शुक्रवार, 18 मई 2018

विज्ञान हमारे आसपास
कृत्रिम बुद्धि गढ़ेगी नई दुनिया
मनीष श्रीवास्तव
हाल ही मे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि उन्होने एक ऐसे ऐप का निर्माण किया है जिसमेंकृत्रिम बुद्धि के ज़रिए वे अपने घर के सारे जरुरी काम कर सकते है । इसे उन्होने जारविस नाम दिया है । उन्हेंजारविस को सिर्फ निर्देश देने होते है और वह उनके बताए काम को पल भर में कर देता है ।
इसे कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र मेंमहत्वपूर्ण सफलता कहा जा रहा है । हालांकि इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने इस क्षैत्र में कई महत्वपूर्ण प्रयोग करके दिखाए थे लेकिन इस बार जुकरबर्ग ने कृत्रिम बुद्धि के ज़रिए हमारे भविष्य में आने वाले बदलावों से रु-ब-रु करवाया है ।
आज का पूरा परिदृश्य तकनीकी क्रांति से होकर गुजर रहा है । कई मानवीय कार्योंा में मशीनों यंत्रों का उपयोग हो रहा है जो शारीरिक और मानसिक, दोनों कार्यो को बेहद आसानी से सम्पन्न कर रहे है । इन मशीनों को मानव निर्देशों के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है । ये मशीने इस तरह से बनाई जाती है कि वे किसी कार्य विशेष को ही सम्पन्न कर सकती है । मशीन स्वयं के दिमाग से काई निर्णय लेने मेंसक्षम नहीं होती है ।
इसी अवस्था को और विकसित करते हुए वैज्ञानिक मशीनों को स्व-निर्णय लेने वाली स्थिति में पहुंचाने के प्रयास कर रहे है , जिसके लिए आवश्यकता है कृत्रिम बुद्धि की । वैज्ञानिक इस दिशा में कुछ हद तक कामयाब भी हुए है । कृत्रिम बुद्धि मानव सभ्यता के भविष्य को पूरी तरह बदलने की क्षमता रखती है ।
कृत्रिम बुद्धि का इतिहास
यूनान के कई धर्मग्रंथोंमें बुद्धिमान मशीनों के संदर्भ मिलते है । इसके अलावा मानवीय कार्य करने वाली सबसे पहली मशीन चीन मेंउपयोग किए जाने वाले केल्क्युलेटर को माना जाता है । सैद्धांतिक रुप से माना जाता है कि कृत्रिम बुद्धि का आरंभ १९५० के दशक से हुआ था । सन् १९५५ में जॉन मेककार्थी ने सबसे पहले कृत्रिम बुद्धि शब्द दिया था । कृत्रिम बुद्धि के महत्व को ठीक से १९७० के दशक मेंपहचाना गया ।
जापान ऐसा देश रहा जिसने सबसे पहले इस ओर पहल की । उन्होनें सन् १९८१ में जनरेशन नाम से एक योजना की शुरुआत की थी । इसमें सुपर कंप्यूटर के विकास के लिए दस वर्षीय कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की गई थी । जापान के बाद अन्य देशोंने भी इस ओर ध्यान दिया । ब्रिटेन ने इसके लिए एल्वी नाम का एक प्रोजेक्ट बनाया । युरोपीय संघ के देशों ने भी एक साथ मिलकर एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी जिसे एस्प्रिट नाम दिया गया ।
इसके बाद १९८३ मेंकुछ प्रायवेट संस्थाआेंने मिलकर कृत्रिम बुद्धि पर लागू होने वाली उन्नत तकनीकोंजैसे वीएलएसआई का विकास करने के लिए एक संघ की स्थापना की । इस संघ को माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्प्यूटर टेक्नालॉजी के नाम से जाना गया । बाद में कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में हुई आशातीत प्रगति और बेहतर परिणामों को देखते हुए कई बड़ी कंपनियों, जैसे आईबीएम, डीईसी, एटी एण्ड टी ने भी अपने अपने अनुसंधान कार्यक्रमोंकी शुरुआत की । धीरे-धीरे हुए अनुसंधानों से इस क्षेत्र में कई अच्छे परिणाम प्राप्त् होते गए । विशेषकर जापान ने ऐसे रोबोट बनाने में सफलता प्राप्त् कर ली जो घर के कई काम स्वयं कर सकता है ।
कृत्रिम बुद्धि क्या है ?
कृत्रिम बुद्धि को कई विशेषज्ञों ने अपनी तरह से परिभाषित किया है । हबर्ट साइमन के अनुसार `प्रोग्रामोंको बुद्धिमान तब माना जाता है जब वे ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करें जैसा व्यवहार मनुष्यों द्वारा किए जाने पर उन्हें बुद्धिमतापूर्ण माना जाएगा' एलेन रिच और केविन नाइट के अनुसार `कृत्रिम बुद्धि इस बात का अध्ययन है कि कंप्यूटर को उन कार्योंा को कर पाने में किस प्रकार सक्षम बनाया जाए जिन्हें इंसान फिलहाल बेहतर ढंग से करते है ।' पैट्रिक विस्टने के अनुसार `कृत्रिम बुद्धि उन विचारोंका अध्ययन है जो कंप्यूटर को बुद्धिमान बनने की क्षमता प्रदान करते है ।'
सरल शब्दों में कहा जाए तो कृत्रिम बुद्धि कंप्यूटर साइंस की एक शाखा है जिसमेंमशीन को कृत्रिम बुद्धि देने का काम किया जाता है । रोबोट सहित अन्य मशीने इसी श्रेणी में आती है । कृत्रिम बुद्धि का उद्देश्य यह है कि मशीन खुद तय करे कि उसकी अगली गतिविधि क्या होगी ।
विशेषज्ञों के अनुसार कृत्रिम बुद्धि के कुछ बुनियादी विशेषताएं होनी चाहिए । पहली, मनुष्यों की तरह विचार करने या कार्य करने में सक्षम हो । दूसरी, तार्किक रुप से विचार करने या कार्य करने में सक्षम हो । समय के साथ कृत्रिम बुद्धि से बनी मशीनोंमें वृद्धि होती गई । इसलिए इन्हें विशेषज्ञों ने तीन श्रेणियों में विभाजित कर दिया है -
१. दुर्बल कृत्रिम बुद्धि - सिर्फ एक ही प्रकार के कार्य को अच्छे से करने में सक्षम होती है और मनुष्यों द्वारा भरी गई जानकारी के आधार पर कार्य करने तक सीमित होती है ।
२. सशक्त कृत्रिम बुद्धि - ऐसी मशीन और मानव मस्तिष्क लगभग एक जैसी बुद्धि रखते है । जो काम मनुष्य कर रहा है वो हर काम यदि रोबोट या मशीन करने लगे तो उस सशक्त एआई की श्रेणी में रखा जाता है ।
३. सिंगुलैरिटी - इस श्रेणी में मशीन स्वयं का निर्माण करने में सक्षम हो जाती है । वे स्वयं के निर्णय के अनुसार कुछ नया आविष्कार भी कर सकती है ।
कृत्रिम बुद्धि का उपयोग
आज इस क्षेत्र में क्रमिक विकास करते हुए लगभग १०० करोड़ डॉलर का बाज़ार तैयार हो गया है । विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष २०२५ तक यह बाज़ार ३५,००० करोड़ डॉलर का हो जाएगा । आज कई क्षेत्रों में इसके माध्यम से कार्य किए जा रहे है । जैसे - 
* विडियों गेम्स इस तरह से बनाए जा रहे है कि कंप्यूटर अपने प्रतिस्पर्धीइंसान के साथ स्वयं की सूझबूझ से खेल सके । इसका सबसे अच्छा उदाहरण शतरंज खेलने वाला कंप्यूटर है । इसे मानव मस्तिष्क की तरह हर अगली चाल सोचने के लिए प्रोग्राम किया गया है । यह प्रयोग इतना सफल रहा है कि मई १९९७ में आईबीएम का एक कंप्यूटर विश्व में सबसे नामी खिलाड़ी गैरी कास्परोव को हरा चुका है ।
* किसी दुर्घटना में अपने शरीर के अंगोंको खो चुके लोगोंके लिए कृत्रिम अंगोंका निर्माण किया जा रहा है । ये कृत्रिम अंग दिमाग मेंलगे सेंसर से संचालित होते है ।
* घरेलू या अन्य कार्योंा को करने के लिए रोबोट तैयार किए जा रहे है । इन्हें इस तरह से प्रोग्राम किया जा रहा है कि ये निश्चित कार्योंा को करते हुए परिस्थितिवश स्वयं निर्णय ले सकें ।
* ऐसी मशीनें बना ली गई है जो किसी लिखे हुए पाठ को इंसान की तरह ही पहचान कर पढ़ सकती है ।
* ऑटो पायलेट मोड पर वायुयान संचालित किए जा सकते है ।
विशेषज्ञों की राय
कृत्रिम बुद्धि के कई लाभ होने के बाद भी विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत नहीं है कि यह भविष्य के लिए वरदान ही सिद्ध होगी । इस बारे में अपनी राय रखते हुए कंप्यूटर सांइटिस्ट रेमंड कुऱ्जवील का कहना है कि `कृत्रिम बुद्धि हमारी जीवनशैली का हिस्सा है ।' इसे मानव जाति को तबाह करने वाली किसी दूसरे ग्रह की बुद्धिमान मशीन के हमले की तरह नहींसमझना चाहिए । मशीनें पहले से ही कई क्षेत्रों में मानव बुद्धिमता के बराबर काम कर रही है । भविष्य में कृत्रिम बुद्धि मानव बुद्धि से अधिक श्रेष्ठ होगी । तब इस अवस्था को टेक्नालॉजिकल सिंग्युलेरिटी कहा जाएगा । इस बारे में प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का कहना है कि `एक दिन कृत्रिम बुद्धि अपना नियंत्रण अपने हाथ मेंले लेगी और खुद को फिर से तैयार करेगी । यह लगातार बढ़ती ही जाएगी । चूंकि जैविक रुप से इंसान का विकास धीमी गति से होता है इसलिए वह ऐसी प्रणाली से प्रतियोगिता नहीं कर पाएगा और पिछड़ जाएगा ।'
अनुसंधानों के नतीजों से कह सकते है कि शुरु में लोगों के शारीरिक श्रम की जगह मशीनों ने ले ली थी, अब स्व-चलित मशीनें बहुत कम समय में लोगों के मानसिक कार्य करने लगी है । जैस- जैस कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में प्रगति होती जाएगा मनुष्य के कार्य मशीनोंद्वारा अधिक बेहतर और सुविधाजनक तरीके से होते जाएंगे । किन्तु इस बात को भी नज़रअंदाज नही किया जा सकता है कि यदि मशीनेंस्वयं निर्णय लेने लगी तो फिर वे कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगी ।                                      ***

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