गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

सम्पादकीय 
हर साल पांच लाख लोगों को लील रहा जहरीला धुआं
देश में वायु प्रदूषण से होने वाली सबसे ज्यादा मौत का कारण घर के चूल्हे व  ट्रेफिक जाम के दौरान वाहनोंसे निकलने वाले धूल व धुएं के छोटे कण हैं । वातवरण में महज २७ फीसदी मौजूदगी के बावजूद  ये छोटे कण प्रदूषण से होने वाली ७० फीसदी मौतों का कारण है । हर साल करीब पंाच लाख लोग इन छोटे धूल कणों के चलते हो रही बीमारियों से मर रहे हैं । चौंकाने वाली यह जानकारी कानपुर आईआईटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के पीएचडी छात्रों के शोध में सामने आई है । 
देश में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है । ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) ने देशभर में वायु प्रदूषण से पांच लाख लोगों की मौत होने का आंकड़ा दिया था । आईआईटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. तरूण कुमार गुप्त के निर्देशन में डॉ. प्रशांत राजपूत व सैफी इजहार ने २०१५-१६ में शोध शुरू किया । कानपुर को केन्द्र में रखकर दिल्ली, लखनऊ, नोएडा, पटना, जयपुर समेत अन्य कई शहरों से आंकड़े जुटाए । 
शोध में सामने आया कि वायु प्रदूषण में ७३ प्रतिशत धूल के कारण पीएम २.५ से ऊपर हैं, जो सिर्फ शरीर के ऊपरी हिस्सों के लिए खतरनाक हैं, लेकिन छोटे करण महज २७ फीसदी मौजूदगी के बावजूद लोगों का सब क्रानिक ऑब्सट्रक्टिव, फ्ल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), टीबीएल कैंसर, अस्थमा और काली खांसी जानलेवा बीमारियां दे रहे हैं । छात्रों का यह शोध अंतरर्राष्ट्रीय जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है । 
शोधार्थियों ने वायु प्रदूषण के डाटा को लंग्स मॉडलिंग से देखा । यह कम्प्यूटरीकृत मॉडल है । इसमेंसामने आया कि पीएम२.५ माइक्रोग्राम से अधिक आकार के कण गले से नीचे नहींजाते । २.५ से छोटे कण सीधे फेफड़े व और धमनियों में जम जाते हैं । शोध में सामने आया कि देश के उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण ज्यादा है । गंगा के तटीय क्षेत्रों में मध्यम और दक्षिण के राज्यों में प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम है । 

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