरक्षा के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है । 
वाटर हार्वेस्टिंग एंड रीचार्ज किट बनाई
वॉटर हार्वेस्टिंग एंड रीचार्ज के लिए देश में पहली किट का पेटेंट कराया गया है । इसके चार मॉडल्स को सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट पंकज तिवारी ने ग्वालियर में तैयार किया है । चीफ कंट्रोलर डिजाइन पेटेंट एंड ट्रेडमार्क कोलकाता ने इसे रजिस्टर्ड कर लिया है । हालांकि इसका व्यावसायिक तौर पर निर्माण शुरू नहीं हुआ है । प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस किट को जल संसाधन विभाग को भेज दिया है । 
इस किट को २० से ५००० स्क्वेयर फीट तक के क्षेत्र में लगाया जा सकता है । इस किट से जमीन में रिचार्ज होने वाला पानी फिल्टर होकर उस क्षेत्र की जमीन में पानी का स्तर बढ़ाता है और वहां की पानी की क्वालिटी को बेहतर करता है । पंकज तिवारी ने दो साल की खोज के बाद इसे तैयार किया है । इसमें ग्रेवल, चारकोल, सैंड व पेवल का इस्तेमाल किया गया है । बरसात का पानी एक बड़े ड्रम या अन्य उपकरण में आएगा और ग्रेवल, चारकोल, सैंड व पेवल से फिल्टर होकर जाएगा । इस पानी को पीने आदि के लिए भी उपयोग किया जा सकता है । 
बरसात का पानी पूरी तरह शुद्ध नहीं होता है । वायु प्रदूषण के अलावा बरसाती पानी में धुंआ, धूल के सस्पेक्टेड पार्टिकल, एल्गी, बैक्टीरिया आदि होते हैं । यह पानी जमीन में यदि सीधे रीचार्ज किया जाए तो उसे मिट्टी पूरी तरह शुद्ध नहीं कर पाती । इस किट के माध्यम से जमीन में जाने वाले पानी की क्वालिटी भी बेहतर हो जाती है । 
इस किट की फिटिंग सहित कुल कीमत लगभग १० हजार रूपए आती है । अभी इस किट का निर्माण किसी कंपनी ने शुरू नहीं किया है । ग्वालियर में वरिष्ठ नागरिक सेवा संस्थान के माध्यम से इस  किट को तीन स्थानों पर लगाया जा चुका है । इसका बड़े स्तर पर निर्माण शुरू  करने के लिए बात चल रही है । व्यावसायिक तौर पर उत्पादन होने से इसका लागत मूल्य काफी कम हो सकता है । 
अमेरिका में बन रहा अमरता का गांव
मनुष्य का सपना रहा है कि वह हमेशा युवा रहे यानी उसका जीवन लंबा हो जाए और वह स्वस्थ रहे यानी अमर हो जाए । इस सपने को साकार करने के लिए अमेरिका में प्रयास शुरू हो गए   हैं । 
अमेरिका के टेक्सास प्रांत के कोम्फोर्ट में इम्मोर्टल विलेज या अमरता का गांव बनना शुरू हो गया    है । इस गांव की टाइमशिप बिल्डिंग में दुनिया का सबसे बड़ा क्रायोप्रेजर्वेशन सेंटर बनेगा । यहां करीब ५० हजार शरीर रखे जाएंगे, इस आशा में कि ये शरीर एक दिन जी उठेंगे । इस सेंटर में जीवन को लंबा करने के लिए शोध करने अंगों, ऊतकों और कोशिकाआें को रखने पर भी ध्यान दिया जा रहा है । इस सेंटर की डिजाइन ख्यातनाम आर्किटेक्ट स्टीफन वालेंटाइन ने बनाई है । उनका कहना है कि यह मानव को भविष्य में ले जाने जैसा है । 
यह जानवरों और मनुष्यों को अत्यंत कम तापमान पर जमा कर रखने की प्रक्रिया है । यह इस आशा में की जाती है कि भविष्य में ये जी उठेंगे । इसका उद्देश्य भविष्य में उन लोगों को ठीक करना है जो  दवाआें से ठीक नहीं हो सकेगे । 
यह प्रक्रिया इस आशा पर टिकी है कि लांग टर्म मेमोरी, व्यक्तित्व और पहचान लंबे समय तक जीवित रहने वाली कोशिकाआेंमें स्टोर रहते हैं जो दिमाग में रहती हैं । यदि इन्हें संरक्षित कर लिया जाए और भविष्य में इन तक पहुंच बनाई जा सकती है । यानी यह दिमाग के टाइम ट्रेवल करने जैसा है । कैलिफोर्निया में सेंस रिसर्च फाउंडेशन है । से फाउंडेशन उम्र की वजह से होने वाली बीमारियों के बारे में रिसर्च करता है । इसकी प्रमुख ऑब्रे डे ग्रे कहती है कि क्रायोप्रेजर्वेशन दवा ही है ।
क्रायोनिक्स की इस बात के लिए आलोचना होती है कि यह धनवान लोगोंकी सनक है । यह निश्चित मौत की जगह उन लोगों को जमी हुई अवस्था में मौजूद रहने का रास्ता देती है वह भी तब तक जब तक कि उन्हें छि र से जीवित करने की तकनीक विकसित नहीं हो जाती । अभी दुनिया में करीब १२५० ऐसे लोग है जो कानूनी तौर पर जिंदा हैं, वो ऐसी हालत में रखे जाने का इंतजार कर रहे हैं यानी क्रायोप्रेजर्वेशन  का इंतजार कर रहे हैं । अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के दूसरे देशों में अब ऐसे केंद्र खोले जा रहे है, जहां लोगों के शरीर को बेहद सर्द माहौल में रखा जाएगा । 
संगम तट के कल्पवृक्ष को संक्रमण का खतरा
संगमनगरी का १०० साल पुराना कल्पवृक्ष खतरे में है । झूंसी में गंगातट के ढलान पर कृल्पवक्ष की जड़ों से मिट्टी की कटान तेज हो गई है । धार्मिक आस्था के कारण लोग मन्नतें प्रार्थनाएं पूरी होने की उम्मीद में इसकी जड़ों को मिट्टी खोदकर ले जाते हैं, जिससे संक्रमण फैल गया है । उसके तने का बड़ा हिस्सा खोखला हो गया   है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल्पवृक्ष के मौजूदा हालात की रिपोर्ट तलब की  है । 
पिछले दिनों तूफान में इलाहाबाद में दर्जनों पेड़ उखड़ गए थे । तब स्थानीय लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कल्पवृक्ष बचाने के लिए पत्र लिखे । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी गुहार लगाई गई । ढलान पर खड़े इस वृक्ष की जड़ों से, झाड़फूंक के लिए मिट्टी निकाली जाती है और लगातार जड़े खुल रही है । कवक, शैवाल और अन्य जीवाणुआें के संक्रमण से इसका तना खोखला होने लगा है । प्रधानमंत्री दफ्तर से भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के इलाहाबाद स्थित मध्य केन्द्र से इस बारे में रिपोर्ट तलब की गई । 
इस पर केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. जी.पी. सिन्हा, डॉ. अच्युतानंद शुक्ला, सेंटर फार सोशल फारेस्ट्री और इको रिहैबिलिटेशन की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कुमुद दुबे तथा वन विभाग के अधिकारी केपी दुबे ने संयुक्त रूप से इस कल्पवृक्ष का मुआयना किया और वीडियो  बनाया । 
प्रधानमंत्री दफ्तर को भेजी रिपोर्ट में इन अधिकारियों ने भी इस वृक्ष पर मंडरा रहे खतरों को गिनाते हुए संरक्षण की सिफारिश की है । वनस्पति सर्वेक्षण के मध्य केन्द्र के विभागाध्यक्ष डॉ. जीपी सिन्हा ने यूपी के प्रधान वन संरक्षक को पत्र लिखा है । उन्होनें कहा है कि प्राचीन वृक्ष के संरक्षण के लिए मुख्य तने का कवक, बैक्टीरिया से बचाना जरूरी है और इसके रोगों का उपचार शुरू करना आवश्यक है । मिट्टी की कटान से बचाने के लिए चबूतरा बनाकर श्रेयस्कर होगा । 
इको रिहैबिलिटेशन की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कुमुद दुबे कहती है कि भारतीय ग्रन्थोंमें इस वृक्ष को मनोकामना पूर्ण करने वाला माना गया है । ऐसी लोक मान्यता प्रबल है । मंकी ब्रेड ट्री के नाम से मशहूर वृक्ष को कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है । हिन्दी में इसे गोरख इमली, कल्पवृक्ष व पारिजात कहते हैं । अरबी पौधे बुहीबाव से इसका अंग्रेजी नाम बावोबाव या ब्रेड ट्री लिया गया है । सेमलकुल के इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम एंडेन्सोनिया डिजिटेटा है । 
म.प्र. को बब्बर शेर देने के लिए गुजरात राजी
कुनो पालपुर अभयारण्य श्योपुर में गुजरात के एशियाटिक लॉयन (बब्बर शेर) की नई बसाहट बसाने की १० साल से जारी कवायद अब पूरी होगी । गिर के शेर म.प्र. को देने पर गुजरात सरकार तैयार हो गई है । हालांकि इसकी वजह बढ़ती संख्या के चलते उनका हिंसक होना है । गुजरात में ऐसे १७ शेर पिंजरे में बंद किए गए हैं । वैसे म.प्र. को  शेरों का १६ सदस्यीय १० शेर और ६ शेरनी परिवार दिया जाएगा, जिसे एयर लिफ्ट करने की तैयारी हो रही है । शिफ्िटंग के मद्देनजर दिल्ली में हुई बैठक में रणनीति बनाई गई, जिसके तहत गुजरात के वन अधिकारी जल्द ही अभयारण्य का दौरा करेगे ।

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