गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

जीवन शैली
बढ़ता शोर प्रदूषण
प्रो. कृष्णकुमार द्विवेदी
वर्तमान समय में तीव्र नगरीकरण तथा आधुनिक जीवनशैली के कारण ध्वनि प्रदूषण निरन्तर दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । शोर प्रदूषण मुख्य रूप से नगरों व महानगरों की प्रमुख समस्या बनती जा रही है । 
वस्तुत: ध्वनि जब एक सीमा से अधिक हो जाती है तो वह मानव तथा अन्य जीव जन्तुआें के लिए घातक हो जाती है, तब वही ध्वनि या शोर प्रदूषण कहलाती है । सामान्यत: ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है जो घर्षण और संघटय से उत्पन्न होती है । हमारे कान इनमें से कुछ विशिष्ट आवृत्ति की तरंगों को ही सुन पाते है । कानों द्वारा ग्राहय तरंगों को ध्वनि कहा जाता है । ध्वनि की आवृत्ति मापने की इकाई हट्र्ज होती है । आर्वतकाल के व्यत्क्रम को आवृत्ति कहते है । आवृर्त्ति के आधार पर ध्वनि का वर्गीकरण होता है । वैसे ध्वनि ऊर्जा का ही एक रूप है क्योंकि ध्वनि की निर्भरता गति पर होती है । गति ऊर्जा से संबंधित है । 
सामान्य रूप से ३० डेसिवल से अधिक तीव्रता वाली ध्वनियां शोर कहलाती है । वैसे भी सभी ध्वनियां शोर प्रदूषण के अन्तर्गत आती है जो मन को अशांत या बेचैन करती है । वास्तविकता में पर्यावरण में उत्पन्न होने वाली कोई भी अवांछित आवाज जिसका जीवों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शोर प्रदूषण है । 
दैनिक जीवन में हमें विभिन्न तीव्रता वाली ध्वनियां सुनाई देती है जिनका ध्वनि स्तर १० से लेकर १०० डेसीबल तक होता है । वैज्ञानिकों ने मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए अधिकतम ध्वनिसीमा निर्धारित की है जो विभिन्न देशों में ७५ से लेकर ८५ डेसीबल तक है । 
उल्लेखनीय है कि आयु में वृद्धि के साथ शोर प्रदूषण की सहनशीलता में भी अंतर आता है । भारतीय मानक संस्थान ने विभिन्न क्षेत्रों के लिये अधिकतम ध्वनि सीमा ५० से ७० डेसीबल निर्धारित की गयी है । इससे अधिक ध्वनि होने पर शोर प्रदूषण मानी जाती है । शोर प्रदूषण के कारण या स्त्रोत दो वर्गो में विभाजित है - प्रथम प्राकृतिक स्त्रोत इसके अन्तर्गत मेधों की गड़गड़ाहट बिजली की कड़कडाहट, तुफानी, चक्रवात, ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, भूस्खलन तथा तीव्रगति से गिरते जल आते है । इनका प्रभाव सीमित क्षेत्र में तथा सीमित समय के लिये होता है इसीलिए ये हानिकारक नहीं होते है क्योंकि ये अल्पकारिक होने के कारण ध्वनि की तीव्रता अधिक होते हुए भी इससे हानि बहुत कम होती है । 
द्वितीय ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत मानवीय स्त्रोत / कारक होते जिनमें प्रमुख रूप से उद्योगों में प्रयुक्त मशीनों से उत्पन्न ध्वनि, परिवहन के साधनों में बस, ट्रक, कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर, वायुयान आदि वाहनों की ध्वनियों के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों में लाउड स्पीकर से उत्पन्न तीव्र ध्वनि से उत्पन्न प्रदूषण का दुष्प्रभाव अत्यधिक पड़ता है । 
अत्यधिक शोर का सर्वाधिक प्रत्यक्ष हानिकारक प्रभाव कानों पर ही पड़ता है और श्रवण शक्ति स्थायी या अस्थायी तौर पर समाप्त् हो जाती है । कई बार तो अत्यधिक शोर से कान के परदे तक फट जाते है । १८० डेसीबल की तीव्रता वाले शोर के संपर्क मेंरहने पर तो मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है । शोर प्रदूषण से रक्त दाब बढ़ता है । ह्दय की धड़कन तीव्र होती है । पाचक रसों  के निर्माण में कमी आती है । आंखों की पुतलियों का प्रसार होने लगता   है । 
तीव्र शोर से शारीरिक स्वास्थ्य की अपेक्षा मानसिक स्वास्थ्य को भी अत्यधिक हानि पहुंचती है । तीव्र शोर से नींद में बाधा पड़ती है । अनिद्रा से मानवीय कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । व्यक्ति चिड़चिड़ा, बैचेनु, क्रोधी, क्लांत तथा तनावग्रस्त हो जाता है और तो ओर अत्यधिक शोर के कारण न्यूरोटिक व्यक्ति तो पागल तक हो जाता है । शोर प्रदूषण का शिशुआें तथा स्त्रियों पर अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ता है, कई बार तो उच्च् वेग वाली ध्वनि से तो स्त्रियों का गर्भपात भी हो जाता है अथवा गर्भस्थ शिशु के ह्दय की धड़कन बंद हो जाती तथा शिशु के सम्पूर्ण आचार व्यवहार में ही परिवर्तन आ सकता है । बच्च्ें भुलक्कड़ प्रवृत्ति के हो जाते है । 
शोर प्रदूषण से मानव के साथ-साथ जीव जन्तु एवं वनस्पतियों पर भी अत्यधिक हानिकारक प्रभाव देखा जाता है । लगातार होने वाले शोर के कारण पशु-पक्षी अपने आवास छोड़कर अन्यत्र चले जाते    है । खनन क्षेत्रों तथा सघन सड़क मार्गो के निकट वन क्षेत्रों से वन्य जीव पलायन कर जाते है ।  तीव्र ध्वनि तरंगों के कारण पक्षीगण अण्डे देना बंद कर देते है । तीव्र ध्वनि से अनेक सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते है जिससे अपशिष्ट पदार्थो के अपघटन में बाधा पड़ती है । शोर प्रदूषण के कारण पालतू पशुआें पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जैसे उनका अशांत हो जाना, दूध की मात्रा में कमी आना । 
इसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण से वनस्पति का विकास ही अवरूद्ध हो जाता, पेड़-पौधों के फल-फूल मुरझा जाते है, कई बार तो सूख भी जाते    है । तीव्रतर ध्वनि से भवनों की खिड़कियों के शीशे टूट जाते है, छतें हिल जाती है और उनमें दरारें पड़ जाती है । खनन क्षेत्रों में होने वाले विस्फोटों ने तो कई बार बहुमंजिलें इमारते धराशायी हो जाती है । जेट विमानों से उत्पन्न तीव्र ध्वनितरंगे से तो उंची इमारते धराशायी हो जाती   है । 
जेट विमानों से उत्पन्न तीव्र ध्वनितरंगें से तो उंची इमारतों, बांध, पुलों आदि में दरारें पड़ जाती है । परमाणु विस्फोटों के कारण उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण का दुष्प्रभाव तो सैकड़ों किलोमीटर दूरी तक होता है जिससे स्थायी एवं सुदृढ़ अधो-संरचनाएं हिल जाती है और उनके धराशायी होने का खतरा भी बढ़ जाता है । पर्वतीय, हिम एवं पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टाने के खिसकने, हिम स्त्राव तथा भूस्खलन की घटनायेंबढ़ने लग जाती है । 
शोर प्रदूषण के व्यापक दुष्प्रभाव को देखते हुए उन पर नियंत्रण के उपाय भी किये जाने आवश्यक हो गये है । प्रमुख रूप से शोर प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कलकारखानों की स्थापना बस्तियों, वन, अभ्यारण्य एवं पर्वतीय क्षेत्रों से बहुत दूर की जानी चाहिए । औघोगिक भवनों में ध्वनि अवशोषक यंत्रों के साथ सम्पूर्ण परिसर में पर्याप्त् सघन वृक्षारोपण करना चाहिए । इसी प्रकार वाहनों के उचित रखरखाव के साथ-साथ तीव्र ध्वनि वाले हार्न पर प्रतिबंध के साथ उन्नत तकनीक वाले साईलेंसर का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाए । 
खनन क्षेत्रों, हवाई अड्डों से कम से कम २० किलोमीटर दूर की परिधि में बस्तियां नहीं बसानी  चाहिए । बहुमंजिली इमारतों के निर्माण में ध्वनि अवशोषक एकोस्टिक टाईल्स का प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना    चाहिए । पर्वतीय, वन एवं खनन क्षेत्रों में विस्फोटकों का प्रयोग बंद होना चाहिए । धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक आयोजनों में उच्च् शक्ति के ध्वनि विस्तारक, डी.जे. आदि के प्रयोग को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए । शोर प्रदूषण के निवारण में सघन वृक्षावली अत्यन्त उपयोगी होती है । सघन वृक्षावली उच्च् ध्वनि तरंगों को सहजता से अवशोषित करने के साथ-साथ उन्हें वायुमण्डल में विक्षेपित करने के भी सहायक होती है । 
अत: नगरों, राजमार्गो, औघोगिक बस्तियों को वृक्षों की हरति पटि्ट्यों से पूर्ण आबद्ध करना    चाहिए । बढ़ता शोर प्रदूषण मानव, जीव जंतु, वनस्पतियों आदि के स्वास्थ्य, कार्यक्षमता और क्रियशीलता के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूलन और पर्यासंतुलन के लिए भी अत्यन्त हानिकारक है इस पर नियंत्रण किया जाना अब आवश्यक हो गया है इसके लिए जन-जन को जागरूक भी होना होगा । 

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