शुक्रवार, 18 मई 2018

विशेष लेख
ज्योतिष बनाम विज्ञान
प्रो. ईश्वरचन्द्र शुक्ल/विशाल कुमार सिंह
विज्ञान क्या है, इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहींहै । विज्ञान की कोई सर्वसम्मत परिभाषा नहीं है । कैब्रिज डिक्शनरी के अनुसार भौतिक जगत की संरचना एवं व्यवहार का प्रयोगोंऔर मापन के द्वारा क्रमबद्ध अध्ययन करना, प्राप्त् ज्ञान, परिणामों की आख्या करने के लिए सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना विज्ञान कहलाता है ।
प्राचीनकाल में हमारे पूर्वजों ने ज्योतिष विज्ञान का प्रतिपादन भी इसी पद्धति से सम्भवत: किया होगा । ज्योतिष में किसी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्तियों, जीवन की घटनाआें तथा जन्म के समय ग्रहों की स्थितियों से जुड़े तथ्यों का संग्रह किया जाता है । पर्याप्त् तथ्यों का अध्ययन, वर्गीकरण करने के पश्चात् प्राप्त् तथ्यों का संग्रह किया जाता है । जैसे ग्रहों की स्थितिविन्यास (योग) के अनुरुप ही फल प्राप्त् होता है । इन नियमों का पुन: प्रयोग करके ज्योतिषी किसी व्यक्ति की मानसिक प्रवृत्ति या जीवन में घटित होने वाली घटनाआें की संभावना व्यक्त करता है । 
यह किसी भी मान्य आधुनिक विज्ञान की तरह सांख्यिकी पर आधारित प्रणाली जैसी ही है । जैसे भौतिक विज्ञान में ताप और दाब के आधार पर अणुआेंके व्यवहार की भविष्यवाणी की जाती है, ठीक उसी प्रकार ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों प्रवृत्तियों के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है ।
प्रख्यात मनोवैज्ञानिक सीजे जूंग ने प्राच्य विद्याआें का कई बार उपयोग मनोरोगों की पहचान के लिए करते थे । इनकी सत्यता और व्यवहारिक उपयोगिता से प्रभावित होकर जुंग ने कहा था कि तीन सौ वर्षोंा से विश्वविद्यालयों के द्वारा ज्योतिष के लिए बंद है , लेकिन आने वाले तीस वर्षोमें ज्योतिष इन बंद दरवाजो को तोड़कर विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाकर रहेगा । जुग की भविष्यवाणी अब सच साबित हो रही है । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कई विश्वविद्यालयों में ज्योतिष शिक्षा प्रारंभ करने की घोषणा की है ।
रुस में चेजोवस्की ने ७०० वर्षोंा के इतिहास का अध्ययन करके कहा था कि जब जब सूर्य पर महाविस्फोट होते है, पृथ्वी पर युद्ध और क्रांतियों का सूत्रपात होता है । स्टालिने ने चेजोवस्की को जेल में बंद कर दिया, क्योंकि कार्ल मार्क्स और कम्युनिस्टों का विचार है कि पृथ्वी पर जो क्रान्तियाँ होती है उनका मूल कारण एक छद्म विज्ञान है इस संदर्भ में महर्षि अरविन्द ने कहा था, `आज तक वस्तुत: वैज्ञानिक प्रणाली से ज्योतिष का झूठा विज्ञान किसी ने सिद्ध नहीं किया है ।'
आकाश में घूमते ग्रह धरती के जीवन पर विशेष प्रकार का प्रभाव डालते है, इसकी व्याख्या आधुनिक विज्ञान की अवधारणा के अनुसार की जा सकती है । भौतिक विज्ञान के अनुसार किसी समय व स्थान पर तीन प्रकार का प्रभाव पड़ता है, विकिरण प्रभाव, गुरुत्वाकर्षण प्रभाव और चुंबकीय प्रभाव । इन तीनों प्रभावों को हम एक साथ `कॉस्मिक प्रभाव' कह सकते है । किसी व्यक्ति के जन्म समय पर `कॉस्मिक प्रभाव' की उसके जीवन मेंमहत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसका अध्ययन अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों के प्राफेसरों ने किया था, जिनका ज्योतिष से कुछ लेना देना नही था । येल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हटिंगटन ने जन्म के समय की ऋतु और मनुष्य की कार्यक्षमता मेंअन्तर्सम्बन्ध की खोज की । १९५३ में चार्ल्स ने जन्म के समय और मानसिक प्रवृत्तियों नामक शोधपत्र को इंग्लैण्ड की प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका `नेचर' में प्रकाशित करवाया था । १९७३ में हारे, प्राइस और स्लेटर ने भी जन्म समय और मानसिक रोग नामक शोधपत्र के `नेचर' में छपवाया था । इसी विषय पर पार्कर और नेल्सन ने ब्रिटिस जर्नल ऑफ साइकियाट्री में अपना शोधपत्र प्रकाशित करवाया ।
चंद्रमा का धरती पर गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल है कि समुद्र में ज्वार भाटे आते है । मनुष्य के शरीर मेंलगभग ७० प्रतिशत द्रव है, जो कुछ कारणोंसे नमकीन है । अत: यह सामान्य ज्ञान की बात है कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव मनुष्य के शरीर में उपस्थित द्रव पर भी पड़ेगा । इस दिशा में भी कई वैज्ञानिकों ने खोजबीन की है, जिनमें प्रमुख है, डी.एम. लेलिनफील्ड जिनका शोधपत्र `चंद्रमा का मानसिक रोगों पर प्रभाव'१९६९ में अमेरिकन जर्नल ऑफ साइकियाट्री में प्रकाशित हुआ था । यह पाया गया कि पागलपन का उन्माद, मिरगी के दौरे, आपराधिक एवं सड़क दुर्घटनाएँ पूर्णिमा के आसपास बढ़ जाती है ।
ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव है, यह तो ज्ञात है, किन्तु यह प्रभाव किस क्रियाविधि से पड़ता है, अभी इस दिशा में वैज्ञानिकों ने कोई खोजबीन नहीं की है । एक प्रयास ब्रिटेन के एस्ट्रोनॉमी स्कूल के प्रिंसिपल पर्सी सेमोर ने अपनी पुस्तक एस्ट्रोलॉजी द एविडेंस ऑफ साइंस में किया है । संभव है इसमें प्रकृतिके गहरे रहस्य काम कर रहे हो, यह अभी तक विज्ञान की परिधि में या वैज्ञानिकों के संज्ञान मेंनही हो सके है ।
कारण और प्रभाव में कई बार प्रत्यक्ष विधि से संबंध दर्शाना संभव नहीं होता है । `कॉस्मिक प्रभाव' (ग्रहों से आ रहे विकिरण, गुरुत्वाकर्षण बल, चुंबकीय बल आदि) पृथ्वी पर आते है । मनुष्य के शरीर के संवेदक उसे ग्रहण कर मस्तिष्क तक ले जाते है, उसका प्रभाव चेतन मन पर पड़ता है, फिर मन में विचार उत्पन्न होते है । जैसे विचार उत्पन्न होते है वैसे ही कार्य के लिए मनुष्य तत्पर होता है । इस संपूर्ण प्रक्रिया को किसी वैज्ञानिक उपकरण से दर्शाना अभी संभव हुआ है ।
आज विज्ञान के पास विश्व के प्रत्येक कैसे और क्योंका उत्तर नहीं है । खरबों रुपये जीनोम परियोजना पर व्यय करने के बाद वैज्ञानिक मनुष्य के संपूर्ण जीनों को पहचानने में सफल हो गए है । अब ये बता सकते है कि किस जीन की खराबी से कौन सा रोग उत्पन्न होता है । जब कि एक कुशलज्योतिष इसे सरलता से व्यक्त कर सकता है, यदि अष्टमेश का प्रभाव लग्न या लग्नेश पर हो तो जेनेटिक दोष के कारण रोग उत्पन्न होते है ।
ज्योतिष पर आधारित भविष्य -वाणियोंका आरम्भ बहुत पहले हो चुका था और इसके प्रचार-प्रसार मेंकतिपय प्रख्यात वैज्ञानिकों के नाम भी जुड़े हुए है । किन्तु जैसा कि आगे वर्णन किया गया है, विज्ञान की किसी अन्य शाखा के विरुद्ध इनमेंनये तथ्यों एवं गवेषणाआें को बहुधा स्वीकार नहीं किया गया है । तारों के सापेक्ष सूर्य, चन्द्र, बुद्ध, मंगल, ब्रहस्पति एवं शनि की गतियों को ध्यान में रखते हुए ग्रीसवासियों ने इन्हे `प्लैनेट' कहा जिसका शाब्दिक अर्थ `वाण्डरर' अथवा `घुमक्कड़' है ।
ग्रीसवासियों से पूर्व हेबू्र लोगों ने इनके आधार पर सात दिन वाले सप्तह का निर्माण किया और दिनों को नाम दिया । पृथ्वी से दिखायी पड़ने वाली इनकी एवं `राहु केतु' की आभासी गतियों पर फलित की भविष्यवाणियाँ आधारित है अर्थात भू-केन्द्रित है और इस परिकल्पना पर आधारित है कि ब्रह्माण्ड की समस्त वस्तुएँ पृथ्वी के चारों तरफ घूमती है । इस प्रकार एक अन्तर्निहित विरोधाभास के कारण फलित ज्योतिष में वक्र गतियों की बात की जाती है जो वस्तुत: पृथ्वी से दिखाई पड़ने वाली छद्मपूर्ण  गतियाँ है । खगोल विज्ञान की कोई भी मामूली पुस्तक इस तथ्य की अच्छी तरह व्याख्या करती है । यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य है कि राहु तथा केतु को प्लैनेट (ग्रह) नहीं कहा गया है । कोपरनिकस के सूर्य -केन्द्रित सिद्धान्त में, जिस पूर्ण वैज्ञानिक आधार एवं समर्थन प्राप्त् है, सूर्य के चारो ओर सभी ग्रह परिक्रमा करते है । सूर्य ग्रह नहीं है, पृथ्वी की परिक्रमाकरता हुआ चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और पृथ्वी ग्रह है । कालान्तर में अरुण, वरुण और यम नामक ग्रह खोजे गये । इस प्रकार आकाश में नौ ग्रह है जिनके नाम सूर्य से बढ़ती हुई दूरी के क्रम में बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, ब्रहस्पति, शनि, अरुण, वरुण तथा यम है ।
फलित ज्योतिषियोंके भयोत्पादक भविष्यवाणियाँ, जो ग्रहों के आकाश में एक स्थान पर आभासी रुप से आने पर आधारित होती है, अनेक बार प्रयोगशालाआें एवं नक्षत्रशालाआें में कार्य कर रहे वैज्ञानिकों द्वारा गलत प्रमाणित की गई है । यद्यपि कई बार प्रलयकारी घटनाआें की भविष्यवाणियाँ हुई है लेकिन विपुल सम्पदा से भरी हुई इस पृथ्वी पर मानव समेत अनेक जीवधारी अभी तक विद्यमान है । यह अक्सर कहा जाता है कि फलितज्योतिषी के पंचांगोंमें चूंकि खगोलीय पिण्ड जैसे सूर्य और चन्द्रमा की स्थितियाँ सही-सही दी रहती है अत: भविष्यवाणियों का वैज्ञानिक आधार है ।
ज्योतिष एक विद्या है इसमें ज्योतियों का विज्ञान होता है । ज्योतियाँ दो प्रकार की है । १. स्वत: ज्योति २. परत: ज्योति । स्वत: ज्योति सूर्य आदि, परत: ज्योति पृथ्वी चन्द्र आदि है । इनकी उत्पत्ति होती है । उत्पत्ति है तो इनका प्रलय भी होता है । इनकी उत्पत्ति कौन करता है, किससे करता है, क्यों करता है, इनका प्रयोजन क्या है, इनकी स्थिति, गति परिणाम क्या है इत्यादि का विज्ञान बहुत विस्तृत, मनोरंजक एवं उपादेय है । यह विज्ञान वेदों में सर्वत्र है । ऐसा प्रतीत होता है कि वेद ज्योतिष के ग्रन्थ हो । इसको जानने से मानव जीवन में विकास होता है । इस विद्या से जहाँ मानव को लौकिक सुख प्राप्त् होता है वहाँ आध्यात्मिक भाव भी उदित होते है । इसको न जानने से जहाँ मानव लौकिक सुखों से वंचित होता है वहां अनेक भ्रान्तियों एवं अन्धविश्वासों से ग्रस्त रहता है ।
आज भी पशु- पक्षी, कीट पतंगों के माध्यम से सूक्ष्मदशियों के द्वारा अनेक भविष्यवाणियाँ की जाती थी जो शत प्रतिशत सत्य होती है । भैस, गाय, अश्व, बैल के बच्चे को देखकर यह बता देना कि बुद्धिमान, दुधारु, तेजधावक तथा कृषि कार्य के लिए पूर्ण योग्य होगा - इनके विशेषज्ञों द्वारा की गई इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ भी ९० प्रतिशत से अधिक सत्य सिद्ध होती दृष्टिगोचर होती है । ग्रह नक्षत्रविदों के द्वारा मनुष्य, समाज, राष्ट्र के सम्बन्ध में की जाने वाली भविष्यवाणियों का आधार भी कुछ इसी प्रकार का होता है । ज्योतिष शास्त्र के विरोधियों द्वारा यह आपत्ति की जाती है कि ये भविष्य-वाणियाँ असत्य भी होती है, किन्तु यही बात चिकित्साशास्त्र के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है । 
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