गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

पर्यावरण परिक्रमा
समुद्र में ऊंची दीवार बनाने से नहीं पिघलेंगे ग्लेशियर 
ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने नई तरकीब निकाली  है । इसके तहत समुद्र में ९८० फीट ऊंची धातु की दीवार बनानी होगी । जो पहाड़ के नीचे मौजूद गर्म पानी ग्लेशियर तक नहींपहुंचने देगी । ऐसे में हिमखंड टूटकर समुद्र में नहीं गिरेंगे । इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ने में भी कमी आएगी । साथ ही तटीय शहरों के डूबने का खतरा भी कम होगा । 
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में बताया गया है कि इस दीवार में ०.१ क्यूबिक कि.मी. से १.५  क्यूबिक किमी तक धातु  लगेगी । इसमें अरबों रूपये खर्च होने का अनुमान है । इससे पहले इस तकनीक से दुबई का पास जुमैरा पास और हांगकांग इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया था । दुबई के पाम जुमैरा के लिए ०.१ क्यूबिक किमी धातु से दीवार बनाई गई थी, जिस पर ८६ करोड़ रूपए खर्च हुए थे । २०१६ में नासा की जेट प्रपुल्शन लेबोरेटरी ने बताया था कि पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है । एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पहाड़ के नीचे मौजूद गर्म पानी बर्फ पिघलने का कारण हो सकता  है । इसके बाद बीजिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जॉन मूरे और वोलोविक दुनिया के सबसे बड़े ग्लेशियर में से एक थ्वाइट्स पर अध्ययन किया । 
सामाजिक बदलाव के लिए ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं
भारत में परोपकारी गतिवि-धियों में इजाफा हो रहा है । दानदाता देश की सबसे बड़ी सामाजिक चुनौतियों को सुलझाने के लिए अपने संसाधनों का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं । वे परोपकर पर ज्यादा रकम खर्च कर रहे हैं । 
ब्रिजस्पैन ग्रुप की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि परोपकारी टीबी को खत्म करने और ग्रामीण किसानों को गरीबी के चंगुल से निकालने जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं । वे सीखने की क्षमता को बेहतर बनाने, बढ़ती शहरी आबादी के साथ देश की नगरीय सेवाआें में भी मदद कर रहे हैं । इस रिपोर्ट मेंसामाजिक बदलाव से जुड़ी आठ पहल पर विस्तार से चर्चा की गई है । इस रिपोर्ट की लाचिंग पर कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के सचिव  केपी कृष्णन ने कहा, भारत मेंसरकारी खर्च देश की जीडीपी के एक चौथाई हिस्से के बराबर है । यह महज संयोग नहींहै कि १९९० के दशक में देश में ज्यादा धन के साथ दान करने की प्रवृत्ति फिर से बढ़ी है । रिपोर्ट में जिन आठ पहल का जिक्र किया गया है, उनमें गूगल और टाटा ट्रस्ट की इंटरनेट साथी भी है । इसके तहत १.५ करोड़ ग्रामीण महिलाआें को डिजिटल साक्षर बनाने के लिए स्थानीय महिलाआें से ही ट्रेनिंग दिलाई जाती है । बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन टीबी की रोकथाम के लिए काम कर रहा है । विलियम एंड फ्लोरो हेवलेट फाउंडेशन गांवों के ६ लाख बच्चें को मूलभूत शिक्षा के उपायों पर हर साल की रिपोर्ट तैयार करता है । बेन एंड कंपनी की २०१७ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत मेंवर्ष २०१०-११ में परोपकार पर १.५ लाख करोड़ रूपये खर्च किए गए थे । वर्ष २०१५-१६ तक यह राशि सालाना ९ प्रतिशत की दर से बढ़कर २.२० लाख करोड़ रूपए पर पहुंच चुकी है । ब्रिजस्पैन ग्रुप वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है । यह परोपकारी कामों के बारे में सलाह देता है । 
निजी दानदाताआें द्वारा परोपकार के लिए दी जाने वाली राशि में भी हाल के वर्षो में छह गुना इजाफा हुआ है । २०१६ में इनके द्वारा परोपकार के लिए दी गई राशि ३६००० करोड़ रूपये पर पहुंच गई । यह २०११ में ६००० करोड़ रूपए थी । 
उपग्रह प्रक्षेपण के लिए तलाशा जा रहा लॉन्च पैड
भारतीय अंतरिक्ष अनु-संधान संगठन की बढ़ती  जरूरतों तथा आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित मौजूदा प्रक्षेपण केन्द्र पर ज्यादा दबाव को देखते हुए देश के पश्चिमी तट पर एक नया प्रक्षेपण केन्द्र बनाने की योजना है । 
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र में अभी दो लॉन्च पैड है । वहां तीसरे लॉन्च पेड़ का काम तेजी से चल रहा है । इसके अलावा पश्चिमी तट पर एक नये प्रक्षेपण केन्द्र के लिए हमने कुछ स्थानों पर विचार किया है । नये प्रक्षेपण केन्द्र के लिए स्थान तय करने का काम अंतिम चरण में है तथा जल्द इसके बारे मेंघोषणा की जायेगी । हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि नये प्रक्षेपण केन्द्र के लिए अंतिम फैसला  कब तक हो जायेगा । 
अधिकारी ने कहा कि इसरो द्वारा विकसित किये जा रहे छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) के पहले दो मिशन की लॉन्चिग श्रीहरिकोटा  से ही की जायेगी और उसके बाद एसएसएलवी मिशन का प्रक्षेपण नये केन्द्र से किया जायेगा । इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि नया प्रक्षेपण केन्द्र वर्ष २०२० तक तैयार हो जायेगा क्योंकि इसरो पहले ही कह चुका है कि छोटे प्रक्षेपण यान अगले साल मध्य तक विकसित कर लिये जायेंगे । उल्लेखनीय है कि पूर्वी तट पर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से फिलहाल इसरो के सभी मिशनों को अंजमा दिया जाता है । इसरो का प्रक्षेपण अन्य एजेंसियों की तुलना में बेहद सस्ता होने के कारण अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियां भी अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए यहां आनेलगी है, लेकिन सीमित क्षमता के कारण इसरो अपने मिशनों की संख्या अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ा पा रहाह ै । 
हाल ही में घोषित मानव मिशन गगनयान के लिए श्रीहरिकोटा में ही तीसरा लॉन्च पैड बनाया जा रहा है । इसरो ने दिसम्बर २०२१ तक अंतरिक्ष मेंपहला मानव मिशन भेजने की घोषणा की है । इसमें तीन अंतरिक्ष यात्री शामिल होंगे । इसमें रिकवरी सिस्टम, रिकवरी लॉजिस्टिक, डीप स्पेस नेटवर्क,  लॉन्च पैड पर अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा आदि की तकनीक विकसित हो चुकी है । ऑर्बिटल मॉड्यूल और क्रू इस्केप सिस्टम पर काम चल रहा है । हालांकि, अभी अंतरिक्ष यात्रियों का चयन और उनके प्रशिक्षण का काम बाकी है । 
अधिकारी ने बताया कि पूर्वी तट पर दूसरा केन्द्र स्थापित करने का विकल्प नहीं है क्योंकि यदि हम दक्षिण की ओर जाते हैं तो श्रीलंका ५०० किलोमीटर के दायरे में आ जायेगा । इससे धु्रवीय प्रक्षेपण के समय हमें प्रक्षेपण यान को सीधे भेजने की बजाय बीच में उसका मार्ग थोड़ा मोड़ना होगा जिससे प्रक्षेपण यान की भार वहन क्षमता कम हो जायेगी । इसलिए पश्चिमी तट पर विकल्प तलाशे जा रहे है 
खून की जांच से नींद का पता चलेगा 
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ सरे के स्लीप रिसर्च सेंटर के वैज्ञा-निकोंने एक ऐसा ब्लड टेस्ट विकसित किया है जिससे यह पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति की नींद पूरी हुई है या नहीं और वह कितना थका है । इस जांच से सुस्ती में गाड़ी चलाने के कारण होने वाली दुर्घटनाआें को रोकने में मदद मिल सकती है । इस जांच के लिए  केवल ३ मिनट लगेंगेऔर मामूली से खर्च में इसका पता आसानी से लगाया जा सकेगा । 
स्लीप रिसर्च सेंटर के प्रमुख डर्क जेन डी के नेतृत्व में की गई स्टडी के लिए ३६ लोगों ने एक रात की नींद नहीं ली । इस दौरान उनके खून के नमूने लिए गए और हजारों जीन के व्यावहारिक स्तर मेंहुए बदलावों को मापा गया । शोधकर्ताआें ने कहा कि इस खोज से हमें यह पता लगा पाने में कामयाबी मिली कि उनकी नींद पूरी हुई है या नहीं । हमारा कम्प्यूटर प्रोग्राम जीन्स की पहचान करने में सूक्ष्म था, जो करीब ९२ फीसदी एक्यूरेसी के साथ नतीजे देता है । इस तकनीक को     हम साल के अंत तक बाजार में ले आएंगे । 
यूनिवर्सिटी के सीनियर लेक्चर एम्मा लायंग ने कहा, अभी स्वतंत्र रूप से यह आकलन नहीं हो पाता है कि किसी व्यक्ति ने कितनी नींद ली है और कितना थका है । लोगों को भी यह जानने में काफी मुश्किल आती है कि कोई व्यक्ति गाड़ी चलाने के लिए फिट है या नहीं । अब इस तरह के बायोमार्कर की पहचान हो जाने से हमें अब आगे और जांच विकसित करने में मदद मिलेगी । 
यूके की शेफील्ड यूनिव-र्सिटी के शोधकर्ताआें ने एक नई किस्म की खून जांच की तकनीक विकसित की है, जो यह बता सकती है कि कुछ रोगियों को दिल का दौरा पड़ने के बाद जान पर ज्यादा खतरा क्यों बना रहता है । शोधकर्ताआें प्रोफेसर रॉब स्टोरे ने तीव्र कोरोनीर सिंड्रोम के साथ ४३०० से ज्यादा अस्पताल से निकले मरीजो के रक्त प्लाज्मा नमूनों का विश्लेषण किया । उन्होंने थक्के के अधिकतम घनत्व को मापा और बताया कि थक्का बनने में लगे, वाले समय को क्लॉट लेसिस टाइम क्यों कहा जाता है । अध्ययन में पाया गया कि सबसे लम्बे समय तक थक्का रोगियों को ह्दय रोग के कारण मायोकार्डियल इंफेक्शन या मृत्यु का ४० प्रतिशत ज्यादा जोखिम होता है । यह शोध उन जोखिमों को कम करने के लिए लक्ष्य की पहचान करता है और अधिक प्रभावी इलाज भी कर सकता है । 

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