रविवार, 17 जुलाई 2016

खान-पान
प्रोटीन का स्त्रोत - दालें
नवनीत कुमार गुप्त
भोजन की थाली में विभिन्न पोषक तत्वों का होना स्वास्थ्य के लिए अहम होता है । इसलिए सदियों से, अनजाने में ही सही, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, वसा एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व युक्त खाद्य सामग्रियों को आहार में शामिल किया गया है । 
हर देश में चाहे भोजन का स्वरूप एवं स्वाद अलग हो लेकिन कोशिश यही रहती है कि शरीर के पोषण के लिए आवश्यक हर तत्व आहार मेंशामिल हो सके । भारतीय थाली मेंदाल अभिन्न रूप से जुड़ी रही है । चाहे बात दाल-रोटी की हो या दाल-चावल की, हर भारतीय का खाना दाल के बिना अधूरा होता है । असल मेंदाल प्रोटीन का अहम स्त्रोत है । इसलिए दाल को प्राचीन काल से हमारी थाली में शामिल किया गया  है । इसके अलावा कृषि प्रधान देश होने के कारण भी हमारे यहां सदियोंसे दालों का उत्पादन और उपभोग किया जाता रहा है । 
हमारे यहां अरहर, उड़द, मंूग, चना, मटर, मसूर, मोठ, राजमा आदि दालें काफी पसंद की जाती है । दालों से बने व्यंजनों जैसे दाल-मखनी, दाल-तड़का, गुजराती दाल आदि के भी सैकड़ों प्रकार    होंगे । हमारे देश में अलग-अलग क्षेत्रों में दाल बनाने के बर्तन भी अलग-अलग मिल जाएंगे । कहीं पर हांडी मिलेगी तो कहीं पर कड़ाही । यानी दालें हमारी विविधता में एकता का प्रतीक है । और हां, मीठे के शौकीनों के लिए दालों से बनने वाले विभिन्न प्रकार के लड्डू भी काफी पंसद किए जाते हैं । 
विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में दलहनी फसलें किसानों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । विश्व का आधे से अधिक दलहन उत्पादन विकासशील देशों द्वारा किया जाता   है । अकेला भारत ही कुल वैश्विक उत्पादन मेंलगभग एक चौथाई की हिस्सेदारी रखता है ।
दालें विकासशील देशों में निम्न वास, उच्च् रेशा युक्त प्रोटीन का अहम स्त्रोत हैं । ये उन स्थानों में अति महत्वपूर्ण प्रोटीन स्त्रोत हैं जहां अजैविक उत्पादों से प्रोटीन की पूर्ति की जाती है । इसके अलावा दालों से कैल्शियम, लौह और लायसिन जैसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिलते है । 
दलहन उत्पादन का ६० प्रतिशत मानवीय उपयोग के काम आता है । लेकिन दालों के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि मानव आहार में इनकी मात्रा और इनका प्रकार हर क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग देखा गया है । विकासशील देशों में जहां कुल आहार में दालों की मात्रा ७५ प्रतिशत है वहीं विकसित देशों में इनकी मात्रा केवल२५ प्रतिशत है । कुल उत्पादन में से कुछ प्रतिशत मात्रा का उपयोग जानवरों के आहार के रूप में किया जा रहा है ।
दलहनी फसलें कई प्रकार से धारणीय विकास में योगदान देती    है । फसल चक्रण की दृष्टि से दलहनी फसलें महत्वपूर्ण है । इन फसलों को अधिक उर्वर मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है । अनेक दालें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी अहम योगदान देती है । मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने के कारण दाले मृदा उर्वरता में अहम भूमिका निभाती है । इनसे मिट्टी में ऐसे सूक्ष्मजीवों की वृद्धि होती है जो फसल की उपज को बढ़ाने में सहायक होते है । 
इसके अलावा दालें प्रोटीन का ऐसा स्त्रोत है जिनसे कार्बन फुटप्रिंट में कम वृद्धि होती   है । अन्य प्रोटीन स्त्रोतों की तुलना में इन्हें पानी भी कम चाहिए होता है । एक किलोग्राम मांस, चिकन, सोयाबीन का उत्पादन करने में दालों की तुलना में क्रमश: १८, ११ और ५ गुना अधिक पानी लगता है । इसी तरह प्रोटीन के अन्य स्त्रोतों की तुलना में इनके उत्पादन में होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी काफी कम होता है । 
दलहनी फसल के वैश्विक उत्पादन की मात्रा अलग-अलग है । दलहन का औसत वैश्विक उत्पादन २०१० में ८१९ किलोग्राम प्रति हैक्टर था जबकि भारत में इसकी मात्रा बहुत कम, ६०० किलोग्राम प्रति हेक्टर थी । इसी दौरान अमेरिका और कनाड़ा में यह दर १८०० किलोग्राम प्रति हेक्टर थी । 
हमारे देश में वर्ष २०१५ कृषि क्षेत्र के लिए एक चुनौतीपूर्ण साल था । देश के कई हिस्सोंमें रूखे मौसम और सूखे के कारण किसानों के लिए यह परेशानी भरा साल लगातार दूसरा वर्ष था । दक्षिण-पश्चिमी मानसून २०१५ में लंबी अवधि औसत के सामान्य स्तर से १४ प्रतिशत कम रहा, जिसका असर खरीफ फसलों पर पड़ा । इसके बाद जो उत्तर-पूर्वी मानसून आया, वह तमिलनाडु एवं आसपास के क्षेत्रों में भारी विनाश का कारण बना । इससे वहां अभूतपूर्व बाढ़ का संकट     आया । वैसे दाल एवं तिलहनों का उत्पादन पिछले कई वर्षो से मांग की तुलना में लगातार कम होता रहा है । दालों का उत्पादन २०१४-१५ में १९२.४ लाख टन से कम होकर १७२.० लाख टन रह गया । 
इसी के चलते अरहर की कीमतें एक साल पहले के ७५ रूपये प्रति किलोग्राम से उछल कर १९९ रूपये प्रति किलोग्राम तक पहंुच गई और अभी भी ये कीमतें नियंत्रण के बाहर है । न केवल अरहर, उड़द की कीमतें बल्कि खुदरा बाजार में लगभग सभी प्रमुख दालों की कीमतें वर्तमान में लगभग १४० रूपये प्रति किलोग्राम के आसपास बनी हुई है । ऐसी स्थिति को देखते हुए सरकारों को दालों की उपलब्धता के लिए बार-बार बाजार में हस्तक्षेप करने को बाध्य होना पड़ा है । 
किसानों के लिए एक अच्छी खबर यह रही कि पिछले वर्ष सरकार ने प्रमुख दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में २७५ रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की । इसके अलावा दालोंके बढ़ते भावों की स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने ५०० करोड़ रूपये की एक संचित राशि के साथ एक मूल्य स्थिरीकरण कोश की स्थापना की है । 
असल में विभिन्न पोषक तत्वों की एक निश्चित मात्रा हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती है । प्रोटीन भी हमारे स्वास्थ्य के लिए एक अहम तत्व है जिसके स्त्रोतों में दालें, सोयाबीन, दूध, मांस आदि शामिल  है । लेकिन पानी की कम आवश्यकता एवं कम कार्बन फुटप्रिंट के कारण दालों को आहार में शामिल करना धारणीय विकास और प्रकृति दोनों के लिए लाभकारी   होगा । इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा २०१६ को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है । २३ जनवरी २०१६ को तुर्की में आयोजित कार्यक्रम में इसका औपचारिक शुभारंभ किया गया था । 

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