गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

गांधी के १५० वें वर्ष पर विशेष
बापू एक आदर्श पत्रकार
डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित 
अहिंसा के पथ-प्रदर्शक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से की थी। 
गाँधी ने पत्रकारिता में स्वतंत्र लेखन के  माध्यम से प्रवेश किया था । बाद में साप्ताहिक पत्रोंका संपादन किया । बीसवीं सदी के आरम्भ से लेकर स्वराजपूर्व तक के गाँधी युग को भारतीय भाषायी पत्रकारिता के विकास का काल माना जाता है । इस युग की पत्रकारिता पर गाँधीजी की विशेष छाप रही । गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रम और असहयोग आन्दोलन के प्रचार के लिए स्वतंत्रता संग्राम के नायको ने अपने अपने क्षेत्रो में कई भाषाओ में पत्रों का प्रकाशन शुरू किया था ।  
महात्मा गाँधी ने पत्रकारिता को मिशन के रूप में अपनाया था । स्वयं गाँधी के शब्दोंमें ``मैंने पत्रकारिता को केवल पत्रकारिता के प्रयोग के लिए नहीं बल्कि उसे जीवन में अपना जो मिशन बनाया है उसके साधन के रूप में अपनाया है । सन १८८८ में कानून की पढ़ाई के लिए जब गाँधी लंदन पहुँचे उस वक्त उनकी आयु मात्र १९ वर्ष थी, उस समय उन्होंने टेलिग्राफ और डेली न्यूज जैसे अखबारों में लिखना शुरू किया । 
दक्षिण अफ्रीका में प्रवास के  दौरान उन्होंने भारतीयों के साथ होने वाले अत्याचारों के बारे में भारतीय समाचार पत्रों, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दू, अमृत बाजार पत्रिका, स्टेट्समैन आदि में अनेक लेख लिखे । 
गाँधी में जनता की नब्ज पहचानने की अद्भभूत क्षमता थी । दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों ने और सत्याग्रह के उनके प्रयोगों ने उन्हें इंडियन ओपिनियन नामक पत्र के  प्रकाशन की प्रेरणा दी । ४ जून १९०३ को चार भाषाओं में इसका प्रकाशन शुरू किया गया, जिसके एक ही अंक में हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती और तमिल भाषा में छह कॉलम प्रकाशित होते थे । अफ्रीका तथा अन्य देशों में बसे प्रवासी भारतीयों को अपने अधिकारों के  प्रति सजग करने तथा सामाजिक-राजनैतिक चेतना जागृत करने में इस पत्र की भूमिका महत्वपूर्ण साबित हुई । महात्मा गाँधी दस वर्षों तक इससे जुड़े रहे । यह गाँधी की सत्यनिष्ठ और निर्भीक  पत्रकारिता का असर था कि अफ्रीका जैसे देश में रंगभेद जैसी विषम परिस्थितियों के बावजूद चार अलग-अलग भारतीय भाषाओं में इस पत्र का नियमित प्रकाशन होता रहा ।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों की लड़ाई में सफलता प्राप्त् करने के बाद जब वे भारत लौटे तो भारत आने के बाद यहाँ भी पत्र-प्रकाशन की योजना बनाई ।  गाँधीजी के समक्ष अनेक पत्रों के  संपादक बनाये जाने के प्रस्ताव आए, किन्तु उन्होंने सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया । गाँधीजी ने ७ अप्रैल १९१९ को बम्बई से सत्याग्रही नाम से एक पृष्ठ का बुलेटिन निकालना शुरू किया जो मुख्यत: अंग्रेजी और हिंदी में निकलता था । इसके पहले ही अंक में उन्होंने रोलेट एक्ट का तीव्र विरोध किया और इसे तब तक प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया जब तक कि  रोलेट ऐक्ट वापस नहीं ले लिया जाता । गाँधी के यंग इंडिया, हरिजन और हरिजन सेवक में प्रकाशित होने वाले लेखों ने स्वतंत्रता संघर्ष में जन जागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया । 
गाँधी ने पत्रकारिता के माध्यम से लोकशिक्षण का कार्य करते हुए जनचेतना को प्रभावित करने का बड़ा काम किया । गाँधी द्वारा सम्पादित पत्रोंमें सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पत्र था हरिजन । इसका प्रथम अंक ११ फरवरी १९३३ को प्रकाशित हुआ था  । गाँधी उस समय  पूना जेल में थे, वहीं से पत्र का संचालन करते थे । महात्मा गाँधी की लगभग ५० वर्षों की पत्रकारिता में उन्होंने इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया, नवजीवन और हरिजन पत्र निकाले जिनमे वे राजनैतिकचेतना के साथ ही सामाजिक बुराइयोंपर निरंतर प्रहार करते थे । गाँधी-युग को पत्रकारिता का स्वर्ण युग कहा जा सकता है । 
व्यवसायिक पत्रकारिता से दूर रहते हुए गाँधी ने सदा जनहित एवं मिशनरी भावना से कार्य किया । महात्मा गाँधी की सत्यनिष्ठा और उसके लिए संघर्ष का ज्यादातर साधन पत्रकारिता रहा है। चाहे दक्षिण अफ्रीका में नस्ल भेद के खिलाफ संघर्ष करते वक्त इंडियन ओपेनियन का प्रकाशन हो, चाहे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वाधीनता-आंदोलन में सक्रियता के दौरान यंग इंडिया का या छुआछूत के  खिलाफ हरिजन का प्रकाशन हो । गाँधी पत्रकारिता के जरिए समाज के  चेतना-निर्माण का कार्य किया । 
गाँधी ने अपने किसी भी समाचार पत्र में कभी भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं किये । गाँधी की पत्रकारिता में उनके संघर्ष का बड़ा व्याहारिक दृष्टिकोण नजर आता है । जिस आमजन, हरिजन एवं सामाजिक समानता के प्रति गाँधी का रुझान उनके जीवन संघर्ष में दिखता है, बिल्कुल वैसा ही रुझान उनकी पत्रकारिता में भी देखा जा सकता है। गाँधी के शब्द और कर्म, चेतना और चिंतन के केन्द्र में हमेशा ही अंतिम जन रहता था। वे पत्रकारों को अंतिम जन की आंख से समाज और देश-दुनिया को देखने के लिये सदा प्रेरित करते थे ।
गांधीजी का व्यक्तित्व बहुआ-यामी था । राष्ट्रीय जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिस पर गांधी ने अपनी छाप न छोड़ी हो। अध्यात्म हो, राजनीति हो या समाजसेवा हो हर क्षेत्र में उन्होंने अपना मौलिक योगदान दिया है । पत्रकारिता के उदेश्यों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा था पत्रकारिता का पहला काम जनभावनाओ को समझना और उन्हें अभिव्यक्ति देना हैं इतना ही नहीं इसका उदेश्य लोक चेतना की भावनाओ को जाग्रत कर निर्भीकता के साथ समाज में व्याप्त् बुराइयों को उजागर करना भी हैं ें वे मानते थे कि अखबार का काम केवल सूचना भर देना नहीं है बल्कि जन शिक्षण और जनमत निर्माण में भी अखबार की भूमिका महत्वपूर्ण का निर्वहन करना चाहिये ।  
गाँधी की पत्रकारिता का मिशन था समाज में नैतिक मूल्योंकी स्थापना, सत्य और अहिंसा पर अडिग रहकर साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष करना और इस प्रकार भारतीय समाज को राजनैतिक स्वतंत्रता के मार्ग की ओर अग्रसर करना । इस प्रकार तत्कालीन पत्रकारिता पर गाँधी विचारो का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता हैं । देश के  इतिहास में १९२० से १९४७ के कालखंड को गांधी युग माना जाता हैं ।  
आज  जब हम पत्रकारिता पर विचार करते है तो पाते है कि आज की पत्रकारिता में मिशन पीछे छूटता जा रहा है और दूसरी और नैतिक मूल्यों से रिश्ता विरल होता जा रहा है आज की समाचार पत्रो के प्रबंधन पर पूंजीवाद और विज्ञापनों का दबाव बढता जा रहा है यह सब बढ़ते बाजारवाद के  प्रभाव में है, जो समाज के हर क्षेत्र में दृष्टिगोचर हो रहा है । 
पत्रकारिता आज संक्रमण के दौर से गुजर रही है । आज यह सवाल महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि क्या पत्रकारिता नैतिक मूल्योंके साथ जनसामान्य की आशा आकांक्षाओ के संघर्ष में उसके साथ खड़ी हो सकेगी ? आज गाँधी जी के जन्म के १५० वे वर्ष का समय है जो हमे इस दिशा में चिंतन और कर्म के लिए नया अवसर प्रदान कर रहा है । ऐसे समय में गाँधी विचार की स्पष्ट झलक आज की पत्रकारिता में दिखलाई देगी तभी हम कह सकेंगे हम गाँधी जी की पत्रकारिता की विरासत के सही उतराधिकारी हैं ।  

कोई टिप्पणी नहीं: