गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

जीव जगत
जैव विकास सीधी रेखा में नहीं चलता 
डॉ. अरविन्द गुप्त्े 
जीवशास्त्र की पाठ्यपुस्तकों में प्रजाति (स्पीशीज) की परिभाषा यह दी जाती है कि एक प्रजाति के नर और मादा ही आपस में प्रजनन कर सकते हैं, दो अलग-अलग प्रजातियों के नहीं कर सकते । जीवशास्त्र की एक अन्य अवधारणा 
यह है कि जैव विकास के दौरान मौजूदा प्रजातियों से नई प्रजातियां बनती हैं, किन्तु इस प्रक्रिया में हजारों लाखों वर्ष लग जाते हैं और यह प्रक्रियासौ-दो वर्षो में नहीं हो जाती । 
कनाड़ा में एक ऐसा रोचक उदाहरण सामने आया है जिसने इन दोनों अवधारणाआें को चुनौती दी    है । इस देश का ओन्टारिओ प्रदेश घने जंगलों से ढंका होता था । इस प्रदेश के दक्षिणी भाग में बाहर से आकर लोग बस गए और खेती के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई हुई । 
इसके फलस्वरूप इन जंगलोंमें रहने वाले भेड़ियों के सामने दोहरा संकट खड़ा हो गया । एक तो उनके प्राकृतिक आवास नष्ट होने लगे और दूसरे इस क्षेत्र में बसने वाले किसानों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया ।
इसके विपरीत, इसी क्षेत्र में रहने वाली कोयोटी नामक भेड़ियों से मिलती-जुलती प्रजाति के लिए यह फायदेमंद साबित हुआ । उन्होंने न केवलभेड़ियो के खाली स्थानों में फैलना शुरू किया, बल्कि मनुष्य की बस्तियों में घुसकर पालतु पशुआें का शिकार करना भी शुरू कर दिया । मांसाहारी होने के अलावा फल, सब्जियां, कूडे में पड़ी जूठन आदि भी खा लेते हैं । वे आकार में भेड़ियों से छोटे होते हैं और इनका व्यवहार लोमड़ियों से काफी मिलता-जुलता   है । 
मनुष्य के साथ कुत्ते भी इस क्षेत्र में आ गए । इस प्रकार, इस क्षेत्र में केनिस जीनस (वंश) की तीन प्रजातियां रहने लगी । किन्तु भेडियों के सामने अस्तित्व बचाने के अलावा एक और संकट खड़ा हो गया - यह था मादाआें की कमी । लगभग सौ दो सौ वर्षो पहले इसका हल उन्होंने यह निकाला कि नर भेड़ियों ने कोयोटी और कुत्तों की मादाआें के साथ प्रजनन करना शुरू कर दिया । 
जीव जगत की यह विशेषता है कि इसमें भौतिक शास्त्र या रसायन शास्त्र के समान कठोर नियम नहीं होते । आप कोई भी नियम बनाइए और प्राय: उसका अपवाद निकल आता है । यही हाल प्रजाति की परिभाषा का है । पौधों में तो विभिन्न प्रजातियों का आपस में प्रजनन आम बात है, किन्तु जन्तुआें में भी इसके अपवाद मिल जाते हैं । खच्च्र का उदाहरण तो सबको पता है जो दो अलग-अलग प्रजातियों - घोड़े और गधे के आपस में प्रजनन करने से बनता है । ऐसी संतान को वर्णसंकर (हाइब्रिड) कहते हैं । 
किन्तु आम तौर पर जंतुआें के वर्णसंकर बंध्य होते हैं यानी वे प्रजनन नहीं कर सकते, जैसे    खच्च्र । किन्तु भेडिए, कुत्तेऔर कोयोटी के डीएनए के मिश्रण से बना यह जन्तु अपवाद निकला और प्रजनन करने की क्षमता होने के कारण उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में इतनी तेजी से फैला कि अब उसकी संख्या लाखों में पहुंच गई   है । इस जंतु को कोयवुल्फ नाम दिया गया है । कभी-कभी इसे वोयोटी भी कहा जाता है । कोयवुल्फ में भेडिए का बड़ा आकार और साथ में अधिक मजबूत जबड़े और पेशियां होती हैं और यह बहुत तेज भाग सकता है । अत: इनका झंुड बड़े हिरन का भी शिकार कर सकता है । यह कोयोटी के समान खुले में शिकार कर सकता है और भेड़िए के समान घने जंगल में भी । 
अमेरिका के पेपरडाइन विश्वविघालय के प्रोफेसर हावीएर मोन्जो ने कोयवुल्फ का आनुवंशिक विश्लेषण करके यह पाया कि इस जंतु का अधिकांश डीएनए कोयोटी का होता है जबकि दस प्रतिशत कुत्ते का तथा एक-चौथाई भेड़िए का होता है । इस मिश्रण के कारण कोयवुल्फ को कई लाभदायक गण मिल गए  हैं । उनमें कोयोटी की चालाकी और शाकाहारी और मांसाहारी दोनो प्रकार के भोजन खा सकने की क्षमता होती है । इसी प्रकार, मनुष्य के समीप रह सकने और ध्वनि प्रदूषण सह सकने के कुत्ते के गुण भी आ गए है । भेडिए आम तौर पर मनुष्य से दूर रहना पसंद करते हैं और उनमें शोर सहने की क्षमता भी कम होती है । इन गुणों के कारण कोयवुल्फ बड़े शहरों में भी घुसपैठ कर लेते हैं । वे यह भी सीख गए हैं कि सड़क पार करते समय दोनों तरफ देखना चाहिए । 
अमेरिका के नॉर्थ केरोलिना स्टेट विश्वविघालय के डॉ. रोलां केज का मानना है कि नई प्रजाति बनने का यह अनोखा नाटक हमारी आंखों के सामने घटित हो रहा है, यद्यपि कोयवुल्फ को एक नई प्रजाति माना जाए या नहीं इसके बारे में अभी विवाद है । प्रजाति की रूढ़िगत परिभाषा के अनुसार भिन्न प्रजातियां आपस में प्रजनन नहीं कर सकती, किन्तु जिस प्रकार से कोयवुल्फ कुत्तों और कोयोटी के साथ प्रजनन कर रहे हैं, उन्हें अलग प्रजाति नीं माना जा सकता । 
इसके विपरीत, यदि भेड़ियों ने कोयोटी और कुत्तों के साथ प्रजनन करना शुरू किया तो क्या इन तीनों को एक ही प्रजाति माना जाए ? इस सबके चलते फिलहाल कोयवुल्फ को एक अलग प्रजाति का नाम नहीं दिया गया है - इसे लरळिी र्श्रीिीर्ी ु लरळिी श्ररींीरिी कहा जाता है । इस उदाहरण से यह प्रमाणित होता है कि जैव विकास पूरी तरह सख्त नियमों से बंधी एकदम सीधी सरल प्रक्रियानहीं होती । 

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