रविवार, 18 नवंबर 2018

हमारा भूमण्डल
सामुदायिक संसाधन और गांधी विचार
जयदीप हार्डीकर
आज  की  दुनिया में होने वाले संघर्षों की वजह सामुदायिक संसाधन ही हैं। सभी देश अपने-अपने हितों, खासकर पूंजीगत हितों की खातिर प्राकृतिक, सार्वजनिक और सामुदायिक संसाधनों को हथियाना चाहते हैंऔर न मिलने पर तरह-तरह के बहाने बनाकर युद्ध, नरसंहार तक छेड़ते रहते हैं। 
मध्यपूर्व और खाड़ी के देशों में छिडे हिंसक संघर्ष, इराक पर 'पहली दुनिया` का हमला और चीन की विस्तारवादी नीतियां आखिर सामुदायिक संसाधनों पर कब्जे की खातिर ही तो पैदा हुए थे। 
नोबल पुरस्कार प्राप्त् विद्वान डॉ. एलिनोर ओस्ट्रॉम का कहना है कि संसाधनों के समान, सामुदायिक बंटवारे को समझने के लिए महात्मा गाँधी अब भी जरुरी और प्रासंगिक हैं। डॉ. एलिनोर को दुनिया सामुदायिक संसाधनों के  प्रबंधन में बहु-केंद्रिक तरीका अपनाने की प्रबल पक्षधर के रूप में जानती है। उनका विचार है कि 'अगर हम ऐतिहासिक सन्दर्भों में संसाधनों केप्रबंधन के दर्शन को समझना चाहेंगे तो पाएंगे कि गाँधी अब भी जरुरी और प्रासंगिक हैं।' 
पारिस्थितिकीय अर्थशास्त्र की जानी-मानी प्रोफेसर डॉ. ओस्ट्रॉम कहती हैं कि उपभोग के लिए बाजारू अर्थव्य-वस्था संसाधनों के सहज प्रबंधन में एक बड़ी अड़चन साबित  हो  रही है। 
'इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडीज ऑफ कॉमन्स` (आईएएससी) के १३ वें सम्मेलन के  दौरान ७७ वर्षीय प्रोफेसर ने इस पत्रकार से अपने विचार साझा किए। उनका कहना था कि हमें समुदायों का एक तंत्र विकसित करने की जरुरत है। हमें संसाधनों का प्रबंधन कर रहे सफल संस्थानों और कड़ी मेहनत में लगे आम लोगों से सीखना होगा। वे इस विचार को खारिज करती हैं कि केवल राष्ट्र-राज्य या निजी संस्थाएं ही संसाधनों के प्रबंधन का सर्वश्रेष्ठ जरिया है।  
अपनी बात के समर्थन में वे बताती हैं कि किस तरह जंगलों में रहने वाले समुदायों ने अपने संसाधनांे को बढ़ाने में सफलता  पाई । सुश्री ओस्ट्रॉम एक अमेरिकी राजनीतिक-विज्ञानी हैं। उन्हें २००९ का अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार मिला था। यह सम्मान उन्होंने संस्थागत विकास और सामुदायिक कार्य पर अपनी महत्वपूर्ण  प्रस्थापनाओं के लिए हासिल किया था । अपने शोधकार्य में उन्होंने संसाधनों के उपभोग और प्रबंधन को लेकर प्रचलित दकियानूसी दृष्टिकोण को चुनौती दी थी। उनकी मान्यता है कि संसाधनों के प्रबंधन के लिए समाज की सहकारी व्यवस्था, प्रचलित सरकारी या निजी व्यवस्था से बेहतर है।
वे अपने इस सिद्धांत को चिकित्सा क्षेत्र की एक उपमा से समझाती हैं कि जटिल रोगों का कोई एक रामबाण इलाज नहीं हो सकता । चिकित्सा विज्ञान पिछले सौ बरसों से लगातार विकसित हो रहा है। यह वास्तव में जटिल विज्ञान का अध्ययन है। इसमें हम रोगों की पहचान के अनेक विकल्पों पर काम करते हैं, बजाय यह कहने के कि केवल एक तरीके का इलाज ही असरकारी  होगा । दरअसल इस प्रक्रिया में रोगों की पड़ताल को लेकर हम और भी सवाल उठाने की कोशिश करते हैं जो बेहतर और कारगर होता है।  
सुश्री ओस्ट्रॉम के मुताबिक एक-से संसाधनों को समझने के लिए अकादमिक क्षेत्र के विद्वान बीमारी की पहचान के विज्ञान के  और विकसित होने की आशा करते हैं। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि परिस्थितियों, चीजों से निपटने का यही तरीका सर्वश्रेष्ठ है। समुदायों को आपस में परस्पर मिलकर काम करने की जरूरत है। संसाधनों के प्रबंधन में वैश्विक जलवायु परिवर्तन एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है जिसके चलते बहुत भारी संकट खड़ा हुआ है। प्रोफेसर ओस्ट्रॉम के  अनुसार मात्र इतना कह देना महत्वपूर्ण नहीं है कि सरकार को यह काम करना चाहिए, व्यक्ति  और उनके कार्य भी बदलाव ला सकते हैं । लोगों को पता होना चाहिए कि इससे होने वाले लाभों में वे भी साझीदार   हैं।  
प्रोफेसर ओस्ट्रॉम ने १७ ऐसी चीजों की पहचान की है जो कोई भी व्यक्ति  अपने घर में कुछ अलग तरीके से करके सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन पर सकारा-त्मक प्रभाव छोड़ सकता है। इनमें दो हैं - बिजली और यातायात के साधनों का उपयोग । ग्रीन गैस के उत्सर्जन में ये ही दो महत्वपूर्ण कारक हैं।  
प्रोफेसर ओस्ट्रॉम कहती हैं कि नीतियां अपने में साध्य नहीं बल्कि संस्थागत ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक सतत प्रक्रिया हैं। ''हमें नीतियों के प्रयोग को ठीक तरह सेे करना चाहिए और विभिन्न स्तरों पर उन्हें लगातार बेहतर करने की कोशिशें करते रहना चाहिए।`` 

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