सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

जीवन शैली
टिकाऊ भविष्य के लिए आहार में परिवर्तन
डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन
भारतीय लोग रोजना  लगभग ५२-५५ ग्राम प्रोटीन खातेहैं । यह उन्हें अधिकांशत: फलियों, मछली और पोल्ट्री सेमिलता है। कुछ लोग, खास तौर सेविकसित देशों में, जरूरत सेकहीं ज्यादा प्रोटीन का सेवन करतेहैं । 
वॉशिंगटन स्थित संस्था वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट नेहाल ही में सुझाया है कि लोगों कोबीफ (गौमांस) खाना बंद नहीं तोकम अवश्य कर देना चाहिए। यह सुझाव हमारेदेश के कई शाकाहारियों का दिल खुश कर देगा और गौरक्षकों की बांछें खिल जाएंगी । किन्तु  वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के इस सुझाव के पीछेकारण आस्था-आधारित न होकर कहीं अधिक गहरेहैं । आने वाले वर्षों में बढ़ती आबादी का पेट भरनेके लिए एक टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करनेके लिए अपनाए जानेवालेतौर-तरीकों की चिंता इसके मूल में है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट नेइस सम्बंध में एक निहायत पठनीय व शोधपरक पुस्तक प्रकाशित की है: शिफ्टग डाएट्स फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूटर (एक टिकाऊ भविष्य के लिए आहार में परिवर्तन)।
संस्था नेइसमें तीन परस्पर सम्बंधित तर्क प्रस्तुत किए हैं । पहला तर्क है कि कुछ लोग अपनी दैनिक जरूरत सेकहींअधिक प्रोटीन का सेवन करतेहैं । यह बात दुनिया के सारेइलाकों के लिए सही है, और विकसित देशों पर सबसेज्यादा लागू होती है। एक औसत अमरीकी, कनाडियन, युरोपियन या रूसी व्यक्ति रोज़ाना ७५-९० ग्राम प्रोटीन खा जाता है - इसमें से३० ग्राम वनस्पतियों सेऔर ५० ग्राम जंतुओं सेप्राप्त् होता है । ६२ किलोग्राम वजन वालेएक औसत वयस्क को५० ग्राम प्रतिदिन सेअधिक की जरूरत नहीं होती ।
तुलना के लिए देखें, तोभारतीय व अन्य दक्षिण एशियाई लोग लगभग ५२-५५ ग्राम प्रोटीन का भक्षण करतेहैं (जोअधिकांशत: फलियों, मछलियों और पोल्ट्री सेप्राप्त् होता है)। यही हाल उप-सहारा अफ्रीका के निवासियों का है (हालांकि वेहमसेथोड़ा ज्यादा  मांस खातेहैं)।  मगर समस्या यह है कि आजकल ब्राजील और चीन जैसी उभरती अर्थ व्यवस्थाओं के ज्यादा लोग पश्चिम की नकल कर रहेहैं और अपनेभोजन में ज्यादा  गौमांस कोशामिल करनेलगेहैं । वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि वर्ष २०५० तक दुनिया में गौमांस की  मांग ९५ प्रतिशत तक बढ़ जाएगी । दूसरेशब्दों में यह मांग लगभग दुगनी होजाएगी। यह इसके बावजूद है कि यूएस में लाल मांस खानेकोलेकर स्वास्थ्य सम्बंधी चिंताओं के चलतेगौमांस भक्षण में गिरावट आई है ।
चलते-चलतेयह स्पष्ट करना जरूरी है कि जब बीफ की बात होती है तोउसमें गाय के अलावा सांड, भैंस, घोड़े, भेड़ें और बकरियां शामिल मानी जाती हैं ।  फिलहाल विश्व में १.३ अरब कैटल हैं (इनमें से३० करोड़ भारत में पालेजातेहैं )। उपरोक्त अनुमान का मतलब यह है कि आज से३० साल बाद हमें २.६ अरब कैंटल की जरूरत होगी ।
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट का दूसरा तर्क है कि कैटल  पृथ्वी की जलवायु कोप्रभावित करतेहैं । येग्लोबल वार्मिंग यानी धरती के औसत तापमान में वृद्धि में योगदान देतेहैं । इसके अलावा, कैटल के लिए काफी सारेचारागाहों की जरूरत होती है (एक अनुमान के मुताबिक अंटार्कटिक कोछोड़कर पृथ्वी के कुल भूभाग का २५ प्रतिशत चारागाह के लिए लगेगा)। यह भी अनुमान लगाया गया है कि विश्व के पानी में सेएक-तिहाई पानी तोपालतू पशु उत्पादन में खर्च होता है । इस सबके अलावा, चिंता का एक मुद्दा यह भी है कि गाएं, भैंसें, भेड़-बकरी व अन्य खुरवाले जानवर खूब डकारें लेतेहैं । मात्र उनकी डकार के साथ जोग्रीनहाउस गैसें निकलती है, वेग्लोबल वार्मिंगमें ६० प्रतिशत का योगदान देती हैं ।
इसके विपरीत गेहूं, धान, मक्का, दालें, कंद-मूल जैसी फसलों के लिए चारागाह की कोई जरूरत ज़रूरत नहीं होती और इनकी पानी की मांग भी काफी कम होती है। सबसेबड़ी बात तोयह है कि इनसेग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता या बहुत कम होता है । हमनेवचन दिया है कि अगलेबीस वर्षों में धरती के तापमान में १.५ डिग्री सेलिस्यस सेअधिक वृद्धि नहीं होनेदेंगे। किन्तु कैटल की संख्या में उपरोक्त अनुमानित वृद्धि के चलतेस्थिति और विकट होजाएगी ।
इस नजारेके मद्देनजर, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट का सुझाव है कि हम, यानी विकसित व तेजी सेउभरती अर्थ व्यवस्थाआें के सम्पन्न लोग, आनेवालेवर्षों में अपनेभोजन में कई तरह सेपरिवर्तन लाएं । पहला परिवर्तन होगा - अति-भक्षण सेबचें । दूसरेशब्दों में जरूरत सेज्यादा कैलोरी का उपभोग न करें । हमें रोजाना २५०० कैलोरी की जरूरत नहीं है, २००० पर्याप्त् है । आज लगभग २० प्रतिशत दुनिया जरूरत सेज्यादा खाती है, जिसकी वजह सेमोटापा बढ़ रहा है। इसके स्वास्थ्य सम्बंधी परिणामों सेसब वाकिफ हैं । कैलोरी खपत कोयथेष्ट स्तर तक कम करनेसेस्वास्थ्य सम्बंधी लाभ तोमिलेंगेही, इससेजमीन व पानी की बचत भी होगी ।
भोजन में दूसरा परिवर्तन यह सुझाया गया है कि प्रोटीन के उपभोग कोन्यूनतम अनुशंसित स्तर पर लाया जाए ।  इसके लिए खास तौर सेजंतु-आधारित भोजन में कटौती करना होगा। जब प्रतिदिन ५५ ग्राम सेअधिक प्रोटीन की जरूतर नहीं है, तो७५-९० ग्राम क्यों खाएं ? और इसकी पूर्ति भी जंतु-आधारित प्रोटीन की जगह वनस्पति प्रोटीन सेकी जा सकती है। 
सुझाव है कि पारम्परिक भूमध्यसागरीय भोजन (कम मात्रा में मछली और पोल्ट्री मांस) तथा शाकाहारी भोजन (दाल-फली आधारित प्रोटीन) कोतरजीह दी जाए । और भोजन में तीसरा परिवर्तन ज्यादा विशिष्ट है: खास तौर सेबीफका उपभोग कम करें। बीफ (सामान्य रूप सेकैटल) में कटौती करनेसेभोजन सम्बंधी और पर्यावरण-सम्बंधी, दोनों तरह के लाभ मिलेंगे। पर्यावरणीय लाभ तोस्पष्ट  हैं : इससेकृषि के लिए भूमि मिलेगी और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा । बीफफी बजाय हम पोर्क (सूअर का मांस), पोल्ट्री मछली और दालों का उपभोग बढ़ा सकतेहैं ।
हालांकि वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट विशिष्ट रूप सेइसकी सलाह नहीं देता किंन्तु  ऐसा करनेसेमदद मिल सकती है । जाहिर है, यह बहुत बड़ी मांग है और इसके लिए सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन की दरकार होगी । मनुष्य सहस्त्राब्दियों सेमांस खातेआए हैं । लोगों कोमांस भक्षण छोड़नेकोराजी करना बहुत मुश्किल होगा ।  शायद बीफ कोछोड़कर पोर्क, मछली, मुर्गेव अंडेकी ओर जाना सांस्कृतिक रूप सेज्यादा स्वीकार्य शुरुआत होगी । स्वास्थ्य के प्रति जागरूक और जलवायु-स्नेही लोग लचीला-हारी होनेकी दिशा में आगेबढ़ेहैं। लचीलाहारी शब्द एक लेखक नेदी इकॉनॉमिस्ट के एक लेख में उपयोग किया था। हिंदी में इसेमौकाहारी भी कह सकतेहैं । दरअसल भारतीय सेना में एक शब्द मौका-टेरियन का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है जोवैसेतोशाकाहारी होतेहैं किंतु मौका मिलनेपर मांस पर हाथ साफ कर लेतेहैं । इन पंक्तियों का लेखक भी मौका-टेरियन है ।
शाकाहार की ओर परिवर्तन भारतीय और यूनानी लोगों नेकरीब १५००-५०० ईसा पूर्व के बीच शुरू किया था । इसका सम्बंध जीव-जंतुआें के प्रति अहिंसा के विचार सेथा और इसेधर्म और दर्शन द्वारा बढ़ावा दिया गया था । तमिल अध्येता-कवि तिरुवल्लुर, मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त् व अशोक और यूनानी संत पायथागोरस शाकाहारी थे।
शाकाहार की ओर वर्तमान रुझान एक कदम आगेगया है । इसेवेगन आहार कहतेहैं और इसमें दूध, चीज, दही जैसेडेयरी उत्पादों के अलावा जन्तुआें सेप्राप्त् होने वाले किसी भी पदार्थ के उपभोग पर रोक होती है । फिलहाल करीब ३० करोड़ भारतीय शाकाहारी हैं जिनमें सेशायद मात्र २० लाख लोग वेगन होंगे, हालांकि यह आंकड़ा पक्का नहीं है।                                            

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