गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

हमारा भूमण्डल
पेड़ : आध्यात्मिक और धर्म निरपेक्ष
डॉ. डी बालसुब्रमण्यन 

जापान के कामाकुरा तीर्थ का ८०० साल पुराना पूजनीय गिंको वृक्ष इस वर्ष मार्च में बर्फीली आंधी में गिर गया। तीर्थ के पुजारियों और साध्वियों ने वृक्ष पर पवित्र शराब और नमक डालकर इसका शुद्धिकरण किया । 
यह गिंको वृक्ष १२ फरवरी १२१९ को तानाशाह सानेतोमो की हत्या का साक्षी था । उस दिन वह प्रधान पद के  लिए अपने नामांकन का जश्न मनाकर मंदिर से वापस आ रहा था, तभी उसके भतीजे मिनामोतो ने उस पर हमला करके उसे मौत के घाट उतार दिया । इस कृत्य के लिए कुछ ही घंटों बाद उसका भी सिर कलम कर दिया गया । इसके साथ ही साइवा गेंजी शोगुन राजवंश का अंत हो गया ।
पेड़ न केवल इतिहास बताते हैंबल्कि लोगों में विस्मय और आध्यात्मिकता भी जगाते हैं । इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण गौतम बुद्ध हैं जिन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त् किया था । इसी कारण बुद्ध का एक नाम बोधिसत्व भी है । २८६ ईसा पूर्व में बोधि वृक्ष की एक शाखा को श्रीलंका के अनुराधापुर में लगाया गया था। इस तरह से यह वृक्ष मानव द्वारा लगाया गया सबसे प्राचीन वृक्ष है। 
भगवान बुद्ध ने ही कहा था,  पेड़ अद्भूत जीव हैं जो अन्य जीवों को भोजन, आश्रय, ऊष्मा और संरक्षण देते हैं । ये उन लोगों को भी छाया देते हैं जो इन्हें काटने के लिए कुल्हाड़ी उठाते हैं ।  
कर्नाटक के  रामनगरम जिले के हुलिकल की रहने वाली ८१ वर्षीय सालमारदा तिमक्का बौद्ध विचारों से प्रेरित हैं  । जब उन्हें और उनके पति को समझ में आया कि उन्हें बच्च नहीं हो सकता तो उन्होंने पेड़ लगाने और हर पेड़ की परवरिश अपने बच्च्े की तरह करने का निर्णय लिया । इसके बारे में और अधिक गूगल पर पढ़, सुन एवं देख सकते हैं  ।  
पेड़ अत्यंत प्राचीन भी हो सकते हैं । बोधि वृक्ष यदि २,३०० साल पुराना है, तो वहीं कैलिफोर्निया के विशाल सिक्वॉइ पेड़ भी लगभग उतने ही प्राचीन हैं । ये विशाल पेड़ २७५ फीट लंबे, ६००० टन भारी हैं और इनका आयतन करीब १५०० घन मीटर है । समुद्र तल से ३३०० मीटर की ऊंचाई पर खड़ा ब्रिास्टलकोन पाइन वृक्ष तो इससे भी पुराना है। तकरीबन ४८५० साल प्राचीन इस वृक्ष को मेथुसेला नाम दिया है । 
लेकिन दुनिया का सबसे प्राचीन वृक्ष तो नॉर्वे-स्वीडन की सीमा पर दलामा के एक पेड़ को माना जाता है। यह सदाबहार शंकुधारी फर पेड़ है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसका तना ६०० साल तक जीवित रहता है। इतने वर्षों में इसने अपना क्लोन बना लिया है । 
पेड़ों की क्लोनिंग करने की यह क्षमता ही इन्हें जानवरों और हमसे अलग करती है। इसी खासियत के परिणामस्वरूप हमें अनुराधापुर में फलता-फूलता क्लोन महाबोधि वृक्ष नजर आता है, और इसी खासियत के चलते कामकुरा गिंको के उत्तरा-धिकारी वृक्ष बन जाएंगे, और दलामा का फर वृक्ष आज भी मौजूद है । और डॉ. जयंत नार्लीकर द्वारा पुणे में लगाया गया सेब का पेड़ भी इसी खासियत का परिणाम है । यह पेड़ इंग्लैण्ड स्थित उस सेब के पेड़ की कलम से लगाया गया था जिसके नीचे कथित रूप से न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण का विचार कौंधा था ।
इंसानों या जानवरों का जीवनकाल सीमित क्यों होता है ? वे मरते क्यों हैं  ? क्यों जानवर या इंसान पेड़-पौधों की तरह अपना क्लोन बनाकर अमर नहीं हो जाते। और तो और, ४० विभाजन के बाद हमारी कोशिकाएं और विभाजित नहीं हो पाती । गुणसूत्र की आनुवंशिक प्रतिलिपि बनाने की प्रक्रिया को समझ कर इस रुकावट के कारण को समझा जा सकता है। 
जब गुणसूत्र विभाजित होकर अपनी प्रतिलिपि बनाता है तो हर बार उसका अंतिम छोर, जिसे टेलोमेयर कहते हैं,थोड़ा छोटा हो जाता है। निश्चित संख्या में प्रतिलिपयां बनाने के बाद टेलोमेयर खत्म हो जाता है। टेलोमेयर के जीव विज्ञान की समझ और क्यों कैंसर कोशिकाएं मरती नहीं (टेलोमरेज़ एंजाइम की बदौलत) इसका कारण समझने में कई लोगों का योगदान है, जिसकी परिणति डॉ. एलिजाबेथ ब्लैकबर्न और कैरोल ग्राइडर के शोध कार्य में हुई थी जिसके लिए वर्ष २००९ में उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था ।
यह बात काफी पहले ही स्प्ष्ट हो गई थी कि पौधों में उम्र बढ़ने का तरीका जंतुआें से अलग है। डॉ. बारबरा मैकिंलटॉक ने इसे गुणसूत्र मरम्मत का नाम दिया था। डॉ. मैकलिंटॉक को यह समझाने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था कि `जीन कैसे फुदकते या स्थानांतरित होते हैं । 
अब हम बेहतर ढंग से जानते हैं कि उम्र बढ़ना और टेलोमेयर का व्यवहार पेड़-पौधों और जंतुआें में अलग-अलग तरह से होता है। जब हम किसी जंतु के जीवनकाल की बात करते हैं, तो हम उसके पूरे शरीर के  जीवित रहने के बारे में बात करते हैं। किन्तु पौधों में तुलनात्मक रूप से एक प्राथमिक शरीर योजना होती है। पौधे अलग-अलग हिस्सों-जड़, तना, शाखा, पत्ती, फूल जैसे मॉड्यूल्स में वृद्धि करते है । 
यदि पत्तियां मर या झड़ भी जाती हैं तो बाकी का पेड़ या पौधा नहीं मरता । इसके अलावा पेड़-पौधे वृद्धि में वर्धी विभाजी ऊतक (वेजिटेटिव मेरिस्टेम) का उपयोग करते हैं यानी ऐसी अविभाजित कोशिकाएं जो विभाजन करके पूरा पौधा बना सकती हैं। इसी वजह से किसी पेड़ या पौधे की एक शाखा या टहनी से नया पौधा उगाया जा सकता है या उसकी कलम किसी अन्य के साथ लगाकर अतिरिक्त गुणों वाला पौधा तैयार किया जा सकता है।
पेड़-पौधों में कोशिका की मृत्यु पूरे पौधे की मृत्यु नहीं होती । इस विषय पर विएना के डॉ. जे. मेथ्यू वॉटसन और डॉ. केरल रिहा द्वारा प्रकाशित पठनीय समीक्षा टेलोमेयर - बुढ़ाना और पौधे - खरपतवार से मेथुसेला तक, एक लघु समीक्षा आप इंटरनेट पर मुफ्त में पढ़ सकते हैं ।          

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